संजय मिश्र। मध्य प्रदेश के बासमती धान और शरबती गेहूं को जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग (जीआइ टैग) मिलने की राह का रोडा हटाने की रजामंदी ने किसानों के सपनों को नया आकाश दिया है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) ने अपनी उस आपत्ति को वापस लेने का निर्णय लिया है जिसमें यह दावा किया जा रहा था कि मध्य प्रदेश उस भौगोलिक क्षेत्र में नहीं आता है, जहां बासमती धान का उत्पादन होता है। इतना ही नहीं, देश और और दुनिया में प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के शरबती गेहूं को भी जीआइ टैग देने का प्रस्ताव प्राधिकरण ने पारित करके केंद्र सरकार को भेज दिया है। यह अपने अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे राज्य के किसानों और शिवराज सरकार की बडी जीत है।

राज्य में पैदा होने वाले बासमती धान को जीआइ टैग देने की मांग लंबे समय से की जा रही थी, लेकिन कई तरह की अड़ंगेबाजी के कारण लग रहा था कि इसके लिए प्रदेश को अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। हाल के महीनों में सबसे मुखर विरोध पंजाब सरकार ने किया था, लेकिन अब यह साफ हो गया है कि मध्य प्रदेश का दावा बिल्कुल वाजिब है। जीआइ टैग मिलने से यहां के बासमती धान को वैश्विक पहचान मिलेगी और इसके निर्यात में तेजी आएगी। इससे न सिर्फ किसानों की समृद्धि का द्वार खुलेगा, बल्कि बासमती धान की खेती में भी प्रगति होगी।

दरअसल हाड़तोड़ मेहनत करके किसान अनाज उगाते हैं। ऐसे में उन्हें अपनी उपज का वाजिब दाम न मिले तो उनका निराश होना स्वाभाविक है। मध्य प्रदेश के बासमती धान उत्पादक किसानों के साथ लंबे समय से ऐसा ही हो रहा था। प्रदेश की उर्वर भूमि में सुगंधित बासमती धान बहुतायत में पैदा होता है, लेकिन उसे अभी तक भौगोलिक संकेतक (जीआइ टैग) नहीं मिला है। इसका मतलब यह हुआ कि इस धान को न तो बासमती का नाम मिल सकता है और न ही वाजिब दाम। इसका खामियाजा प्रदेश के किसानों के साथ सरकार को भी उठाना पड़ रहा है। यही कारण है कि शिवराज सरकार ने किसानों की यह लड़ाई हर मोर्चे पर लड़ी, अदालत का दरवाजा खटखटाया तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने तथ्य रखकर सहयोग की गुहार लगाई। नतीजन एपीडा की ओर से खुशखबरी दी गई है कि मध्य प्रदेश के बासमती धान को जीआइ टैग मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

यह प्रामाणिक तथ्य है कि मध्य प्रदेश में बासमती धान की खेती का विस्तार मुरैना, भिंड, ग्वालियर, श्योपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, विदिशा, रायसेन, सीहोर, होशंगाबाद, हरदा, जबलपुर और नरसिंहपुर जिले तक हो चुका है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के अनेक व्यवसायी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से यहां का बासमती धान खरीदते हैं और चावल बनाकर अपनी मुहर लगाकर कारोबार करते हैं। राज्य में वर्ष 1940 से लगातार बासमती धान की खेती होने के दस्तावेजी प्रमाण हैं। ग्वालियर स्टेट के कृषि विभाग की वर्ष 1944-45 की वार्षकि रिपोर्ट में यह स्पष्ट लिखा है कि बासमती प्रजाति के धान ने अच्छा परिणाम दिया है और देहरादून से ताजा बीज के लिए आदेश दे दिए गए हैं, ताकि कुछ चयनित बीज उत्पादकों को इसे वितरित किया जाए। राज्य सरकार द्वारा प्रस्तुत इन्हीं साक्ष्यों को स्वीकार करते हुए हुए जीआइ रजिस्ट्री ने 31 दिसंबर 2013 को निष्कर्ष दिया कि मध्य प्रदेश में बासमती का उत्पादन होता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ राइस रिसर्च, हैदराबाद के सर्वेक्षण 2017 में भी बताया गया है कि सीधी, अनूपपुर, कटनी, उमरिया में बासमती धान की कई प्रजातियों की खेती होती है।

वर्ष 1993 से 2017 तक हुए सर्वे में भी प्रत्येक वर्ष बासमती की खेती बड़े भूभाग में होने के तथ्य हैं। बड़ा प्रमाण यह भी है कि अप्रैल 1999 से 2016 तक लगातार केंद्र सरकार मध्य प्रदेश को ब्रीडर सीड आवंटित करती रही है। भोपाल से सटे औद्योगिक क्षेत्र मंडीदीप से अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देशों को बासमती चावल के निर्यात के प्रमाण भी उपलब्ध हैं। इन सभी तथ्यों के आधार पर शिवराज सरकार ने दावा किया था, लेकिन पंजाब सहित अन्य की आपत्ति के कारण जीआइ टैग नहीं मिल पा रहा था।

इस बीच 20 अगस्त 2020 को पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने तो बाकायदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर मध्य प्रदेश के बासमती धान को जीआइ टैग दिलाने के प्रयासों पर आपत्ति दर्ज कराई थी। इस पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर न सिर्फ दस्तावेजी तथ्य बताए, बल्कि पंजाब की कांग्रेस सरकार को मध्य प्रदेश के किसानों का विरोधी भी करार दिया। सुप्रीम कोर्ट में भी विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। 

[स्थानीय संपादक, नवदुनिया, भोपाल, मध्य प्रदेश]