डॉ. अश्विनी महाजन। COVID-19 Vaccine News Update देश-दुनिया में कोरोना से निजात दिलाने हेतु तेजी से प्रयास चल रहे हैं। माना जा रहा है कि कोरोना के स्थायी हल के नाते वैक्सीन ही एकमात्र उपाय है। गौरतलब है कि एक प्रभावी वैक्सीन शरीर में इस बीमारी से लड़ने हेतु एंटीबाडी का निर्माण करने में सहयोगी होती है, जिससे मनुष्य पर कोरोना का असर नहीं होगा।

स्वाभाविक है कि एक ऐसा संक्रमण, जो इससे पहले देखा या सुना नहीं गया, जिसका संक्रमण अन्य वायरसों से कई गुणा तेजी से फैलता है, उसके लिए वैक्सीन निर्माण का काम इस समय चिकित्साशास्त्रियों के लिए चुनौती बना हुआ है। ऐसे में 185 प्रयास दुनिया में चल रहे हैं और उनमें से 35 के तो ट्रायल भी अलग-अलग स्तरों पर चल रहे हैं।

साधारणतया सभी ट्रायल होने के बाद किसी वैक्सीन के बाजार तक पहुंचने में कम से कम छह वर्ष का समय लगता है। लेकिन कोरोना की वैक्सीन बनाने हेतु दुनिया के पास इतना समय नहीं है, क्योंकि कोरोना वायरस मानवता को तेजी से चपेट में ले रहा है और इससे अर्थव्यवस्थाएं भी धराशायी होती जा रही हैं। लोगों के रोजगार नष्ट हो रहे हैं और दुनियाभर की जीडीपी में 10 प्रतिशत गिरावट का अंदेशा है।

कोरोना के लिए वैक्सीन विकसित करने के प्रयास लगातार जारी हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने 15 अगस्त को अपने संबोधन में कहा था कि देश में तीन वैक्सीन के ट्रायल अलग-अलग स्तरों पर चल रहे हैं और देश को कोरोना वैक्सीन जल्द मिल सकती है। उधर ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय द्वारा विकसित वैक्सीन की चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एंड रिसर्च में क्लीनिकल ट्रायल की मंजूरी टाल दी गई है, क्योंकि उसकी सुरक्षा स्वीकृति लंबित है। रूस ने भी एक वैक्सीन का पंजीकरण कर दिया है और उसका व्यावसायिक उत्पादन करने के लिए भारत से संपर्क साधा है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने भी वैक्सीन के उत्पादन के लिए भारत से संपर्क साधा है। वैक्सीन उत्पादन के क्षेत्र में भारत का कोई सानी नहीं है और भारत की कई नामी कंपनियां वैक्सीन उत्पादन में अग्रणी भूमिका रखती हैं। सात भारतीय फार्मा कंपनियां इस समय वैक्सीन निर्माण की दौड़ में शामिल हैं।

दूसरी तरफ कई देशों को यह चिंता सता रही है कि जिस वैक्सीन के बारे में खरीद की वचनबद्धता ली जा रही है, क्या वह कोरोना के खिलाफ प्रभावी भी होगी या नहीं? उन्हें यह भी चिंता है कि क्या वह वैक्सीन उनके बजट में भी होगी? भारत में विकसित होने वाली वैक्सीन के ट्रायल भी अच्छे नतीजे ला रहे हैं। उसके साथ ही रूस ने तो दुनिया में सबसे पहले कोरोना वैक्सीन के लिए लाइसेंस भी जारी कर दिया है। उनके द्वारा प्रकाशित शोध में भी नतीजे अच्छे बताए जा रहे हैं। भारत से उनकी अपेक्षा है कि भारत उसके उत्पादन में सहयोग प्रदान करे। वैक्सीन राष्ट्रवाद : रूस द्वारा वैक्सीन विकसित कर लेने और भारत के वैक्सीन निर्माण में आगे बढ़ जाने के कारण, वैश्विक स्तर पर वैक्सीन बेचकर लाभ कमाने की होड़ में लगी कंपनियां और उनका समर्थक विश्व स्वास्थ्य संगठन काफी विचलित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तो यहां तक कह दिया है कि यह वैक्सीन राष्ट्रवाद वैक्सीन के निर्माण में देरी कर देगा। इससे यह भी कयास लगाया जा रहा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन उनकी समíथत कंपनियों से इतर वैक्सीन निर्माण के कार्य को हतोत्साहित कर सकता है। हालांकि इस कोरोना काल में विश्व स्वास्थ्य संगठन अपनी साख खो रहा है।

