नई दिल्ली, जेएनएन। Us-China Trade War News भारत कुछ इस्पात और एल्यूमीनियम उत्पादों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए उच्च शुल्क से छूट देने, सामान्यीकृत प्रणाली के तहत कुछ घरेलू उत्पादों को निर्यात लाभ फिर से शुरू करने और कृषि, वाहन, वाहनों के कल-पुर्जे व इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों से अपने उत्पादों के लिए अधिक बाजार पहुंच उपलब्ध कराने की मांग कर रहा है। दूसरी ओर अमेरिका कुछ सूचना और संचार प्रौद्योगिकी उत्पादों पर आयात शुल्क में कटौती के अलावा अपने कृषि और विनिर्माण उत्पादों, डेयरी वस्तुओं व चिकित्सा उपकरणों के लिए अधिक बाजार पहुंच चाहता है।

भारत और अमेरिका के वस्तु और सेवाओं के द्विपक्षीय व्यापार में व्यापार संतुलन भारत के पक्ष में है। इसका मतलब है भारत का अमेरिका में निर्यात ज्यादा है और भारतीय बाजार में अमेरिकी वस्तुओं का आयात कम होता है। वर्ष 2017 में दोनों देश का द्विपक्षीय व्यापार 126 बिलियन डॉलर था, जो 2018 में 142 बिलियन डॉलर पहुंच गया। दोनों 500 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार तक पहुंचने की भी सोच रहे हैं।

वर्ष 2017 में अमेरिका ने 77 बिलियन डॉलर मूल्य के भारतीय वस्तु और सेवाओं का आयात किया जबकि इसी वर्ष भारत में अमेरिकी निर्यात केवल 48.8 बिलियन डॉलर रहा। इस व्यापारिक असंतुलन ङोलने वाले अमेरिका ने भारत पर आरोप लगाया कि भारत अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं को समतामूलक बाजार पहुंच नहीं दे रहा है। अमेरिका जीएसपी और अन्य कार्यक्रमों के द्वारा दुनिया भर के देशों को जिस तरह से शुल्क मुक्त बाजार पहुंच देता है उससे वर्तमान में उसका व्यापारिक घाटा रिकॉर्ड 891 बिलियन डॉलर पहुंच गया है। इसी बीच वह चीन से भी व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है।

अमेरिका का आरोप है कि चीन भी अमेरिकी वस्तुओं और सेवाओं को समतामूलक बाजार पहुंच अपने यहां नहीं देता और अमेरिकी बाजार चीन के निर्यात से भरा रहता है। अमेरिका और चीन के मध्य द्विपक्षीय वस्तु और सेवा व्यापार 2018 में 737 बिलियन डॉलर है। अमेरिका ने कुल 557.9 बिलियन डॉलर मूल्य के चीनी वस्तु और सेवाओं का आयात किया, जबकि चीन के बाजार में अमेरिका का निर्यात मात्र 179 बिलियन डॉलर रहा। यहां भी व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में है।

लिहाजा ट्रंप ने 2018 में 250 बिलियन मूल्य वाले चीनी वस्तुओं पर टैरिफ 10 प्रतिशत से बढ़ा कर 25 प्रतिशत कर दिया। इन सभी बातों को ध्यान में रखकर आज चीन के संबंध में भारत के प्रतिस्पर्धी हित अमेरिकी गठजोड़ से मजबूत तो हो सकते हैं, लेकिन भारत को एक बेहतर सौदेबाजी और कूटनीतिक रणनीति का परिचय देना होगा।