सभी अनुमानों और भविष्यवाणियों को झूठा साबित करते हुए रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने डेमोक्रेटिक पार्टी की उम्मीदवार हिलेरी क्लिंटन को हराकर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में ऐतिहासिक जीत हासिल किया है। वह जनवरी 2017 में अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति और दुनिया के सबसे शक्तिशाली और प्रभावी राजनेता बन जाएंगे। ट्रंप की जीत ऐतिहासिक है, क्योंकि उनके व्यक्तित्व की खामियों, खासकर महिलाओं के प्रति उनके व्यवहार के कारण अधिकांश अमेरिकियों ने राष्ट्रपति पद के लिए उन्हें अनुपयुक्त माना था। फिर भी लोगों ने हिलेरी क्लिंटन, जिनके पास अमेरिकी राजनीतिक जीवन का तीस सालों का अनुभव है, की तुलना में उन्हें ज्यादा महत्व दिया, क्योंकि उन्होंने अमेरिका की एक बड़ी आबादी की भावनाओं को छुआ। ये लोग, खासकर श्वेत अमेरिकी पुरुष यह महसूस करते हैं कि वे आर्थिक रूप से कमजोर हो गए हैं और अमेरिका ने दुनिया में अपनी चमक खो दी है। पूरे चुनाव अभियान के दौरान ट्रंप ने मौजूदा अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली और उसके नेताओं की जमकर निंदा की। उन्होंने वर्तमान नेताओं पर देश में अनियंत्रित अप्रवासन द्वारा अमेरिकी अर्थव्यवस्था और राजनीतिक हितों की अनदेखी करने और अमेरिकी नौकरियों को दूसरे देशों में जाने देने का आरोप लगाया। वह दूसरे देशों के साथ अमेरिका के व्यापार समझौतों के मुखर आलोचक थे। ट्रंप ने इसे अमेरिका में मैन्यूफेक्चरिंग की बर्बादी के लिए जिम्मेदार माना।
ट्रंप ने जोर देते हुए कहा कि एक पूर्व विदेश मंत्री, सीनेटर और पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की राजनीतिक रूप से सक्रिय पत्नी होने के रूप में हिलेरी क्लिंटन उस राजनीतिक प्रणाली का हिस्सा थीं जो अमेरिका की बदहाली का कारण है। उन्होंने स्वयं को एक बाहरी के रूप में दर्शाया, जो इस पूरी प्रणाली को साफ कर देगा और अमेरिका को फिर से महान बना देगा। तथ्य यह है कि ट्रंप के पास सरकार चलाने का कोई अनुभव नहीं है और यह बात उनके पक्ष में गई। उनके प्रति दिलचस्पी बढ़ने की एक वजह रियल इस्टेट सेक्टर में एक कारोबारी के रूप में उनको मिली सफलता भी थी। हालांकि जीत के बाद अपने समर्थकों को संबोधित करते हुए ट्रंप एक बाहरी के रूप में नहीं, बल्कि एक अनुभवी राजनेता के रूप में बोले, जबकि चुनाव अभियान के दौरान उन्होंने अमेरिका में सामाजिक और राजनीतिक दरारें पैदा करने वाले बयान दिए थे। उन्होंने अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलेरी क्लिंटन की सराहना की। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि अब चुनाव खत्म हो चुका है और सभी अमेरिकियों को एक हो जाना चाहिए और देश के लिए काम करना चाहिए। क्या उनका यह दृष्टिकोण उनकी पार्टी के विरोधियों सहित अन्य लोगों के भय को शांत करेगा? ऐसा करना टं्रप के लिए आसान नहीं होगा, क्योंकि उन्हें अपने श्वेत समर्थकों को संतुष्ट करना होगा और इसके साथ ही अमेरिकी अश्वेत और हिस्पैनिक जैसे अल्पसंख्यक समूहों को सुरक्षा और कल्याण का भरोसा देना होगा।
जीत के बाद ट्रंप ने दुनिया को मित्रता का संदेश भी दिया। उन्होंने कहा कि हालांकि वह सबसे पहले अमेरिका के हित को प्राथमिकता देंगे, लेकिन विश्व के देशों के साथ शत्रुता का भाव नहीं रखेंगे, बल्कि बराबरी का भाव रखते हुए दोस्ताना संबंध रखेंगे। ट्रंप ने भरोसा दिलाया है कि जो देश अमेरिका के साथ मिलकर चलना चाहेंगे, अमेरिका उनका साथ देगा। ये कुछ शब्द उनकी विदेश नीति के बारे में शुरुआती विचार सामने रखते हैं। इससे प्रतीत होता है कि वह कड़ाई से मोल-तोल करेंगे, लेकिन दूसरे देशों के साथ तालमेल बैठाने की जरूरतों को पूरी तरह नजरअंदाज नहीं करेंगे। उन्हें समझना होगा कि राजनीति कारोबार नहीं है और दुनिया आतंकवाद सहित अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और राजनीतिक मुद्दों से जुड़ी उनकी नीतियों पर सावधानीपूर्वक नजर रखेगी। जो लोग चुनाव लड़ते हैं वे ऐसे मुद्दों पर अपना एक स्टैंड लेते हैं जिनके संदर्भ में उन्हें लगता है कि वे उनकी जीत में मदद कर सकते हैं, लेकिन एक बार जब वे सत्ता प्राप्त कर लेते हैं तो फिर उस कुर्सी के साथ आने वाली चुनौतियों, दबावों से रूबरू होते हैं। यह उनके चुनाव के दौरान के रुख में बदलाव का कारक बनता है। यह ट्रंप के साथ भी हो सकता है।
ट्रंप के विचारों को लेकर इस्लामिक दुनिया में कुछ चिंताएं-आशंकाएं हैं। उन्होंने इस्लामिक कट्टरपंथ और आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकने की जरूरत को लेकर तीखी टिप्पणी की थी। इस संदर्भ में उन्होंने कहा था कि आइएसआइएस एक ऐसा संगठन है जिसे पूरी तरह से नेस्तनाबूद किए जाने की जरूरत है। ट्रंप ने सीरिया मुद्दे पर अमेरिका और रूस के आपसी सहयोग का उल्लेख किया था। अब देखना है कि क्या वह इस मसले पर पुराने रास्ते पर ही चलते हैं या राष्ट्रपति बराक ओबामा की उन नीतियों को उलट देंगे जिनकी वजह से सीरिया सहित अन्य मुद्दों पर रूस से तनाव बढ़े हैं? चुनावी प्रचार के दौरान ट्रंप ने एक बार अमेरिकी आव्रजन नीति को लेकर असहमति जताई थी और देश में बाहरी मुस्लिमों के आने पर रोक लगाने की वकालत की थी। हालांकि बाद में वह अपने रुख से पलट गए और कहा कि आव्रजन की अनुमति कड़ी छानबीन के बाद ही प्रदान की जानी चाहिए। ट्रंप की इन्हीं टिप्पणियों के चलते उन्हें इस्लाम विरोधी बताया जाने लगा। हालांकि यह देखना मजेदार होगा कि ट्रंप अफगानिस्तान और पाकिस्तान जैसे इस्लामिक देशों से कैसे निपटते हैं।
टं्रप भारतीय अर्थव्यस्था की प्रगति से परिचित हैं, लेकिन अगर वह दक्षिण एशिया को राजनीति के नजरिये से देखेंगे तो चीजें साफ नहीं हो पाएंगी। ट्रंप ने इस बार दीवाली पर एक वीडियो के जरिये भारतीय अमेरिकी समुदाय का अभिवादन किया जिसमें उन्होंने कहा कि अबकी बार, ट्रंप सरकार। लेकिन अभी इन सब चीजों को चुनाव की रणनीति की नजर से देखा जाना चाहिए। इसे फिलहाल ट्रंप प्रशासन का रुख नहीं मानना चाहिए। अभी यह भी स्पष्ट नहीं है कि दक्षिण एशिया के मामले में ट्रंप का सलाहकार कौन होगा। चीन के साथ रिश्तों, पश्चिम एशिया में संकट के अलावा ईरान के साथ संबंधों को सुधारने में ट्रंप का शुरुआती समय लग सकता है। इसलिए भारत के प्रति उनकी नीति को आकार लेने में कुछ समय लग सकता है। यह स्पष्ट है कि भारत के साथ संबंधों को सुधारने को लेकर अमेरिका के राजनीतिक गलियारे में एक आम सहमति है। उम्मीद की जानी चाहिए कि टं्रप इससे इतर नहीं जाएंगे। मोदी सरकार को टं्रप की आर्थिक नीतियों के कारण होने वाले नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिका में आइटी क्षेत्र में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों पर भी असर पड़ सकता है। कुल मिलाकर टं्रप प्रशासन में भारत-अमेरिका संबंधों को लेकर संभावनाएं उज्ज्वल हैं।
[ लेखक विवेक काटजू, विदेश मंत्रालय में सचिव रहे हैं ]