[ हर्ष वी पंत ]: भारत और अमेरिका के बीच हाल में हुई टू प्लस टू वार्ता में आखिरकार द्विपक्षीय साझेदारी के रणनीतिक तर्क ही प्रभावी दिखे। डोनाल्ड ट्रंप के अस्थिर नीतियों वाले दौर ने इसे लेकर सशंकित किया हुआ था, लेकिन इस वार्ता ने ऐसी कई आशंकाओं की हवा निकाल दी। यह स्पष्ट है कि भारत और अमेरिका चाहते हैं कि उनका रिश्ता और अधिक सक्रिय रणनीतिक भागीदारी के साथ आगे बढ़े। इस संवाद का प्रारूप ही दोनों पक्षों के स्तर पर नई परिपक्वता को दर्शाता है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोंपियो के अनुसार यह परिपक्वता एक नए दौर में प्रवेश कर गई है और यह हमारी निरंतर बढ़ती नजदीकी की प्रतीक है। ऐसे संवाद इस कारण भी महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह वार्ता को रणनीतिक स्तर पर केंद्रित रखेगा। इससे दोनों पक्षों को उन समस्याओं से निपटने में भी मदद मिलेगी जो गाहे-बगाहे रिश्तों की गाड़ी को पटरी से उतारने का काम करती हैं।

वार्ता के दो प्रमुख नतीजों से यह रेखांकित भी हुआ। इसमें एक तो अरसे से लंबित पड़े कम्युनिकेशंस कंपैटिबिलिटी एंड सिक्योरिटी एग्र्रीमेंट यानी कोमकोसा पर सहमति बनी। दूसरे दोनों देशों के रक्षा मंत्रियों और विदेश मंत्रियों के बीच हॉटलाइन स्थापना पर मुहर लगी। आखिरकार मोदी सरकार ने कोमकोसा पर निर्णायक कार्रवाई करने का फैसला किया।

इससे भारत को उच्चस्तरीय संचार सुरक्षा प्रणाली हासिल करने में मदद मिलेगी। इससे भारत और अमेरिकी सुरक्षा बलों के साथ ही उन अन्य सेनाओं के साथ सहयोग बढ़ेगा जो सुरक्षित डाटा लिंक के लिए अमेरिकी तकनीक वाले उपकरणों का इस्तेमाल करती हैं। यह उन चार बुनियादी समझौतों में से एक है जिसे अमेरिका अपने बेहद करीबी साझेदारों के साथ करता है जिससे सेनाओं के बीच तालमेल बेहतर होने के साथ ही अत्याधुनिक रक्षा प्रणालियों तक पहुंच बढ़ेगी। इससे भारत अमेरिका से मिले उपकरणों और तकनीक का अधिक सक्षम तरीके से उपयोग करने में सक्षम होगा। इससे पहले वर्ष 2002 में जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इन्फोर्मेशन एग्र्रीमेंट और 2016 में लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्र्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत और अमेरिका के बीच बेसिक एक्सचेंज एंड को-ऑपरेशन एग्र्रीमेंट फॉर जियो-स्पेशल को-ऑपरेशन पर ही चर्चा होनी रह गई थी।

दोनों देशों ने कई अहम प्रस्तावों पर सहमति जताई। साझा अभ्यास को एक नया आयाम देते हुए तीनों सेनाओं का संयुक्त अभ्यास ऐसी ही एक पहल है। भारत के पूर्वी तट पर 2019 में यह अभ्यास किया जाएगा। यह उपलब्धि और भी बड़ी है कि अमेरिकी नौसेना की केंद्रीय कमान पर एक भारतीय संपर्क अधिकारी की भी तैनाती की जाएगी। अफगानिस्तान, पाकिस्तान और तेल समृद्ध खाड़ी देशों में नौसैनिक अभियानों का जिम्मा इसी अमेरिकी कमान के पास है। अमेरिकी विदेश मंत्री पोंपियो और भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को दो-टूक लहजे में कहा कि वह सुनिश्चित करे कि उसकी धरती का दूसरे देशों में आतंक फैलाने के लिए इस्तेमाल न हो। अफगानिस्तान को लेकर भी दोनों देशों के सुर एक थे। भारत और अमेरिका का मानना है कि अफगानिस्तान में शांति, स्थायित्व और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया पर अफगानिस्तान का ही नियंत्रण होना चाहिए। यह इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि अभी हाल में ऐसी खबरें आई थीं अमेरिका दोहा में तालिबान से पिछले दरवाजे से वार्ता की पींगें बढ़ा रहा है।

पाकिस्तान को लेकर भारत-अमेरिकी मोर्चा अपने आप में असाधारण है, क्योंकि इसकी बात पोंपियो के पांच घंटे के संक्षिप्त इस्लामाबाद दौरे के बाद हुई। पोंपियो के दौरे के दौरान वहां की फिजां में तनाव साफ तौर पर महसूस किया जा सकता था। अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को दी जाने वाली 30 करोड़ की मदद को हाल में ट्रंप प्रशासन द्वारा रोके जाने से पाकिस्तान की नई सरकार का मिजाज बिगड़ा हुआ है। जबकि इमरान खान के नेतृत्व वाली सरकार सोच रही थी कि उसे संदेह का लाभ मिलेगा जो अमूमन नई सरकारों को मिलता आया है।

बहरहाल अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को सुरक्षा सहयोग के नाम पर दी जाने वाली मदद में एक साल के दौरान दूसरी बड़ी कटौती यही संकेत करती है कि इस्लामाबाद को लेकर वाशिंगटन के सब्र का बांध टूटता जा रहा है। फिर पोंपियो ने किसी भी तरह के संदेह को दूर करते हुए सपाट लहजे में कहा भी कि पाक सरकार को प्रतिबंधों को लेकर पहले ही सूचित कर दिया था। उन्होंने कहा कि ट्रंप प्रशासन को अभी भी उन सुधारों का इंतजार है जिनकी पाकिस्तान से अपेक्षा है। जहां अमेरिका पाकिस्तान के साथ पुराना हिसाब-किताब करने में जुटा है वहीं भारत-अमेरिकी संबंधों का सिरा भविष्य से जुड़ा हुआ है।

रक्षा सहयोग अब भी दोनों देशों के संबंधों की मुख्य धुरी बना हुआ है। अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस के इस बयान से यह स्पष्ट भी होता है जिसमें उन्होंने कहा, ‘अमेरिका भारत के साथ निरंतर कंधे से कंधा मिलाकर काम करता रहेगा और एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में भारत की भूमिका के दायरे को बढ़ाकर साझेदारी को अपने निकटतम साझेदारों के स्तर तक ले जाएंगे।’ दोनों देश रक्षा उद्योग में सक्रिय निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ाने पर जोर देंगे। इससे भारतीय रक्षा विनिर्माताओं को अमेरिकी सैन्य आपूर्ति शृंखला से जुड़ने में मदद मिलेगी। साथ ही मोदी सरकार का ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम भी रफ्तार पकड़ेगा। इनोवेशन यानी नवाचार इसमें सफलता की कुंजी होगा। इसके लिए यूएस डिफेंस इनोवेशन यूनिट यानी डीयूआइ और इंडियन डिफेंस इनोवेशन ऑर्गेनाइजेशन-इनोवेशन फॉर डिफेंस एक्सीलेंस यानी डिओ-आइ-डेक्स के बीच एक आशय पत्र पर हस्ताक्षर भी हुए हैं।

व्यापक रणनीतिक वास्तविकताएं ही भारत-अमेरिकी सक्रियता की दशा-दिशा तय करती रहेंगी। संयुक्त बयान में आसमान और समुंदर की आजादी सुनिश्चित करने, सामुद्रिक विवादों को शांतिपूर्वक सुलझाने, बाजार आधारित अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने, सुशासन को बढ़ावा देने और बाहरी आर्थिक दबाव से बचने का उल्लेख इसकी पुष्टि करता है। हालांर्कि ंहद-प्रशांत क्षेत्र की अवधारणा को लेकर भारत और अमेरिका के नजरियों में कुछ अंतर रहा है, लेकिन संयुक्त बयान की बुनियादी हकीकत दो वास्तविक साझेदारों की तस्वीर पेश करती है जो समृद्ध, मुक्त एवं समानतापूर्ण क्षेत्रीय ढांचे को लेकर प्रतिबद्ध हैं।

वार्ता से पहले रूस और ईरान को लेकर बातें हो रही थीं तो उनसे जुड़े मुद्दे इसमें हाशिये पर ही चले गए। हालांकि उसे लेकर तनाव कायम है, लेकिन टू प्लस टू के पहले संस्करण से यही संकेत सामने आए कि दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतंत्र अपने रिश्तों को परवान चढ़ाने के लिए रास्ते में आने वाली तमाम बाधाओं को मात देने के लिए तैयार हैं।

[ लेखक लंदन स्थित किंग्स कॉलेज में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर हैं ]