[ सुरेंद्र किशोर ]: भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मंत्री बनते और गृह मंत्रालय संभालते ही उनके समक्ष पेश चुनौतियों की चर्चा होने लगी है। इन चुनौतियों में नक्सलवाद से लेकर कश्मीर के बिगड़े हालात की भी गिनती हो रही है, लेकिन उनके सामने एक अन्य चुनौती माफिया तत्वों की भ्रष्ट नेताओं एवं अफसरों से गठजोड़ को खत्म करने की भी है। इस गठजोड़ को बयान करने वाली वोहरा कमेटी की धूल खा रही रपट को गृह मंत्रालय की अलमारी से निकालने का यह सही समय है। यह रपट 1993 में सरकार को सौंपी गई थी। आर्थिक क्षेत्र में सक्रिय लॉबियों, तस्कर गिरोहों, माफिया तत्वों के साथ भ्रष्ट नेताओं एवं अफसरों के गठबंधन को तोड़ने के ठोस उपाय भी वोहरा रपट में मौजूद हैं। यह रपट इतनी सनसनीखेज थी कि तत्कालीन सरकार ने उसे सार्वजनिक तक नहीं किया। रपट की तीन प्रतियां ही तैयार की गई थीं।

वोहरा रपट

पिछले पांच वर्षों में पहली बार उन माफिया तत्वों के खिलाफ कार्रवाई की शुरुआत हुई जिनकी चर्चा वोहरा रपट में है, लेकिन अभी इन तत्वों पर निर्णायक प्रहार बाकी है। देश के लिए यह अच्छी बात है कि मौजूदा सरकार में उन तत्वों को बचाने वाले संरक्षक नहीं है, बल्कि हमले का हौसला रखने वाले अब शीर्ष पर हैं। इन्हीं तत्वों और उनके पिछलग्गुओं ने पिछले पांच साल में मोदी सरकार को तरह-तरह से परेशान किया, परंतु चुनाव में मतदाताओं ने उन्हें और उनके संरक्षकों को परोक्ष रूप से चेतावनी दे दी है।

माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई

मोदी सरकार को समझना होगा कि माफिया की जड़ों पर हमला अभी बाकी है। यदि वोहरा समिति की रपट पर कार्रवाई हुई होती तो कुछ बरस पहले चर्चा में आए राडिया टेप की कहानी के पात्र पहले ही जमींदोज हो चुके होते, मगर लगता है कि अब उस सफाए का श्रेय मोदी-शाह की जोड़ी को मिलना है। गुजरात में ऐसे माफिया तत्वों से भिड़कर उन्हें पराजित करने का अनुभव उनके पास है।

1993 में वोहरा कमेटी का गठन

मुंबई में 1993 में हुए भीषण बम विस्फोटों की पृष्ठभूमि में वोहरा कमेटी का तब गठन किया गया था जब वह केंद्रीय गृह सचिव थे। वोहरा समिति की रपट में कहा गया था कि ‘इस देश में अपराधी गिरोहों, हथियारबंद गुटों, नशीली दवाओं का व्यापार करने वाले गिरोहों, तस्करों, आर्थिक क्षेत्रों में सक्रिय भ्रष्ट लॉबियों का तेजी से प्रसार हुआ है। इन लोगों ने पिछले कुछ वर्षों के दौरान स्थानीय स्तर पर नौकरशाहों, सरकारी पदों पर आसीन लोगों, नेताओं, मीडिया तथा गैर सरकारी क्षेत्रों के महत्वपूर्ण पदों पर आसीन लोगों के साथ व्यापक संपर्क विकसित कर लिए हैं। इनमें से कुछ सिंडिकेटों की विदेशी खुफिया एजेंसियों के साथ-साथ अन्य अंतरराष्ट्रीय संबंध भी हैं।’

अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण

वोहरा समिति की रपट को पढ़ने से साफ लगता है कि एनएन वोहरा ने राडिया टेप मामले का पूर्वाभास पहले ही कर लिया था। शायद वोहरा समिति को इसका भी आभास था कि एक दिन बड़े आर्थिक अपराधियों को देश से भगा देने का रास्ता बड़ी कुर्सियों पर बैठे लोग ही साफ कर देंगे। रपट के अनुसार कुछ प्रदेशों में इन गिरोहों को स्थानीय स्तर पर राजनीतिक दलों के नेताओं और सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों का संरक्षण हासिल है। कुछ नेता इन गिरोहों के नेता बन जाते हैं और कुछ ही वर्षों में स्थानीय निकायों, विधानसभाओं और संसद के लिए निर्वाचित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप वे राजनीतिक प्रभाव प्राप्त कर लेते हैैं और उसके कारण प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने और आम आदमी के जानमाल की हिफाजत करने की दिशा में बाधा उत्पन्न होती है।

 वोहरा समिति के सदस्य

1993 और 2019 के बीच जितना भी सकारात्मक अंतर आया है उसके लिए शासन को धन्यवाद, किंतु जितना नहीं आया है उसके लिए कौन-कौन लोग जिम्मेदार हैं? महत्वपूर्ण अफसरों के साथ-साथ सीबीआइ और आइबी निदेशक भी उच्चस्तरीय वोहरा समिति के सदस्य थे। वोहरा समिति ने यह भी कहा था, ‘तस्करों के बड़े-बड़े सिंडिकेट देश के भीतर छा गए हैं और उन्होंने हवाला लेन-देन, काले धन की जमाखोरी सहित विभिन्न आर्थिक क्रियाकलापों को प्रदूषित कर दिया है। उनके द्वारा भ्रष्ट समांतर अर्थव्यवस्था चलाए जाने के कारण देश की आर्थिक संरचना को गंभीर क्षति पहुंची है। इन सिंडिकेटों ने सरकारी तंत्र को सभी स्तरों पर सफलतापूर्वक भ्रष्ट किया हुआ है। इन तत्वों ने जांच-पड़ताल और अभियोजन अभिकरणों को इस तरह प्रभावित किया हुआ है कि उन्हें अपने कार्य संचालन में तमाम कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है।’

नारको-आतंक तंत्र

रपट में यह भी लिखा था, ‘कुछ माफिया तत्व नारकोटिक्स, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी में संलिप्त हैं और उन्होंने विशेषकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में अपना एक नारको-आतंक तंत्र बना लिया है। चुनाव लड़ने जैसे कार्यों में खर्च की जाने वाली राशि के चलते नेता भी इन तत्वों के चंगुल में आ गए हैं। रोकथाम और खोजी तंत्र से इन माफिया तत्वों ने गंभीर संबंध बना लिया है। यह वायरस देश के लगभग सभी केंद्रों में तटवर्ती स्थानों पर फैल गया है। सीमावर्ती क्षेत्र इससे विशेष रूप से पीड़ित हैं।

समानांतर सरकार

समिति की बैठक में आइबी के निदेशक ने साफ-साफ कहा था कि माफिया तंत्र ने वास्तव में एक समानांतर सरकार चलाकर राज्य तंत्र को एक विसंगति में धकेल दिया है। इसलिए यह अत्यंत आवश्यक है कि ऐसे संकट से प्रभावी रूप से निपटने के लिए एक संस्थान स्थापित किया जाए।’

राष्ट्रविरोधी तत्वों पर नजरअंदाज

देश को गर्त में जाने से बचाने के लिए पिछले 26 साल में इस दिशा में भरपूर प्रयास हुए होते तो आज स्थिति कुछ अलग होती। इस बीच इस देश के संसाधनों को लूटने वालों ने अपनी कार्यशैली और रणनीति में भी समय के साथ बदलाव कर लिया है। वोहरा समिति ने ऐसे राष्ट्रविरोधी तत्वों को सजा दिलाने का प्रबंध करने की भी सलाह दी थी, पर उन्हें नजरअंदाज कर दिया गया।

वोहरा समिति की सलाह

वोहरा समिति ने यह सलाह दी थी कि गृह मंत्रालय के तहत एक नोडल एजेंसी तैयार हो जो देश में किसी भी संदिग्ध गतिविधि की सूचना एकत्र करे। इसमें ऐसी व्यवस्था की जाए ताकि सूचनाएं लीक नहीं हों, क्योंकि सूचनाएं लीक होने से राजनीतिक दबाव पड़ने लगता है और ताकतवर लोगों के खिलाफ कार्रवाई खतरे में पड़ जाती है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नोडल एजेंसी पर किसी तरह का दबाव न पड़े और वह सूचनाओं को लेकर मामले को तार्किक परिणति तक पहुंचा सके।

माफिया-नेता-अफसर गठजोड़

वोहरा समिति ने अपनी रपट में बार-बार इसका उल्लेख किया कि राजनीतिक संरक्षण से ही देश में तरह-तरह के गलत धंधे फल-फूल रहे हैं। रपट के अनुसार, ‘यह कहने की आवश्यकता नहीं कि आपराधिक सिंडिकेटों के राज्यों और केंद्र के वरिष्ठ सरकारी अफसरों या नेताओं के साथ साठगांठ के बारे में सूचना के किसी प्रकार के लीकेज का सरकारी कामकाज पर अस्थिर प्रभाव हो सकता है।’ क्या ऐसी कारगर नोडल एजेंसी अब भी नहीं बन सकती? क्या अब भी माफिया-नेता-अफसर गठजोड़ को तोड़ा नहीं जा सकता? क्यों नहीं? मोदी हैं तो यह भी मुमकिन है।

( लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ स्तंभकार हैं ) 

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