[ संजय गुप्त ]: राष्ट्रपति चुनाव नतीजों के अनुमोदन के समय अमेरिकी संसद की कार्यवाही जिस तरह ट्रंप समर्थकों की अराजकता का शिकार हुई, उससे अमेरिका की सारी दुनिया में फजीहत तो हुई ही, उसका यह दावा भी कमजोर हुआ कि वह सबसे मजबूत लोकतंत्र है। अमेरिकी संसद के बाहर और अंदर जो अकल्पनीय हिंसा हुई और जिसमें एक सुरक्षा कर्मी समेत पांच लोग मारे गए और कई घायल हुए, उसके लिए राष्ट्रपति ट्रंप ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव नतीजे स्वीकार न करने और उसका विरोध करने के लिए उकसाया। उनके इसी रवैये के कारण फेसबुक, ट्विटर आदि ने उनके खातों पर अस्थायी रोक लगा दी। उनका आचरण किस तरह राष्ट्रपति की गरिमा के प्रतिकूल रहा, यह उनके सहयोगियों के त्यागपत्र देने और कई रिपब्लिकन नेताओं की ओर से उनकी खुली आलोचना करने से स्पष्ट हो जाता है। हालांकि गत वर्ष नवंबर में चुनाव परिणाम आने के बाद से ही ट्रंप चुनाव प्रक्रिया में धांधली का आरोप लगाकर नतीजों को अस्वीकार कर रहे थे, लेकिन इसकी उम्मीद किसी को नहीं थी कि वह सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण में इस तरह बाधा खड़ी करेंगे और उपराष्ट्रपति पर दबाव बनाने के साथ अपने समर्थकों को इतने खुले तरीके से उकसाएंगे।

अमेरिकी संसद में हिंसा के बाद ट्रंप लांछित और अवांछित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाएंगे

अमेरिकी संसद में हिंसा के बाद ट्रंप भले ही शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार हो गए हों, लेकिन उनकी जैसी निंदा हुई, उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। अपनी इस निंदा के लिए वही जिम्मेदार हैं। यह साफ है कि ट्रंप हाल के इतिहास के सबसे लांछित और साथ ही अवांछित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाएंगे। वह राष्ट्रपति बनने के पहले ही विवादों से घिर गए थे। माना यह जा रहा था कि वह अपनी अप्रत्याशित जीत के बाद अपने रवैये में सुधार करेंगे और राष्ट्रपति की गरिमा के अनुरूप आचरण करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इन्कार किया।

राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप की प्रतिष्ठा ही नहीं गिरी, बल्कि अमेरिका की छवि पर पड़ा बुरा असर

वह अपने पूरे कार्यकाल में एक के बाद एक विवादित फैसले करते रहे। उनके तमाम फैसले ऐसे रहे, जिनसे राष्ट्रपति के रूप में उनकी प्रतिष्ठा तो गिरी ही, वैश्विक स्तर पर अमेरिका की छवि पर भी विपरीत असर पड़ा। उन्होंने पेरिस जलवायु संधि को ठुकराने के साथ ही यह कहना भी शुरू कर दिया कि ग्लोबल र्वांिमग जैसी कोई समस्या ही नहीं। सच की अनदेखी करने का उनका यह रवैया कोरोना वायरस के संक्रमण के समय भी दिखा। प्रारंभ में उन्होंने कोरोना वायरस जनित कोविड-19 को कोई गंभीर बीमारी मानने से ही इन्कार कर दिया। इसके चलते अमेरिका को कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ा। ट्रंप ने कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से किनारा करने के साथ ही, संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण संस्थाओं, जैसे यूनेस्को और विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी अमेरिका को बाहर निकालने का काम किया। इससे ये संस्थाएं कमजोर तो हुई हीं, उन पर उस चीन का दबदबा बढ़ा, जिससे वह मुकाबला करने का दम भरते थे। आज स्थिति यह है कि तानाशाह चीन अमेरिका पर कटाक्ष करने में लगा हुआ है।

ट्रंप के कारण अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचाने में रिपब्लिकन पार्टी भी जिम्मेदार है

ट्रंप की राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी। वह उद्योगपति के रूप में जाने जाते थे। यह बात और है कि उद्योगपति के तौर पर भी उनकी छवि विवादों से घिरी रही। यह एक पहेली ही है कि रिपब्लिकन पार्टी ने उन्हें राष्ट्रपति का उम्मीदवार क्यों बनाया? अगर ट्रंप के कारण अमेरिका की छवि को नुकसान पहुंचा तो इसके लिए एक हद तक रिपब्लिकन पार्टी भी जिम्मेदार है, जिसने कोई राजनीतिक अनुभव न होने के बाद भी उन्हें प्रत्याशी बना दिया। रिपब्लिकन पार्टी ने उन पर लगाए गए तमाम लांछनों की अनदेखी की। उनके राष्ट्रपति बनने पर यह तो अपेक्षित था कि वह कुछ अलग ढंग से काम करेंगे, लेकिन इसकी उम्मीद शायद ही किसी को रही हो कि वह मनमानी का परिचय देंगे और सामान्य राजनीतिक शिष्टाचार को भी ताक पर रख देंगे। कई बार तो वह सनक में आकर फैसले करते और फिर उनसे पलटते भी दिखे। उन्होंने कई ऐसे काम किए, जिनसे उनकी जगहंसाई हुई। राष्ट्रपति के तौर पर उन्होंने उच्च पदों पर नियुक्त अपने कई सहयोगियों को जिस तरह हटाया, उसकी भी मिसाल मिलना कठिन है। अक्सर वह उन्हें हटाने की जानकारी ट्वीट करके देते थे। विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, सुरक्षा सलाहकार को वह ऐसे चलता करते, मानों वे मामूली पदों पर कार्यरत साधारण लोग हों। चार वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने महत्वपूर्ण पदों पर स्वयं द्वारा नियुक्त कई लोगो को बार-बार बदला। वह मीडिया से न केवल झगड़ते रहे, बल्कि उसे लांछित भी करते रहे।

बाइडन के लिए ट्रंप के गलत फैसलों से हुए नुकसान की भरपाई करना आसान नहीं होगा

यह सही है कि डेमोक्रेट की अपेक्षा रिपब्लिकन ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति पर ज्यादा जोर देते हैं, लेकिन ट्रंप इस नीति को एक अलग ही स्तर पर ले गए। इस नीति पर जरूरत से ज्यादा जोर देने के फेर में उन्होंने अमेरिका के साथ-साथ दुनिया को भी मुश्किलों में डाला। उन्होंने अफगानिस्तान के लिए खतरा बने तालिबान से समझौता किया और वह भी तब जब वे हिंसा बंद करने के लिए तैयार नहीं थे। साफ है कि जो बाइडन के लिए ट्रंप के गलत फैसलों से हुए नुकसान की भरपाई करना आसान नहीं होगा। उन्हें सबसे अधिक मेहनत ट्रंप के कारण अमेरिकी समाज में विभाजन की जो खाई पैदा हो गई है, उसे पाटने में करनी होगी। ट्रंप ने श्वेत चरमपंथियों को जिस तरह बढ़ावा दिया उससे अमेरिका को सामाजिक रूप से बहुत नुकसान पहुंचा है। विडंबना यह रही कि जब अश्वेत लोग पुलिस के हिंसक रवैये के खिलाफ सड़कों पर उतरे तो ट्रंप ने उन्हें भरोसा दिलाने की कोई पहल नहीं की।

ट्रंप अपने पीछे एक ऐसा अतीत छोड़ जाएंगे, जिसे भूलना आसान नहीं होगा

चूंकि अब बाइडन के राष्ट्रपति बनने में कोई अड़चन नहीं इसलिए ट्रंप 20 जनवरी को व्हाइट हाउस से विदा तो हो जाएंगे, पर वह अपने पीछे एक ऐसा अतीत छोड़ जाएंगे, जिसे अमेरिकी भूलना ही पसंद करेंगे। नि:संदेह यह आसान नहीं होगा, क्योंकि ट्रंप ने अपने फैसलों से अमेरिका को कहीं ज्यादा नुकसान पहुंचाने का काम किया है। बेहतर हो कि रिपब्लिकन नेता यह संकल्प लें कि वह उनके जैसे नेता को आगे बढ़ाने की गलती फिर नहीं करेंगे। यह ठीक नहीं कि अभी भी कई रिपब्लिकन नेता न केवल ट्रंप के साथ खड़े हैं, बल्कि उनकी इस बात पर यकीन भी कर रहे हैं कि चुनावों में वाकई धांधली हुई। इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अपने तेवर नरम करने के बाद भी ट्रंप बाइडन के शपथ ग्रहण में शामिल होने से इन्कार कर रहे हैं।

[ लेखक दैनिक जागरण के प्रधान संपादक हैं ]