संजय दुबे। हाल ही में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया है। अब घाघरा को सरयू नदी के नाम से ही जाना जाएगा। इससे एक बात स्पष्ट है कि योगी सरकार उत्तर प्रदेश की आध्यात्मिक विरासत के प्रति काफी संवेदनशील है। चाहे भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या हो या अब घाघरा का नाम परिवर्तन, सबका मंतव्य स्पष्ट है। प्रदेश की आध्यात्मिकता से सभी लोग परिचित हो सकें। अभी हाल ही में प्रदेश सरकार ने अयोध्या के विकास के लिए चतुर्दिक प्रयास किए हैं। आधारभूत ढांचा विकास के साथ इसे एक विशेष वैश्विक धार्मिक पर्यटन स्थल के रूप में दुनिया के समक्ष रखा जा रहा है।

अयोध्या की दीपावली पिछले दो वर्षो से लोगों के जेहन में है। आने वाले वर्षो में इसे और भव्यता देने की मंशा भी दिख रही है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में अन्य वैश्विक आध्यात्मिक आयोजन नहीं होते हैं। काशी की रामलीला, ब्रज की कृष्ण लीला, होली, प्रयागराज के माघ और कुंभ मेले समूची दुनिया में प्रख्यात हैं। इन्हें देखने-सुनने के लिए देश भर से ही नहीं, विदेशों से भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

ऐसे में अब भगवान राम से जुड़ी सरयू नदी भी आने वाले वर्षो में महत्वपूर्ण स्थान पाएगी। इस नदी के साथ अब तक विडंबना यह रही है कि इसे स्थान-स्थान पर भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता रहा है। यह नदी तिब्बत के पठार मापचाचुंगो हिमनद से निकलती है। नेपाल के रास्ते आने वाली यह नदी गोंडा तक घाघरा के नाम से जानी जाती है, उसके बाद इसे सरयू कहा जाता है। अगर हम कहें कि घाघरा नाम इसका भौतिक है, आध्यात्मिक स्वरूप सरयू है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। ब्रिटिश शासनकाल में लॉर्ड कनिंघम ने इसका जिक्र घाघरा के रूप में किया है जिसके चलते इसकी ख्याति इसी नाम से ज्यादा है। जबकि इसकी ऐतिहासिकता और धार्मिकता काफी पुरानी है। इसकी पौराणिकता भी काफी पुरानी है। ऋग्वेद में इसका वर्णन किया गया है। जहां इसे यदु और तुर्वससु ने पार किया। यदु से यादव और तुर्वससु से यवन हुए। ये राजा ययाति के पुत्र थे जिन्होंने संपूर्ण पृथ्वी पर राज्य किया।

इसका सबसे रोचक प्रसंग पुराणों में मिलता है। जहां इसकी उत्पत्ति नारायण के नेत्रों से बताई गई है। प्राचीनकाल में एक शंकासुर नाम का दैत्य था। इसने चारों वेदों को चुराया और गहरे समुद्र में जाकर छिप गया। तब भगवान विष्णु ने मछली का रूप धरकर इसका वध किया। फिर जाकर समस्त वेदों को लाकर ब्रह्मा को सौंप दिया। इन वेदों को उन्हें सौंपते हुए भगवान विष्णु की आंखों से प्रेमाश्रु टपक पड़े जिसे ब्रह्मा ने मानसरोवर में सुरक्षित कर लिया। वैवश्वत महाराज ने इसे अपने बाणों से निकाला और यहीं सरयू नदी का उद्गम हुआ। बाद में भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा का अवतरण कराया। इन्होंने ही गंगा और सरयू नदी का संगम भी कराया। इस प्रकार सरयू भी भगवान श्रीराम के वंश से संबद्ध है। सरयू नदी का उल्लेख हिंदू धर्म के कई ग्रंथों में है।

अपने मूल उद्गम कैलाश मानसरोवर से निकलने के बावजूद यह भौगोलिक या अन्य प्राकृतिक कारणों से वहां से लुप्त हो जाती है। इसके बाद लखीमपुर जिले के सिंगाही के विशाल झील से निकलकर गंगा के मैदानी इलाके में बहने वाली नदी बन जाती है। यहां से चलकर यह बलिया और छपरा के बीच सिताबदियारा में गंगा में मिलती है। कालिदास ने सरयू और गंगा के संगम को तीर्थस्थान बताया है। यहीं पर राजा दशरथ के पिता महाराज अज ने वृद्धावस्था में अपने प्राण त्यागे थे। रामायण काल में सरयू नदी एक प्रमुख नदी थी जिसके किनारे पर घना जंगल था। इसी जंगल में शिकार खेलते समय राजा दशरथ से श्रवण कुमार की गलती से हत्या हो गई थी।

ऐसी मान्यता है कि उसी के चलते श्रवण कुमार के नेत्रहीन माता-पिता ने महाराज दशरथ को पुत्र वियोग से प्राणोत्सर्ग का श्रप दिया था जो आगे चलकर सही साबित हुआ। इस तरह हम देखते हैं कि सरयू नदी का महत्व उत्तर प्रदेश सहित नेपाल में महज आर्थिक और सामाजिक रूप में ही नहीं है। इसके इतर इसका आध्यात्मिक महत्व भी है। इससे यहां लोकजीवन पूरित-पालित ही नहीं होता, बल्कि उससे जीवन को स्पंदन व सारगर्भित ध्येय भी मिलता है जो कि भारतीय जीवन का एक प्रमुख ध्येय भी रहा है। भारतीय जीवन का उद्देश्य सिर्फ भौतिकता के स्तर पर ही जीना नहीं होता। उसे परिपूर्ण बनाने पर जोर दिया जाता रहा है। संपूर्ण भारतीय मनीषी जगत इसके भिन्न-भिन्न रूपों का चितंन करता रहा है।

अब जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसके नाम को बदलने का प्रस्ताव केंद्र को भेज दिया है, तब कुछ आस जगी है। जैसे इसके जलस्तर को लेकर एक मानक तय होगा कि वर्ष भर एकसमान बना रहेगा। दूसरे इसके भीतर अपशिष्टों को बहाया नहीं जाएगा। तीसरे इसकी जैव विविधता को भी संरक्षित करने में मदद मिलेगी।

यह बात सभी को पता है कि भगवान श्रीराम का जन्म सरयू तट पर ही हुआ था। इसी की पावन जल धारा में उन्होंने अपने कुल बांधवों संग जलसमाधि ली थी। ऐसे में यह अपने आप में स्पष्ट है कि समूची घाघरा नदी का नाम जब सरयू कर दिया गया है तब इसके महज भौतिक मायने ही नहीं है। इसका आध्यात्मिक ध्येय भी परिलक्षित है।उत्तर प्रदेश के बड़े भौगोलिक इलाके में बहने वाली एक बड़ी नदी भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में दो नामों से जानी जाती है जिसे सभी क्षेत्रों में एक ही नाम देना एक प्रदेश सरकार का उचित फैसला है

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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