वैक्सीन का व्यवसाय : अभी तक अधिकांश वैक्सीन बच्चों को दी जाती रही है। माना जाता है कि बच्चों को विभिन्न प्रकार की वैक्सीन देकर उन्हें विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाया जा सकता है। समय के साथ-साथ भारत में विभिन्न प्रकार की वैक्सीन राष्ट्रीय यूनीवर्सल इम्युनाईजेशन कार्यक्रम में शामिल की गई। इसके अलावा कुछ वैक्सीन ऐच्छिक रूप से भी दी जाती हैं। भारत में अनिवार्य यूआइपी में शामिल है- बीसीजी, ओरल पोलियो वैक्सीन (ओपीवी) जिसे तीन स्तरों पर दिया जाता है, हेपेटाइटिस-बी, रोटोवायरस, पीसीवी, एफआइपी, जेई, डीपीटी बूस्टर और टीटी वैक्सीन। इसके अतिरिक्त गर्भवती महिलाओं को भी अनिवार्य रूप से कुछ वैक्सीन दी जाती हैं। यूं तो इनमें से अधिकांश वैक्सीन भारत में ही बनती हैं और वे काफी सस्ती हैं, क्योंकि उन पर कोई रायल्टी नहीं दी जाती हैं। लेकिन हाल ही में कई नई वैक्सीन यूआइपी में शामिल की गई हैं, जो काफी महंगी हैं, क्योंकि वे पेटेंटीकृत हैं और कंपनियां उनकी भारी कीमत वसूलती हैं।

कोरोना वैक्सीन की न्यायोचित नीति : आज जब भारत कोरोना से निपटने के तमाम बेहतर उपायों के बावजूद कोरोना संक्रमण से प्रभावित देशों की सूची में संख्या की दृष्टि से दूसरे स्थान पर पहुंच गया है, कोरोना से बचाव के लिए जल्द से जल्द वैक्सीन एक अनिवार्यता बन रही है। दुनियाभर में चल रहे वैक्सीन के प्रयासों में से भारत को चुनाव करना होगा। इस चुनाव के तीन मापदंड होंगे। पहला, क्या चयनित वैक्सीन प्रभावी है? कोई भी वैक्सीन सौ प्रतिशत प्रभावी नहीं होगी और उसकी अपेक्षा भी नहीं की जा सकती। लेकिन ऐसी वैक्सीन चुननी होगी जो सबसे ज्यादा प्रभावी होगी।

दूसरा मापदंड होगा वैक्सीन के साइड इफेक्ट का। जिस वैक्सीन का न्यूनतम साइड इफेक्ट हो, उसे चुनना होगा। भारत समेत दुनिया के विकासशील देश, जो इस महामारी के कारण आर्थिक संकट से गुजर रहे हैं, धनाभाव भी एक प्रमुख मुद्दा है।

ऐसे में तीसरा मापदंड वैक्सीन की लागत है। यही वास्तव में वैक्सीन राष्ट्रवाद है, जिससे बचने की सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन दे रहा है। अधिकांश देशों को समझ आने लगा है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कंपनियों को लाभ पहुंचाने की कोशिश में वैक्सीन राष्ट्रवाद को क्यों खराब बता रहा है।

[एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय]