अवधेश कुमार। पिछले दिनों महाराष्ट्र के कई शहरों की डरावनी हिंसा ने देश का ध्यान भारत में बढ़ रही कट्टरपंथी तंजीमों की ओर फिर से खींचा है। अपने मुद्दों पर प्रशासन की अनुमति तथा उनके द्वारा निर्धारित मार्ग एवं समयसीमा में किसी को भी धरना-प्रदर्शन करने का अधिकार है, लेकिन अगर प्रदर्शनकारी लक्षित हिंसा करने लगें और उसके पीछे कोई तात्कालिक उकसाने वाली घटना नहीं हो, तो मानना चाहिए कि सुनियोजित साजिश के तहत सब कुछ हो रहा है। महाराष्ट्र में अनेक जगह मुस्लिम संस्थाओं एवं संगठनों के आह्वान पर विरोध-प्रदर्शन आयोजित हुए। प्रदर्शनकारी देखते-देखते हिंसक हो गए। अमरावती, नांदेड़, मालेगांव, भिवंडी जैसे शहर हिंसा के सबसे अधिक शिकार हुए। अमरावती में पुराने काटन मार्केट चौक में पूर्व मंत्री जगदीश गुप्ता के किराना प्रतिष्ठान पर पत्थरों से हमला हुआ। हमलावरों को मालूम था कि यह किसका प्रतिष्ठान है। वसंत टाकीज इलाके में जिन प्रतिष्ठानों एवं दुकानों पर हमले हुए, वे सब हिंदुओं के थे। पूर्व मंत्री एवं विधायक प्रवीण पोटे के कैंप कार्यालय पर पथराव किया गया। मालेगांव में जुलूस के रौद्र रूप ने गैर मुस्लिमों को अपने घरों में बंद हो जाने या फिर दुकानें बंद करने के लिए मजबूर कर दिया। जहां भी हिंदुओं से जुड़े संस्थान और दुकानें खुली मिलीं, वहीं भीड़ ने पथराव किया। पूरा माहौल भयभीत करने वाला बना दिया गया। रैपिड एक्शन फोर्स पर हमला किया गया। हालांकि, महाराष्ट्र के गृह मंत्री और पुलिस महानिदेशक स्थिति को इतना गंभीर नहीं मान रहे हैं तो संभव है यह सब पुलिस के रिकार्ड में नहीं आए, किंतु स्थानीय लोगों ने जो देखा और भुगता, उसे भुलाना कठिन होगा।

कहा जा रहा है कि त्रिपुरा हिंसा का विरोध करने के लिए कुछ मुस्लिम संस्थाओं-संगठनों को इस तरह के बंद एवं प्रदर्शनों की अनुमति मिली, जबकि कथित मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं पत्रकारों के एक समूह ने इंटरनेट मीडिया पर त्रिपुरा में मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा की जो खबरें और वीडियो वायरल कराए, वे पूरी तरह झूठे थे। बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान दुर्गा पंडालों, हिंदू स्थलों तथा हिंदुओं पर हमले के विरोध में त्रिपुरा में शांतिपूर्ण जुलूस निकाला गया था। तनाव के छिटपुट मामले सामने आए, लेकिन कुल मिलाकर आयोजन शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो गया। अफवाह फैलाई गई कि जुलूस ने मुसलमानों और मस्जिदों पर हमले कर दिए। उच्च न्यायालय ने खबर का संज्ञान लिया। त्रिपुरा के एडवोकेट जनरल सिद्धार्थ शंकर डे ने दायर शपथपत्र में कहा कि बांग्लादेश में दुर्गा पूजा पंडालों और मंदिरों में हुई तोड़फोड़ के खिलाफ विश्व हिंदू परिषद ने 26 अक्टूबर को रैली निकाली थी। उसमें दोनों समुदायों के बीच कुछ झड़पें हुई थीं। तीन दुकानों को जलाने, तीन घरों और एक मस्जिद को क्षतिग्रस्त करने के आरोप दोनों पक्षों की ओर से लगाए गए। शपथपत्र में भी केवल आरोप की बात है। हालांकि, पुलिस की जांच में इसका कोई प्रमाण नहीं मिला। जहां कुछ बड़ी घटना हुई ही नहीं वहां के बारे में इतना बड़ा दुष्प्रचार करने वाले कौन हो सकते हैं और उनका उद्देश्य क्या होगा? त्रिपुरा में जांच के लिए एक दल भी पहुंच गया, जिसमें कुछ पत्रकार तथा कथित मानवाधिकारवादी एवं वकील शामिल थे। उनका अपना एक खास एजेंडा है।

महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उसे केवल वहीं की घटना मत मानिए। पता नहीं देश में कहां-कहां ऐसे ही उपद्रव की प्रकट परोक्ष तैयारियां चल रही होंगी। महाराष्ट्र में विरोध-प्रदर्शन एवं बंद का आह्वान वैसे तो रजा एकेडमी ने किया था, किंतु अलग-अलग जगहों पर सुन्नी जमातुल उलमा जैसे कुछ दूसरे संगठन भी शामिल थे। इस बंद को एमआइएम, कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी राकांपा और समाजवादी पार्टी जैसे राजनीतिक दलों का भी समर्थन था। तो जो कुछ भी हुआ, उसके लिए इन सभी संगठनों को जिम्मेदार माना जाना चाहिए। हालांकि, इसके विरोध में सड़कों पर उतरने वाले दूसरे पक्ष के लोगों को भी शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना चाहिए था। उन्हें अपने ऊपर नियंत्रण रखने की आवश्यकता थी। महाराष्ट्र पुलिस ने जिस तत्परता से उन्हें नियंत्रित किया, वैसा ही वह आरंभ में करती तो स्थिति नहीं बिगड़ती।

यहां यह प्रश्न भी उठता है कि किसी देश में हिंदुओं और सिखों आदि के विरुद्ध हिंसा हो तो क्या भारत के लोगों को उसके विरोध में प्रदर्शन करने का अधिकार है या नहीं? यह मानवाधिकार की परिधि में आता है या नहीं? त्रिपुरा की सीमा बांग्लादेश से लगती है। वहां आक्रोश स्वाभाविक था, जिसे लोगों ने प्रकट किया। अगर किसी ने कानून हाथ में लिया, तो उसके खिलाफ कार्रवाई करना पुलिस का दायित्व है। जिन लोगों के लिए त्रिपुरा फासीवादी घटना बन गई, उनके लिए बांग्लादेश में हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा मामला बना ही नहीं।

बांग्लादेश की हिंसा का भी एक सच जानना आवश्यक है। बांग्लादेशी मीडिया में यह समाचार आ चुका है कि दुर्गा पूजा पंडाल तक पवित्र कुरान शरीफ इकबाल हुसैन ले गया। बाद में इकराम ने पुलिस को फोन कर सूचित किया तथा फयाज अहमद ने उसे फेसबुक पर डाला। इन तीनों का संबंध किसी न किसी रूप में जमात-ए-इस्लामी या अन्य कट्टरपंथी संगठनों से सामने आया है। वहां आरंभ में पुलिस ने पारितोष राय नामक एक किशोर को गिरफ्तार किया था। इससे क्या यह साबित नहीं होता कि कट्टरपंथी समूह किस मानसिकता से काम कर रहे हैं? इसलिए महाराष्ट्र की घटना को उसके व्यापक परिप्रेक्ष्य में पूरी गंभीरता से लेना चाहिए। जिन्होंने हिंसा की, केवल वे ही नहीं, बल्कि जिन लोगों ने देशव्यापी झूठ प्रचार कर लोगों को भड़काया, उन सबको कानून के कठघरे में खड़ा किया जाना जरूरी है।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)