शिवांशु राय। यह सही है कि कानपुर के निकट एक गांव में हाल ही में एक आरोपी को पकड़ने गए उत्तर प्रदेश पुलिस के आठ जवान शहीद हो गए, जो कहीं न कहीं प्रदेश में पुलिस व्यवस्था की दशा को दर्शा गया, लेकिन यह भी सही है कि बढ़ते संगठित अपराध को खत्म करने तथा कानून व्यवस्था कायम रखने के साथ समूचे प्रदेश में महत्वपूर्ण स्थानों की सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए योगी आदित्यनाथ सरकार ने विशेष सुरक्षा बल के गठन की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

सुरक्षा के लिए अनेक दिशा-निर्देश : इस विशेष सुरक्षा बल की आवश्यकता काफी पहले से ही महसूस की जा रही थी और इसके गठन के लिए काफी पहले योजना बनाई गई थी, परंतु अदालतों की सुरक्षा और पिछले साल बिजनौर सीजेएम कोर्ट परिसर में हत्या जैसी आपराधिक घटना के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए पिछले साल दिसंबर में अदालत परिसरों की सुरक्षा के लिए अनेक दिशा-निर्देश दिए थे, जिसमें विशेष प्रशिक्षित बल को तैनात करने का भी आदेश था।

पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में नक्सली प्रभाव :आंतरिक सुरक्षा की दृष्टि से देखें तो उत्तर प्रदेश काफी संवेदनशील प्रदेशो में से एक है। प्रदेश में चौतरफा सुरक्षा संबंधी समस्याएं कानून व्यवस्था के लिए चुनौती बनी रहती हैं। सूबे के अधिकतर जिलों में अपराधियों और उनके सरगनाओं के बीच संगठित अपराध और गैंगवार, सामुदायिक टकराव और सांप्रदायिक दंगे की आशंका, नेपाल से सटे सीमावर्ती इलाकों से घुसपैठ और तस्करी, पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में नक्सली प्रभाव और पिछले वर्षों के दौरान हुए अनेक आतंकी घटनाओं से प्रदेश के भीतर सुरक्षा के तौर तरीकों और प्रणाली में सुधार की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। सूबे में अनेक धार्मिक और पर्यटन स्थलों के जिलों जैसे अयोध्या, वाराणसी, आगरा और प्रयागराज आदि हमेशा आतंकियों के निशाने पर रहे हैं और अनेक बार आतंकी घटनाएं भी हुई हैं। ऐसे में राज्यों के पास इस तरह के विशेष पुलिस बल के गठन और प्रमुख प्रतिष्ठानों व स्थलों पर तैनाती से सुरक्षा व्यवस्था को सुदृढ, सशक्त और पुलिस इकाइयों से समन्वय बनाने में सहायक होगा।

अपराधियों पर नकेल कसने में कामयाबी हासिल: दरअसल उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनावी एजेंडे में भी प्रदेश की कानून व्यवस्था सबसे ऊपर थी। इसे ध्यान में रखते हुए योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश का मुख्यमंत्री पद ग्रहण करने के बाद पुलिस सुधारों की चर्चा को जीवंत रखने वाले और 1977-81 के पुलिस आयोग की भुला दी गई सुधार सिफारिशों को शीर्ष न्यायपालिका में ले जाने वाले पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह से मुलाकात की थी और उनके अनेक सुझावों को अमल में लाने का आश्वासन दिया था। सरकार ने अपने कार्यकाल के शुरू होते ही क्रमवार तरीके से प्रदेश में आपराधिक घटनाओं और अपराधियों पर कार्रवाई करते हुए उन पर नकेल कसने में काफी हद तक कामयाबी हासिल की है।

पुलिस सुधार की दिशा में बड़ा कदम: पहले अपराधियों की गिरफ्तारी, एनकाउंटर, संगठित अपराधों और राजनीतिक संरक्षण को खत्म करना, आतंकी वारदातों से निपटने के लिए खुफिया तंत्र, सांप्रदायिक दंगे तथा तनाव को दूर करने और केंद्र के साथ बेहतर समन्वय ने प्रदेश में आंतरिक शांति और सुरक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाया है। सरकार प्रदेश की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था को लगातार चुस्त-दुरुस्त, आधुनिक और प्रगतिशील बनाने के लिए अनेक नए कदम उठा रही है। मसलन कुछ ही महीने पहले सरकार ने स्मार्ट पुलिसिंग और पुलिस सुधार की दिशा में बड़ा कदम उठाते हुए लखनऊ और नोएडा में कमिश्नर प्रणाली को शुरू किया है, क्योंकि बड़े शहरों में बड़े औद्योगिक ईकाइयों, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और अन्य राज्यों से आने वाले लोगों के कारण सुरक्षा के मानकों को कमिश्नर प्रणाली से प्रशासनिक और कानून व्यवस्था को एकीकृत रूप में संभालने में आसानी होती है। वहीं दूसरी ओर मौजूदा पुलिस व्यवस्था के परंपरागत तौर-तरीके और व्यवस्था में लीक से हटकर क्रमिक रूप से पुलिस सुधार की दिशा में नवाचारों को अपना रही है।

प्रधानमंत्री मोदी वर्ष 2014 में जब प्रधानमंत्री बने थे, उसी वर्ष उन्होंने गुवाहाटी में एक कार्यक्रम में स्मार्ट पुलिस के लिए स्मार्ट का अर्थ बताया था। एस यानी स्ट्रिक्ट और सेंसटिव, एम यानी मॉडर्न और मोबाइल, ए यानी एलर्ट और अकाउंटेबल, आर यानी रिलाएबल और रिस्पांसिव, टी यानी टेक्नोसेवी और ट्रेंड। परंतु पुलिस व्यवस्था को स्मार्ट बनाने और पुलिस सुधारों को लागू करने में शुरू से लेकर आज तक अनेक राज्यों ने पुलिस सुधार और गठित विभिन्न कमेटियों और प्रकाश सिंह बनाम भारत सरकार केस 2006 में सुप्रीम कोर्ट की व्यापक गाइडलाइंस को नजरअंदाज किया है।

सशस्त्र पुलिस के बीच अलग कैडर: पिछले साल कॉमन कॉज और सेंटर फॉर द स्टडी डेवलपिंग सोसाइटीज ने भारत में पुलिस बल की स्थिति रिपोर्ट 2019 में यह साफ निष्कर्ष था कि भारत में पुलिस और जनता के बीच असंतोष जनक संबंध का मुख्य कारण पुलिस सुधारों में लापरवाही रही है। पुलिस सुधारों में आपराधिक जांच, पुलिस के काम के घंटों और अवकाश की स्पष्ट और तर्कसंगत अवधारणा, नागरिक और सशस्त्र पुलिस के बीच अलग कैडर, राजनीतिक दबाव, मानसिक स्थिति और मानवीय पक्ष, आधुनिकीकरण, प्रदेश सुरक्षा आयोग, नए पुलिस अधिनियम आदि रहे हैं और समय समय पर अनेक आयोगों ने भी इसे लागू करने की अनुशंसा की है।

कानून का शासन, नागरिक प्रशासन और पुलिस व्यवस्था में राज्य के द्वारा समुचित प्रबंधन, सुरक्षित माहौल, नागरिक सहभागिता से निवेश, आर्थिक विकास, शांति, साक्षरता और समृद्धि में सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। कानून का शासन और कड़ाई से क्रियान्वयन से नागरिकों का राज्य पर भरोसा बढ़ता है और वह अपनी प्रतिभा का भी समुचित उपयोग प्रशासन की दक्षता, कार्यकुशलता और गुणवत्ता में योगदान देता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में पुलिस सुधारों के क्रम में तेजी से कदम उठाते हुए पुलिस और जनता के बीच विश्वास बहाली, केरल, असम, राजस्थान और तमिलनाडु में सामुदायिक पुलिस व्यवस्था जैसे मॉडल की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए।

कम्युनिटी पुलिसिंग मॉडल में पुलिस के कार्यों में नागरिकों की सहभागिता और सकारात्मक विश्वास बहाली में एक अनूठी पहल है। औपनिवेशिक प्रवृत्ति की मानसिकता वाली पुलिस व्यवस्था और नागरिकों के बीच पुलिस नागरिक संबंध को प्रतिक्रियाशील दृष्टिकोण को बदलने की व्यापक पहल की जानी चाहिए। प्रदेश में जिला अपराध रिकार्ड ब्यूरो, राज्य अपराध रिकार्ड ब्यूरो, राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो और संगठित अपराध सूचना प्रणाली के बीच बेहतर समन्वय स्थापित किया जाना चाहिए। साथ ही खुफिया तंत्र को मजबूत कर सभी विशेष बलों और पुलिस इकाई के साथ प्रभावोत्पादकता में वृद्धि की जानी चाहिए। इसी दिशा में योगी सरकार द्वारा यूपीएसएसएफ का गठन और पुलिस व्यवस्था में नवाचारों की दिशा में एक बेहतर कदम है जो अन्य राज्यों के लिए भी मिसाल बन सकता है। [स्वतंत्र टिप्पणीकार]