[ दिव्य कुमार सोती ]: गुरु नानक जी की 550 वी जयंती के ऐतिहासिक अवसर पर पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारा करतार साहिब जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए भारत सरकार ने विश्वस्तरीय सुविधाओं से संपन्न करतारपुर कॉरिडोर बनाने का फैसला किया है। इसके कुछ घंटे बाद पाकिस्तान ने भी अपने हिस्से में कॉरिडोर खोलने की घोषणा कर दी। दोनों देशों की सरकारों द्वारा एक ही दिन हुई इस घोषणा का आशय यह निकाला गया कि कहीं न कहीं पर्दे के पीछे दोनों देशों में इस पर सहमति बनी है और इसी कारण एक साथ दोनों देशों के लिए यह घोषणा करना संभव हो पाया। ऐसे में दोनों देशों के रिश्तों में अर्से बाद गर्मजोशी की उम्मीद जगी है।

26 नवंबर को उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू इस कॉरिडोर का शिलान्यास करेंगे, लेकिन हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि इसी दिन 26/11 मुंबई हमलों की दसवीं बरसी भी होगी। इन हमलों में 166 लोग मारे गए थे और 600 से ज्यादा जख्मी हो गए थे। यह दिन हमें पाकिस्तान के मूल स्वभाव को लेकर कोई भ्रम न पालने की सीख देता है। पाकिस्तान से सकारात्मक बातचीत के लिए भारत में आम सहमति से यह मानदंड तय किया गया था कि वह अपने यहां छिपे 26/11 हमलों के प्रमुख साजिशकर्ताओं जिनमें हाफिज सईद और जकीउर्रहमान लखवी जैसे नाम शामिल हैं, पर सख्त कार्रवाई करेगा, लेकिन दस साल बाद भी हालात यह है कि पाकिस्तान में 26/11 मामले में चल रहा मुकदमा निचली अदालत में ही अटका है और उसमें कार्यवाही की रफ्तार भी बहुत सुस्त है।

पाकिस्तान में चल रहा यह मुकदमा किसी क्रूर मजाक से कम नहीं है। इसे एक उदाहरण से ही समझ सकते हैं।

इस मामले में पाकिस्तान सरकार की ओर से पेश एक तथाकथित गवाह अदालत को बता चुका है कि अजमल कसाब तो अभी जिंदा है और जरूरत पड़ने पर उसे अदालत में पेश भी किया जा सकता है। भारत सुस्त न्यायिक प्रक्रिया के लिए बदनाम है, फिर भी 26/11 हमलों से जुड़े मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट तक की प्रक्रिया चार साल में पूरी हो गई और 2012 में अजमल कसाब को फांसी भी हो गई। इस मामले के एक अन्य आरोपी डेविड हेडली पर अमेरिका में 2009 में मुकदमा शुरू हुआ और 2013 में उसे 35 साल कारावास की सजा सुना दी गई, लेकिन पाकिस्तान में मुकदमा अभी निचली अदालत में ही अटका हुआ है और लखवी जैसे अधिकांश आरोपित जमानत पर रिहा हो चुके हैं।

बीबीसी के मुताबिक जेल में रहने के दौरान लखवी को न सिर्फ टीवी और इंटरनेट की सुविधा मुहैया कराई गई, बल्कि उससे मिलने आने वाले लोगों की आवभगत का भी जेल में पूरा इंतजाम था। इसे और क्या कहा जाए कि जेल में रहने के दौरान लखवी एक बच्चे का पिता भी बना। इस मामले के प्रमुख साजिशकर्ताओं में से एक साजिद मीर को तो औपचारिक तौर पर कभी गिरफ्तार ही नहीं किया गया, क्योंकि वह पहले पाकिस्तानी सेना का अधिकारी रह चुका था।

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान में हर मामले में ऐसा होता है। उदाहरण के लिए ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में ढूंढ़ निकालने में अमेरिका की मदद करने वाले डॉ. शकील अफरीदी को पाकिस्तान सरकार ने न सिर्फ आनन-फानन में गिरफ्तार किया, बल्कि उनकी सारी संपत्ति भी जब्त कर ली। डॉ. अफरीदी पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया गया और महज दो साल में कानूनी कार्यवाही पूरी कर 33 साल कारावास की सजा सुना दी। इस मामले में पाकिस्तान ने अमेरिका और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की एक न सुनी।

हेडली ने अमेरिका में चले मुकदमे में गुनाह कुबूल कर लिया और सरकारी गवाह बन गया था। उसने 26/11 हमलों के दौरान लश्कर के कराची कंट्रोल रूम में मौजूद अबु जुंदाल पर मुंबई में चल रहे मुकदमे में वीडियो कांफ्रेसिंग के जरिये लश्कर के खिलाफ गवाही भी दी। अगर पाकिस्तान सरकार चाहती तो अपने यहां चल रहे मुकदमे में भी हेडली की गवाही दर्ज करा सकती थी, परंतु उसने ऐसा कुछ नहीं किया। यह सब करना तो दूर मामले की सुनवाई कर रहे जज को नौ बार बदला जा चुका है। ऐसे में अगर अंत में मामले के सारे आरोपी बरी हो जाएं तो वह आश्चर्य की बात नहीं होगी।

हाफिज सईद ने भारत को चुनौती देते हुए कहा भी था कि उसके खिलाफ कभी आरोप साबित नहीं किया जा सकेगा। पाकिस्तान के रवैये से यह साफ है कि वह 26/11 के गुनहगारों पर कार्रवाई करने के बजाय भारत और दुनिया की आंखों में धूल झोंकने का काम कर रहा है। अब तो उसकी और से ऐसी भी बातें की जाने लगी हैं कि भारत के असहयोग के कारण इस मामले की सुनवाई आगे नहीं बढ़ पा रही है।

भारत सरकार ऐसे रवैये के साथ इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती है कि बीते कुछ वर्षों में पाकिस्तान ने कश्मीर के अलावा पंजाब को भी अस्थिर करने की कोशिशें एक बार फिर से शुरू की हैं। इसके लिए वह खालिस्तानी और जिहादी, दोनों किस्म के आतंकवादियों का इस्तेमाल कर रहा है। 27 जुलाई, 2015 को लश्कर ए तैयबा के आतंकवादियों ने पंजाब के गुरदासपुर में हमला कर तीन नागरिकों और चार पुलिसकर्मियों की जान ले ली थी।

भारतीय सुरक्षा एजेंसियों ने 18 सितंबर, 2014 को भारत-नेपाल सीमा से एक खालिस्तानी आतंकी रतनदीप सिंह को पकड़ा था। उससे मालूम पड़ा कि उसने आइएसआइ केकहने पर भिंडरांवाले टाइगर फोर्स नामक एक नए आतंकी संगठन की स्थापना की है। वहीं 2014 और 2015 में थाईलैंड से प्रत्यर्पण कर भारत लाए गए कुख्यात खालिस्तानी आतंकियों हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू और जगतार सिंह तारा ने पूछताछ में भारतीय सुरक्षा एजेंसियों को आइएसआइ द्वारा आसियान देशों में रह रहे कुछ सिख युवकों को आतंकवाद के रास्ते पर ले जाने के लिए की जा रही कोशिशों के बारे में बताया था।

ऐसे में जरूरी है कि करतारपुर कॉरिडोर खुलने से बने सद्भावपूर्ण माहौल के बीच इन कड़वी सच्चाइयों को भी याद रखा जाए, क्योंकि उसी में देश की भविष्य की सुरक्षा निहित है। पाकिस्तान के उस अतीत को भी नहीं भूलना होगा कि भारत द्वारा हमेशा शांति की पहल के बदले में पाकिस्तान से उसे धोखे के अलावा कुछ और नहीं मिला है।

[ काउंसिल फॉर स्ट्रेटेजिक अफेयर्स से संबद्ध लेखक सामरिक विश्लेषक हैं ]