[विवेक ओझा]। विश्व व्यवस्था उथल-पुथल के दौर से गुजर रही है। एक तरफ महासागरीय विवाद हैं तो दूसरी तरफ विभिन्न देशों और संगठनों के मध्य व्यापारिक युद्ध की स्थिति बनी हुई है। शरणार्थियों और अवैध प्रवासियों की समस्या है, तो वहीं ऑस्ट्रेलिया और अमेजन में पर्यावरणीय आपातकाल जैसी घटनाएं देखने को मिली हैं। इसी बीच अमेरिकी राष्ट्रपति ने हाल ही में इजरायल और फलस्तीन के विवाद के समाधान के लिए अपनी मध्य पूर्व योजना देकर इस क्षेत्र में एक नई बहस को बढ़ावा दिया है।

ट्रंप ने इजरायल -फलस्तीन समस्या के समाधान के प्रस्ताव को शताब्दी का समझौता कहा है। इसके तहत ट्रंप ने प्रस्ताव दिया है कि वेस्ट बैंक और जॉर्डन घाटी में यहूदी अधिवासों का नियंत्रण रहे यानी इन क्षेत्रों पर इजरायल की संप्रभुता और नियंत्रण स्थापित रहे। ट्रंप के इस प्रस्ताव को 1993 के ओस्लो शांति समझौते का उल्लंघन माना जा रहा है जिसमें फलस्तीनी राज्य के विचार को मान्यता दी गई थी।

क्या है इस शांति प्रस्ताव में : शांति प्रस्ताव में जॉर्डन घाटी पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता देते हुए नियंत्रण को धीरे-धीरे भविष्य में कम करने का सुझाव दिया गया है। इसमें वेस्ट बैंक को उत्तरी और दक्षिणी भागों में विभाजित करने की बात की गई है और फलस्तीन का तुष्टीकरण करते हुए यह प्रस्ताव किया गया है कि गाजा को वेस्ट बैंक से जोड़ने वाले सड़क मार्ग को एक बार फिर से बनाया जाए। मध्य पूर्व योजना में फलस्तीन को इजरायली क्षेत्र में स्थित असडोड में बंदरगाह पहुंच देने और फलस्तीन को पुल और सुरंगों की सुविधा देने की बात की गई है। गाजा क्षेत्र में वर्तमान में फलस्तीनियों पर हमास का शासन है और नए प्रस्ताव के तहत फलस्तीनियों को मिस्न की सीमा के निकट इजरायल क्षेत्र में भूमि आदान-प्रदान की सुविधा देने का प्रस्ताव है। फलस्तीन की भविष्य में राजधानी पूर्वी यरुशलम में करने का प्रस्ताव है और इजराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी स्पष्ट किया है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ने यरुशलम के पड़ोस में अबू दिस को फलस्तीन की राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया है।

इजराइल को गाजा पर संप्रभुता : इस योजना के तहत इजरायल को गाजा के क्षेत्रीय जल पर संप्रभुता देने की बात की गई है और इसमें यरुशलम को इजरायल के अविभाजित राजधानी के रूप में प्रस्तावित किया गया है। योजना के अनुसार इसका नाम बदलकर अल कुद्स किया जा सकता है जो कि यरुशलम का अरबी नाम है या फिर फलस्तीन अपनी राजधानी का नाम अपनी पसंद के आधार पर रख सकता है।

ट्रंप के प्रति अविश्वास के कारण : अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने फलस्तीनियों को कहा है कि अमेरिका उनके लिए बहुत कुछ करेगा, लेकिन फलस्तीनियों को ट्रंप में अविश्वास करने के कारण भी नजर आते हैं। अमेरिका ने हाल में अपना दूतावास तेल अबीब से हटाकर यरुशलम कर दिया है और उसने एक पक्षीय स्तर पर गोलन पहाड़ियों पर इजरायल की संप्रभुता को मान्यता दी है। ऐसे में फलस्तीन ट्रंप की मंशाओं को लेकर सशंकित हैं। ट्रंप के प्रस्ताव में कहा गया है कि भविष्य के नए फलस्तीनी राज्य के लिए 50 बिलियन डॉलर के सहयोग को सुनिश्चित किया जाएगा। इस प्रस्ताव में फलस्तीनी मूल के इजरायली नागरिकों को नए फलस्तीनी राज्य में बसाने की बात भी की गई है। ट्रंप ने इजरायल और फलस्तीन की समस्या को लेकर दो राज्य समाधान की बात की है। इसमें भविष्य के फलस्तीन में वेस्ट बैंक और गाजा के होने की बात की है जो सड़क और नहर के जरिये जुड़े रहेंगे। ट्रंप ने इसके साथ ही इजरायलियों को चार वर्षों के लिए यहूदी अधिवास निर्माण को बंद करने की वकालत की है और यूरोपीय संघ ने भी यही बात इजराइल से कही है।

इस्लामिक सहयोग संगठन ने खारिज किया अमेरिकी प्रस्ताव : उल्लेखनीय है कि 57 सदस्यीय इस्लामिक सहयोग संगठन ने अमेरिका के मध्य पूर्व प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया है। सऊदी अरब के जेद्दा में इस विषय पर हुई बैठक में सदस्य राष्ट्रों से अनुरोध किया गया कि वह अमेरिका की मध्य पूर्व योजना को और अमेरिका के इस तरीके की किसी मध्यस्थता को स्वीकार ना करें और फलस्तीनी लोगों के जायज राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक अधिकारों के पक्ष में संगठित स्तर पर काम करें। इसके साथ ही 22 सदस्यी अरब लीग ने भी अमेरिका के मध्य पूर्व प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा कि यह फलस्तीनियों के बुनियादी अधिकारों को न्यूनतम स्तर पर भी पूरा नहीं करता।

भारत का फलस्तीन को सहयोग : भारत प्रतिवर्ष फलस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूनाइटेड नेशंस रिलीफ एंड वर्क एजेंसी में सहयोग दे रहा है। वर्तमान में भारत पांच मिलियन डॉलर का योगदान देता है। भारत ने फलस्तीन को शर्तरहित समर्थन और सहयोग देना जारी रखा है। 2018 में भारतीय प्रधानमंत्री ने फलस्तीन में विकास परियोजनाओं के लिए 42.1 मिलियन डॉलर उपलब्ध कराने की घोषणा की। 2017 में भारत ने फलस्तीन की इंटरपोल में सदस्यता का समर्थन किया था। इसी वर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा में येरुशलम पर प्रस्ताव का समर्थन किया। फलस्तीनी लोगों के आबादी के संरक्षण के लिए लाए गए प्रस्तावों के पक्ष में भारत ने मतदान किए हैं। भारत की विदेश नीति में फलस्तीन के अधिकारों के समर्थन पर विशेष ध्यान दिया गया है। अरब विश्व और इस्लामिक विश्व के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने, खाड़ी देशों से अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बचाए रखने आदि कारकों से भी प्रेरित होते हुए भारत ने एक संप्रभु फलस्तीन का समर्थन करते हुए इजराइल फलस्तीन विवाद के समाधान की उम्मीद जताई है।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]