ए. सूर्यप्रकाश। भारत पूरे विश्व में आतंकवाद का बड़ा भुक्तभोगी रहा है। ऐसे में यदि कोई भारतीय विश्वविद्यालय अपने छात्रों को आतंकवाद जैसे विषय से जुड़े विभिन्न पहलुओं से परिचित कराना चाहता हो, तो भला इसमें क्या हर्ज हो सकता है? आतंकवाद इस दौर की ऐसी चुनौती है, जिससे विश्व के सभी लोकतंत्र जूझ रहे हैं। यह चुनौती बहुत जटिल भी है, क्योंकि इससे निपटने के लिए लोकतांत्रिक देशों को संवैधानिक दायरे में बड़ी मशक्कत करनी पड़ रही है। इसकी गंभीरता को देखते हुए ही जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की अकादमिक परिषद ने तीन नए पाठ्यक्रम आरंभ करने का निर्णय लिया है।

काउंटर टेररिज्म यानी आतंक विरोधी, प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग के लिए असममित संघर्ष एवं रणनीतियां: 21वीं सदी में भारत का उभरता वैश्विक दृष्टिकोण और अंतरराष्ट्रीय संबंधों में सूचना एवं प्रौद्योगिकी की महत्ता जैसे ये पाठ्यक्रम स्कूल आफ इंजीनियरिंग के पांच वर्षीय डुअल कार्यक्रम के अंतिम और पांचवें वर्ष में पढ़ाए जाएंगे। ये तीनों विषय बहुत महत्वपूर्ण हैं। चार वर्षीय बी टेक पाठ्यक्रम के बाद ये छात्र एक वर्षीय एमएस पाठ्यक्रम में इंजीनियरिंग के अलावा सामाजिक विज्ञान, भाषाएं, अंतरराष्ट्रीय संबंध और प्रबंधन विज्ञान का अध्ययन करेंगे। इतनी अच्छी पहल के बावजूद काउंटर टेररिज्म पाठ्यक्रम का विरोध किया जा रहा है।

विरोध वही जाना-पहचाना वामपंथी झुकाव वाला तबका कर रहा है। वे नहीं चाहते कि जेएनयू उच्च शिक्षा में नवोन्मेषी केंद्र के रूप में उभरे और न ही नए भारत की आवश्यकता के अनुरूप नवीन पाठ्यक्रम बनाए। जबकि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप ही है, जिसमें अंतर-अनुशासन और समग्र शिक्षा पर ध्यान देने की जरूरत पर जोर है। वस्तुत: छात्रों को अपने मूल विषय में रुचि बनाए रखते हुए अन्य विषयों में भी महारत हासिल करने का अवसर मिलना चाहिए। ऐसे में इन तीन कल्पनाशील पाठ्यक्रमों के रूप में जेएनयू ने एक बहुत सराहनीय पहल की है। इससे मानविकी और विज्ञान के बीच लंबे अरसे से बनी दीवार भी ध्वस्त हो जाएगी। वहीं छात्रों को व्यापक विकल्प मिलेंगे और वे अपनी डिग्री को और उपयोगी बना सकेंगे।

जिस काउंटर टेररिज्म पाठ्यक्रम को लेकर कुछ तबकों द्वारा विरोध किया जा रहा है वह विषय तो वास्तव में देश के अन्य विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाया जाना चाहिए। ऐसा इसलिए, क्योंकि वैश्विक ढांचे में भारत की बड़ी विशिष्ट स्थिति है। विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने और अपनी विविधता पर गर्व करने वाले भारत पर यह विशेष दायित्व है कि देश में लोकतंत्र एवं विविधता खूब फले-फूले। यह तभी संभव है जब युवाओं को उन विचारधाराओं के प्रतिकार के लिए प्रशिक्षित किया जाए, जो देश की लोकतांत्रिक परंपराओं पर आघात करने में सक्षम हैं। इन पाठ्यक्रमों के महत्व पर प्रकाश डालते हुए जेएनयू के कुलपति डा. जगदीश कुमार ने बताया कि आतंकवाद के कारण राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष उत्पन्न हो रही चुनौतियों और भारत के पड़ोस में बदल रही परिस्थितियों को देखते हुए जेएनयू जैसे संस्थान के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह आतंक विरोधी विशेषज्ञों की खेप तैयार करने में पहल करे।

इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य विभिन्न आतंकी नेटवर्कों से जुड़ी गहन जानकारियां प्रदान करना है, ताकि उनके अनुसार, उनकी काट की जा सके। जेएनयू के कुलपति का नजरिया स्पष्ट है कि देश के पड़ोस में विरूपित विचारधारा के माध्यम से बढ़ती कट्टरता भारत के लिए बड़ी चिंता है, जिससे निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे। आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सुरक्षा एजेंसियों की ही नहीं है। दुनिया भर में आतंकी नेटवर्क नए लोगों को लुभाने के लिए जिस प्रकार तकनीक का सहारा ले रहे हैं, उसे देखते हुए विशिष्ट प्रकार के पाठ्यक्रमों की आवश्यकता है। इससे तकनीकी पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिए आतंक की राजनीति एवं समाजशास्त्र की समझ के साथ ही खुफिया जानकारियां इकट्ठा करने जैसे तमाम कौशल सीखने जरूरी हैं।

ऐसे में यह पहल पथ-प्रदर्शक है। यह बात और सुकून देने वाली है कि जो जेएनयू परिसर राष्ट्र विरोधी नारों के लिए बदनाम हुआ था वही अब समकालीन भारत के लिए प्रासंगिक पाठ्यकमों की शुरुआत कर रहा है। विभिन्न संस्थानों के माध्यम से जेएनयू तमाम पाठ्यक्रम संचालित करता आया है, लेकिन पिछले कई वर्षो से वहां मानविकी पर विशेष जोर रहा है। ऐसे में स्कूल आफ इंजीनियरिंग की स्थापना के रूप में एक बड़े बदलाव की शुरुआत हुई है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और मानविकी का मिश्रण बहुत बढ़िया है। साथ ही कौशल विकास पर विशेष ध्यान भी उल्लेखनीय है। उच्च शिक्षा को सार्थक बनाने की दिशा में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में इस आशय की अहम अनुशंसा की गई है। स्पष्ट है कि नए पाठ्यक्रमों का विरोध करने वाला वामपंथी तबका नई नीति के निहितार्थो को समझने में नाकाम रहा है। कई दशकों से यह तबका जेएनयू को अपनी थाती समझता आया है, किंतु अब उसकी पकड़ ढीली पड़ रही है। यही कारण है कि वह 2016 में जगदीश कुमार की नियुक्ति के समय से ही उन्हें निशाना बनाता आया है। चरमपंथी इस्लाम से वामपंथियों के जुड़ाव को देखते हुए आतंक विरोधी पाठ्यक्रम को लेकर उनके विरोध पर कोई हैरानी नहीं होती।

तमाम हमलों से विचलित हुए बिना डा. कुमार ने जेएनयू में सुधारों का सिलसिला जारी रखा है। इसी कड़ी में विश्वविद्यालय कंप्यूटर साइंस एवं समाजशास्त्र और आयुर्वेद एवं जीव विज्ञान के बीच कड़ियां जोड़ रहा है। आपदा प्रबंधन को समर्पित एक विशेष केंद्र बनाने की भी योजना है, जहां इंजीनियरिंग, मेडिसिन और अन्य संबंधित विधाओं के छात्रों को प्रशिक्षण दिया जाएगा। जेएनयू में स्कूल आफ मेडिसिन के तहत भविष्य के लिए ऐसी संभावनाएं भी तलाशी जा रही हैं जहां आधुनिक चिकित्सा विज्ञान और प्राचीन उपचार पद्धतियों का एकीकरण किया जा सके। साथ ही आइसीएमआर और एम्स के सहयोग से दुर्लभ बीमारियों से जुड़े उत्कृष्ट शोध संस्थान स्थापित करने की भी तैयारी है। स्पष्ट है कि जेएनयू का नया अकादमिक विस्तार जारी है, जो वैश्विक स्तर पर उच्च शिक्षा के क्षेत्र में नई सोच के अनुरूप ही है। ऐसे में अकादमिक स्तर पर देश के अन्य शिक्षण संस्थानों को प्रेरित करने के लिए जेएनयू के पास काफी कुछ है और आतंक विरोधी पाठ्यक्रम निश्चित तौर पर उनमें से एक है। वास्तव में यह जेएनयू का अनुसरण करने का समय है।

(लेखक लोकतांत्रिक विषयों के विशेषज्ञ एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं)