[ हृदयनारायण दीक्षित ]: सत्य सर्वकालिक सार्वभौम सत्ता है। इस पर कालगति का प्रभाव नहीं पड़ता। घटनाएं घटकर भूतकाल में समाती रहती हैं। घटनाओं का यथातथ्य विवरण इतिहास कहा जाता है। इतिहास का अर्थ है-ऐसा हुआ था। जो हो चुका है हम उसे नहीं बदल सकते। इतिहास वस्तुत: भूत सत्य है। अपने स्वार्थ में इतिहास बदलने की कोशिशें झूठ का पुलिंदा बनती है। तब सत्य बारंबार प्रकट होकर झूठ का पर्दाफाश करता है। श्रीराम प्राचीन इतिहास के महानायक हैं। अयोध्या उत्तर वैदिक काल के साहित्य में भी हैं। अथर्ववेद (10.2.31) में 8 चक्र 9 द्वारों वाली देवपुरी अयोध्या हैं। यहां दशरथ नंदन श्रीराम का जन्म हुआ था। इसी स्थल पर श्रीराम जन्मभूमि मंदिर था।

अयोध्या में फिर से तमाम देव मूर्तियों और प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले

1528 में विदेशी हमलावर बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने मंदिर गिराकर बाबरी मस्जिद बनाई। तमाम विवाद हुए, मुकदमे चले। सर्वोच्च न्यायपीठ ने बीते वर्ष यहां श्रीराम मंदिर निर्माण के आदेश दिए। यहां समतलीकरण का काम जारी है। यहां फिर से तमाम देव मूर्तियों और प्राचीन मंदिर के अवशेष मिले हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेशानुसार खोदाई कराने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक बीआर मणि ने कहा कि ये र्मूितयां पुरातात्विक साक्ष्य हैं। इनसे उनकी रिपोर्ट को बल मिला। अदालती आदेश की फिर से पुष्टि भी हुई, पर ताजा सामग्री से पुरानी बहस नए रूप में चल निकली है।

वामपंथी इतिहासकारों के लिए अशुभ घड़ी

वामपंथी इतिहासकारों के लिए यह अशुभ घड़ी है। रोमिला थापर, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के प्रो. इरफान हबीब, डीएन झा आदि की मान्यताएं लगातार खारिज हो रही हैं। रोमिला का मत था कि अयोध्या में श्रीराम की जन्मभूमि सिद्ध किया जाना असंभव है। झा के अनुसार इतिहास को आस्था के अनुसार नहीं लिखा जा सकता। हबीब ने अन्य ऐसी बातों के साथ एएसआइ की रिपोर्ट को भी एकतरफा बताया था। इस रिपोर्ट में लगभग तीन हजार वर्ष ईसा पूर्व के तथ्य थे। रिपोर्ट के अनुसार एक गोलाकार मंदिर दसवीं सदी का था। एक अन्य मंदिर और खंभों के अवशेष का भी उल्लेख था। मंदिर 1500 ई0 तक था।

मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण

आगे 1528 में बाबरी मस्जिद का इतिहास है। फैजाबाद सेटलमेंट रिपोर्ट (1880) भी मंदिर की जगह मस्जिद निर्माण के तथ्य बताती है। बाराबंकी डिस्ट्रिक गजेटियर (1902) में जन्मस्थान मंदिर को गिराकर मस्जिद बनाने का वर्णन है। यही बात फैजाबाद डिस्ट्रिक गजेटियर (1905) में भी कही गई, लेकिन भारत के वास्तविक इतिहासबोध के विरोधी वामपंथी इतिहासकारों के लिए एएसआइ के निष्कर्ष एकतरफा रहे। उनके तर्क व्यर्थ हो चुके हैं। उनसे माफी मांगने की अपीलें हो रही हैं। कायदे से उन्हें सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद ही अपनी राय बदल लेनी चाहिए था।

मुकदमे की सुनवाई में एएसआइ की रिपोर्ट अहम साक्ष्य थी

मुकदमे की सुनवाई में एएसआइ की रिपोर्ट भी अहम साक्ष्य थी, लेकिन उनका मत जस का तस है। हाल में मिली सामग्री को भी नक्सलपंथ हमदर्द नंदिनी सुंदर ने महत्वहीन बताते हुए कहा है कि यह सामग्री समुचित तथ्य नहीं है। इस दुष्प्रचार में उनके साथ अन्य स्वयंभू विशेषज्ञ भी कूद पड़े। वामपंथी विचार भारत आगमन के समय से ही प्राचीन इतिहास को आत्महीन बताने का अभियुक्त है। डीएन झा प्राचीन वैदिक पूर्वजों को गोमांस भक्षी सिद्ध करते रहे हैं। रोमिला थापर पूर्वज आर्यों को असभ्य बताती रही हैं। इनके झूठ की परतें लगातार उघड़ रही हैं।

