[ कपिल सिब्बल ]: साल के अंत में सभी उपक्रम अपनी स्थिति की पड़ताल करते हैं कि आखिर क्या गलत हुआ और उसे सुधारने के लिए क्या किया जा सकता है। राजनीति में यह कवायद लगभग असंभव है। राजनीतिक दल विरले ही अपनी गलतियों को स्वीकार कर उन्हें सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाते हैं। उनका एजेंडा लंबी अवधि को ध्यान में रखकर काम करता है। यह एजेंडा अक्सर वैचारिक आवरण में लिपटा होता है। चूंकि राजनीति में संभावित परिणामों के निश्चित विश्लेषण को लेकर तमाम जटिलताएं होती हैं इसलिए यह बताने का जिम्मा बाहरी लोगों पर आ जाता है कि गुजरे हुए वक्त में आखिर क्या-क्या गलत हुआ? इस सिलसिले में प्रधानमंत्री मोदी की चर्चा सबसे पहले करनी होगी।

जब तक भारत को समझेंगे नहीं तब तक उस पर भलीभांति शासन नहीं कर सकते

मोदी को भारत और उसके इतिहास एवं संस्कृति की कोई समझ नहीं है। उन्हें यह महसूस होना चाहिए कि अनूठी ऐतिहासिक ताकतों ने भारत को जन्म दिया है। इनमें से किसी भी शक्ति का संबंध किसी विशेष नस्ल, धर्म या भाषा से नहीं है। कोई भी व्यक्ति अभी तक इस विविधता की थाह नहीं ले पाया है। कोई भी आक्रांता कभी भारत की आत्मा पर प्रहार नहीं कर सका। स्पष्ट है कि जब तक आप भारत को समझेंगे नहीं तब तक उस पर भलीभांति शासन नहीं कर सकते।

भारत की बुनियाद के लिए हिंदुत्व एक अभिशाप

भारत पर कोई एजेंडा नहीं थोपा जा सकता। ब्रिटिश साम्राज्य और उसकी सरपरस्ती में चलने वाली रियासतों के दौर में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान ही हमारी राष्ट्रीयता की आधारशिला रखी जा चुकी थी। राष्ट्रीय आंदोलन में विभिन्न विचारों, संस्कृति और भाषाई विविधता का समावेश था। इन तत्वों की अनुपस्थिति में हमारी राष्ट्रीयता अर्थ खो देती। यदि मोदी विविधता के पर्याय भारत को एकजुट करने में कांग्रेस के महान योगदान को समझते तो उन्हें महसूस होता कि भारत की बुनियाद के लिए हिंदुत्व एक अभिशाप है।

हिंदू को परिभाषित करना मुश्किल

जहां तक हिंदुओं की बात है तो वे खुद एक जातिगत वर्ण व्यवस्था की जकड़न में फंसे हुए हैं। ऐसे में हिंदू को परिभाषित करना ही मुश्किल है। दलित और पिछड़े वर्गों के लोग सदियों से सवर्ण जातियों के हाथों हुए अपमान और उत्पीड़न को न भूल सकते हैं और न उसके लिए उन्हें माफ कर सकते हैं। आरएसएस और भाजपा जिस किस्म के हिंदुत्व को बढ़ावा देकर हिंदू धर्म की सभी धाराओं को एक मंच पर लाना चाहते हैं, वह रणनीति कारगर नहीं हो सकती। मोदी को यह समझने की दरकार है।

विपक्षी खेमा मोदी की चुनावी सफलता के सामने टिक नहीं सका

पहले 2014 और फिर 2019 में मोदी को इतनी बड़ी चुनावी सफलता इसीलिए मिली, क्योंकि उन्होंने लोगों को अच्छे दिनों का सपना दिखाया। जमीनी स्तर पर आरएसएस का सुगठित ढांचा मोदी के लिए और मददगार साबित हुआ। वहीं विपक्षी खेमा ऐसे ही किसी आकर्षक वैकल्पिक एजेंडे के जरिये जनता को लुभा नहीं सका।

मोदी ने अच्छे दिनों का जो सपना दिखाया वह चकनाचूर हो गया

आज समस्या यह है कि मोदी ने जो सपना दिखाया वह चकनाचूर हो गया है। नोटबंदी और बेतरतीब तरीके एवं जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी ने अर्थव्यवस्था का बेड़ा गर्क कर दिया है। बेरोजगारी ने देश के युवाओं को आक्रोशित कर दिया है। हाल-फिलहाल राहत के कोई आसार नहीं दिख रहे। निर्यात पस्त है। आयात भी सुस्त है। 1980 के दशक के बाद पहली बार ग्र्रामीण मांग में कमी का रुख देखा जा रहा है।

कंपनियों के मुनाफे में भारी कमी

कंपनियों के मुनाफे में भारी कमी आई है। कंपनियों द्वारा ब्याज अदायगी और उनके मुनाफे में अंतर पांच प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गया। कृषि क्षेत्र बमुश्किल दो प्रतिशत की दर से वृद्धि कर रहा है। सरकारी बैंकों का एनपीए घटकर हालांकि 9.3 प्रतिशत हो गया है, लेकिन यह अभी भी असहज करने वाले स्तर पर कायम है।

कर्ज की मांग में जबरदस्त कमी

कर्ज की मांग में जबरदस्त कमी आई है। यहां तक कि आइटी क्षेत्र की कमाई को भी गहरा झटका लगा है। बिजली उपभोग से लेकर उद्योगों में कच्चे माल की खपत कम हुई है। परिणामस्वरूप प्रत्यक्ष कर संग्रह में आशाजनक बढ़ोतरी के संकेत नहीं दिख रहे। अप्रत्यक्ष कर राजस्व में भी अपेक्षा से कम का रुझान है। इससे सरकारी खर्च के लिए खजाना तंग होता जाएगा। कुल मिलाकर हमारा आर्थिक परिदृश्य बदरंग दिखाई पड़ता है।

आर्थिक मोर्चे पर फेल मोदी ध्रुवीकरण के जरिये राजनीतिक लाभ लेने की जुगत में

चूंकि मोदी आर्थिक मोर्चे को नहीं साध सकते तो वह देश में ध्रुवीकरण के जरिये राजनीतिक लाभ लेने की जुगत में हैं। इससे दो मकसद पूरे होते हैं। एक तो लोगों का रोजमर्रा के वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटता है। दूसरा मकसद राजनीतिक पूंजी जुटाने का है।

असम में एनआरसी से छंटेंगे मुस्लिम, लेकिन छंट गए हिंदू, तब सरकार को सीएए बनाना प़ड़ा

यह सही है कि असम में एनआरसी की कवायद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई, लेकिन इसे मोदी सरकार का पूरा समर्थन मिला। ऐसा इसलिए, क्योंकि सरकार को उम्मीद थी कि इससे लाखों मुस्लिम छंट जाएंगे। बहरहाल यह दांव तो उल्टा पड़ गया, क्योंकि असम एनआरसी में लांखों हिंदू बाहर हो गए। परिणामस्वरूप सरकार को नागरिकता संशोधन कानून बनाना पड़ा ताकि गैर-मुस्लिम अवैध प्रवासियों को नागरिकता दी जा सके।

असम के स्थानीय लोग अब हिंदू और मुस्लिम को नहीं रखना चाहते

असम इस पर इसीलिए उद्वेलित है, क्योंकि स्थानीय लोग हिंदू और मुस्लिम दोनों में से किसी को भी अपने यहां नहीं रखना चाहते। इससे उन्हें अपनी जनसांख्यिकी बिगड़ने का अंदेशा है। शेष भारत में लोग इस कारण सशंकित हैं कि उन्हें लगता है कि ऐसी कवायद से उनका भारत में रहने का अधिकार खतरे में पड़ सकता है। राष्ट्रव्यापी एनआरसी को लेकर बहुत कम समर्थन मिलता दिख रहा है।

गैर-भाजपा शासित राज्यों ने कहा- वे अपने सूबों में एनआरसी की इजाजत नहीं देंगे

तकरीबन सभी गैर-भाजपा शासित राज्यों ने स्पष्ट कर दिया है कि वे अपने सूबों में एनआरसी की इजाजत नहीं देंगे। अब राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर यानी एनपीआर की कवायद को भी संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है, क्योंकि इसमें तमाम अतिरिक्त सूचनाएं मांगी जा रही हैं।

पुलिस की ज्यादती ने देश भर के लोगों को एकजुट कर दिया

छात्रों की छवि बिगाड़ने की अतार्किक कोशिश ने स्थिति को और बिगाड़ दिया है। पुलिस की ज्यादती ने देश भर के लोगों को एकजुट कर दिया और वे मोदी सरकार की विभाजनकारी नीतियों के विरोध में सड़कों पर उतर रहे हैं। अगर यह आंदोलन जोर पकड़ता है तो अर्थव्यवस्था को और झटका लगेगा।

राजनीति की बिसात पर अर्थव्यवस्था हत्थे से उखड़ गई

लोकसभा में स्पष्ट बहुमत के दम पर मोदी को अर्थव्यवस्था के कायाकल्प में जुटना चाहिए था, मगर राजनीति की बिसात पर अर्थव्यवस्था हत्थे से उखड़ गई। राजनीति को ध्यान में रखकर लिए गए आर्थिक फैसले बंटाधार कराने वाले रहे। राजनीति भी गलत दिशा में जा रही है, क्योंकि एक राष्ट्रीय शक्ति के रूप में हिंदुत्व की प्रकृति लोकतंत्र एवं समतामूलक समाज के विरुद्ध है। इसके वैचारिक प्रवर्तन में समावेशन की क्षमता नहीं है।

मोदी को नए वर्ष में बहुमत का इस्तेमाल अर्थव्यवस्था के कायाकल्प में करना चाहिए

नए वर्ष में मोदी को यह सोचना होगा कि क्या वह अपनी हठधर्मिता कायम रखेंगे या अपने बहुमत का इस्तेमाल पेशेवर तरीके से फैसले कर अर्थव्यवस्था के कायाकल्प में करेंगे? इन विकल्पों में से उनका चयन ही हमारे भविष्य को निर्धारित करेगा। वैसे किसी भी सूरत में चुनौतियां कम नहीं रहेंगी।

( लेखक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं )