प्रो. लल्लन प्रसाद। विश्व की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार भी है। दोनों देशों के बीच सामान एवं सेवाओं के आयात निर्यात में वृद्धि हुई है। 21वीं सदी के प्रारंभ में दोनों देशों के बीच व्यापार 20 अरब डॉलर से भी कम था, जो 2018 में 142 अरब डॉलर पहुंच गया। 2018 में अमेरिका ने भारत से 83.9 अरब डालर के सामान आयात किया और 58.7 अरब डॉलर का सामान भारत को बेचा। इस बीच 25.2 अरब डॉलर की सेवाएं भारत को निर्यात किया और 54.8 अरब डॉलर की सेवाएं भारत से आयात किया। निर्यात की अपेक्षा भारत अमेरिका से कम माल एवं सेवाएं आयात करता रहा है जिससे अमेरिका का व्यापार घाटा बढ़ता रहा। 2001 में यह घाटा 6.1 अरब डॉलर था जो 2018 में 25 अरब डॉलर पहुंच गया।

भारत का मानना है कि अमेरिका ने कई चीजों पर टैरिफ बढ़ा कर भारतीय उद्योगों को दुष्प्रभावित किया है। स्टील व एल्युमीनियम पर क्रमश: 25 एवं 10 प्रतिशत ड्यूटी अमेरिका ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा धारा 232 के ट्रेड एक्सपेंशन एक्ट 1962 के अंतर्गत निर्धारित कर दिया जिससे भारत के इन उद्योगों को धक्का लगा। भारत एक विकासशील देश है, उसको ड्यूटी फ्री या कम ड्यूटी की सुविधा मिलनी चाहिए ताकि उसके उद्योगों का विकास हो सके। भारत के सॉफ्टवेयर व बीपीओ सेवाओं के निर्यात पर भी अमेरिका अंकुश लगाता रहा है। राष्ट्रपति ट्रंप की नीति ‘अमेरिकी खरीदो, अमेरिकी को काम दो’ के अंतर्गत वीजा के नियमों को कड़ा करके अमेरिका ने भारतीय सॉफ्टवेयर कार्मिकों, इंजीनियरों और प्रशिक्षित कामगारों के अमेरिका में काम करने और बसने के अवसरों में कमी की। उनकी इस नीति के पूर्व 75 प्रतिशत एच-1 वीजा भारतीयों को मिल रहा था। इससे भी भारत की चिंता बढ़ी।

ट्रंप की भारत यात्र में रक्षा सौदे के अलावा ट्रंप एवं मोदी के बीच कृषि पदार्थो और मेडिकल उपकरणों, बौद्धिक संपदा एवं आविष्कार, एच-1 वीजा आदि पर भी चर्चा हुई। भारतीय उद्योगपतियों को ट्रंप ने अमेरिका में निवेश की अधिक सुविधाओं का आश्वासन दिया। भारत के साथ बड़े व्यापार समझौते की संभावना अपने देश में राष्ट्रपति चुनाव के बाद ही जताई जो भारत भी चाहता है। समझौते के मसौदे पर दोनों देश इस वर्ष ही अप्रैल से काम शुरू कर देंगे।

प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के रिश्तों में जो गरमाहट है वह व्यापार संबंधों में भी होगी, इसकी उम्मीद दोनों देशों में बढ़ी है। अप्रैल 2020 में समझौते को लेकर जो बातचीत शुरू होनी है, भारत को आशा है जून 2019 के पहले जीएसपी के अंतर्गत भारत को जिन वस्तुओं के निर्यात की ड्यूटी फ्री की सुविधा थी, वह पुन: दी जाएगी। एच-1 वीजा एवं भारतीय मूल के कर्मचारियों के वेतन से सामाजिक सुरक्षा के लिए अमेरिका में जो कटौती होती थी और जिसे वापस लेने के लिए कम से कम दस वर्षो की सेवा अनिवार्य है, उस पर भी अमेरिका को पुनर्विचार करना होगा। अमेरिकी डेयरी उत्पादों के बाजार खोलने के लिए भारत ने शर्त रखी है कि जिन पशुओं के दूध से ये बनाए जाते हैं उन्हें मांसाहार न दिया जाय।

भारत इस बात से अवगत है कि व्यापार समझौते के कुछ मुद्दे ऐसे हैं जिन पर अमेरिकी कांग्रेस को फैसला लेना है। इसलिए उनके संबंध में निर्णय जल्दबाजी में नहीं लिया जा सकता। बड़ा समझौता तभी हो सकता है जब दोनों देश इसे अपने हित में मानते हैं और दोनों को इससे लाभ होगा। भारत और अमेरिका के बीच बड़े सौदे पर जो विचार विमर्श चल रहा है वह दोनों देशों के हित में सफलतापूर्वक संपन्न होगा इसकी उम्मीद है।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय के बिजनेस इकोनॉमिक्स विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष हैं)