वामपंथी भारतीय संस्कृति नहीं मानते, हिंदू मुस्लिम सद्भाव भी नहीं चाहते

वामपंथी भारतीय संस्कृति नहीं मानते। वे हिंदू मुस्लिम सद्भाव भी नहीं चाहते। एएसआइ के उत्तर क्षेत्रीय निदेशक रहे पद्मश्री डॉ. केके मुहम्मद ने अपनी आत्मकथा-आई एन इंडियन-में भी यहां हिंदू मंदिर का उल्लेख किया है। वह भी 1976-77 की खोदाई के दौरान प्रो. बीबी लाल की टीम के सदस्य थे। मुहम्मद के अनुसार मसला सुलझ जाता, यदि वामपंथी इतिहासकारों द्वारा मुस्लिम बौद्धिकों की ब्रेन वॉशिंग न होती। उन्होंने रोमिला, विपिन चंद्रा, डीएन झा आदि का उल्लेख किया। बताया कि बाबरी एक्शन कमेटी ने हबीब के साथ कई बैठकें भी कीं। मुहम्मद ने समतलीकरण के दौरान मिले पुरातात्विक अवशेषों पर कहा है कि यहां स्वर्णिम इतिहास दफन है। इसलिए समतलीकरण का कार्य वैज्ञानिक ढंग से होना चाहिए।

मस्जिदें प्रार्थना का केंद्र होती हैं। उन्हें किसी व्यक्ति के नाम से नहीं जोड़ा जाता

बाबर विदेशी हमलावर था। मस्जिदें प्रार्थना का केंद्र होती हैं। उन्हें किसी व्यक्ति के नाम से नहीं जोड़ा जाता। आखिरकार हम भारत के लोग बाबर के नाम पर कैसे गर्व कर सकते हैं? मोहम्मद बिन कासिम, गजनी, गोरी और बाबर हमलावर थे। उन्होंने भारत को लूटा, रक्तपात हुआ। तब पाकिस्तान नहीं बना था। आज की पाकिस्तानी भूमि पर भी तब विदेशी हमलावरों ने रक्तपात किया। बिन कासिम ने पहले सिंध् क्षेत्र पर ही धावा बोला था।

बाबरी मस्जिद के नाम पर लंबे समय से देश विभाजक राजनीति जारी है

पता नहीं कि आज के पाकिस्तानी हुक्मरान अपनी धरती पर हमला करने वाले विदेशी आक्रांताओं का महिमामंडन क्यों करते हैं? वे अपनी मिसाइल का नाम गोरी रखते हैं। भारत के भी कथित उदार और स्वयंभू इतिहासकार मंदिर तोड़क औरंगजेब को महान बताते हैं और दर्शन एवं भारतीयता से युक्त उसके भाई दारा शिकोह की उपेक्षा करते हैं। वे वैज्ञानिक और राष्ट्रपति रहे कलाम के व्यक्तित्व पर गर्व नहीं करते। सांप्रदायिक राजनीतिज्ञ भारतीय मुसलमानों की सोच को विभाजक बनाने की कोशिशों में लगे रहते हैं। बाबरी मस्जिद के नाम पर लंबे समय से देश विभाजक राजनीति जारी है। बाबर भारत में गर्व का विषय नहीं हो सकता और न ही ऐसे विचारों से जुड़े राजनीतिक अभियान।

श्रीराम जन्मभूमि के पुरातात्विक साक्ष्य लगातार मिल रहे हैं

श्रीराम जन्मभूमि के पुरातात्विक साक्ष्य लगातार मिल रहे हैं, लेकिन वामपंथी लोक साक्ष्य नहीं मानते। वे पुरातात्विक साक्ष्य, सर्वोच्च न्यायपीठ के निष्कर्ष और भारत को प्राचीन राष्ट्र भी नहीं मानते। यही स्थिति सांप्रदायिक राजनीति की है। शुभ है कि इतिहास विरूपण की वामपंथी साजिशों के दिन जा रहे हैं। वामपंथ इतिहास का विषय हो रहा है। आने वाले समय में वामपंथ नहीं होगा।

सत्य को बहुत दिन तक झूठ के पर्दे में नहीं रखा जा सकता

इक्का दुक्का लोगों से वामपंथ शैली में ही पूछा जाएगा कि आप सिद्ध करो कि वामपंथ कब था? क्या वामपंथ का कोई पुरातात्विक साक्ष्य है? सत्य को बहुत दिन तक झूठ के पर्दे में नहीं रखा जा सकता। सत्य बार-बार प्रकट होता है। शीर्ष अदालत के फैसले में सत्य की विजय हुई थी। श्रीराम जन्मभूमि परिसर में प्राप्त मूर्तियां और अन्य सामग्री सत्य का ही प्रत्यक्ष साक्ष्य है। यह पुरातात्विक सत्य है। ऐतिहासिक सत्य है। सांस्कृतिक सत्य है। गर्व करने लायक सत्य है। दुनिया के करोड़ों लोगों की आस्था को सही ठहराने वाला सत्य भी है। इस सत्य का स्वागत होना चाहिए।

( लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं )