अरविंद चतुर्वेदी। अमेरिकी राष्ट्रपति का उल्लेख आते ही हर व्यक्ति के जेहन में एक ऐसी हस्ती की स्वत:स्फूर्त छवि उभर आती है, जो दुनिया का सबसे अधिक सामर्थ्यवान प्राणी है। दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र में इस पद पर मौजूद हर व्यक्ति ने इस साख को बनाने के लिए अपने आचार, विचार और व्यवहार से समझौता नहीं किया। अपवाद हो सकते हैं, लेकिन उनकी डिग्री का अमेरिका के 45वें राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के स्तर से कोई मैच नहीं है। इतिहास में जब कभी इनके कार्यकाल की समीक्षा की जाएगी तो नि:संदेह आधुनिक वैश्विक युग के ये सबसे अगंभीर और अनिर्णायक राष्ट्रपति साबित हो सकते हैं।

जाको प्रभु दारुण दुख दीन्हा, ताकी मति पहले हरि लीन्हा। गोस्वामी तुलसीदास रचित इस चौपाई के मर्म को अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अब चरितार्थ करते दिख रहे हैं। वैधानिक रूप से चुनाव हारने को खारिज करने वाले ट्रंप शायद पहले ऐसे राष्ट्रपति होंगे जिन पर अमेरिकी संसद पर अपने समर्थकों से हिंसा फैलाने का आरोप लगा। खुद को मिले असीमित अधिकार का इस्तेमाल खुद की माफी के लिए करने की सोच उनकी दोहरी शख्सियत की कलई खोल देती है।

अब बाइडन के सत्ता हस्तांतरण कार्यक्रम का बहिष्कार करने की उनकी मंशा उनके पद के अनुकूल व्यवहार न करने की एक और मिसाल साबित होगी। उनकी ही पार्टी के शीर्ष नेता उनके कृत्यों के लिए अगर उन्हें कुसूरवार ठहरा रहे हैं तो उसके लिए रिपब्लिकन पार्टी भी कम दोषी नहीं है। इस पार्टी को अब यह भी विचारना होगा कि लोकप्रियता और राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के दो अलग-अलग मायने होते हैं।

आक्रामकता के मामले में अमेरिका की रिपब्लिकन पार्टी को डेमोक्रेटिक से बीस माना जाता है। ऐसा नहीं है कि डेमोक्रेटिक पार्टी ने जंग की शुरुआत नहीं की है, लेकिन इस राजनीतिक दल के राष्ट्रपति के खाते में ज्यादातर जंग मानवाधिकार उल्लंघन को रोकने के लिए दर्ज हैं। याद कीजिए 11 सितंबर 2001 की वह तस्वीर जब अमेरिका के वर्ल्ड टेड टावर को अलकायदा के आतंकियों ने विमान हाइजैक करके ढहा दिया था।

इसके मलबे पर खड़े होकर रिपब्लिकन पार्टी के ही तत्कालीन राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश ने एक राहतकर्मी के कंधे पर हाथ रखकर उसके ही माइक से जो घोषणा की थी, उसका अर्थ था- हम उन्हें बिल से निकालकर मारेंगे। तब उनके इस दावे पर सहजता से यकीन किया जा सकता था, क्योंकि वे अपनी कार्यशैली से अपनी गंभीर आक्रामकता को साबित कर चुके थे। वादे के मुताबिक इस बार भी उन्होंने फैसला किया। वल्र्ड ट्रेड सेंटर के ढहने से उठा गुबार शांत भी नहीं हुआ था कि कुछ ही दिनों बाद ऑपरेशन एनड्यूरिंग शुरू हो चुका था। ओसामा बिन लादेन की तलाश में अफगानिस्तान की तोरा-बोरा पहाड़ियों पर मिसाइलों की बरसात शुरू हो चुकी थी। ये थी आक्रामकता और गंभीरता।

कई मुल्कों के राष्ट्राध्यक्षों से राष्ट्रपति ट्रंप की भी नोंकझोंक होती रही, लेकिन ज्यादातर मामलों में दुनिया ने इससे मनोरंजन ही किया। जब वे उत्तर कोरिया के तानाशाह को कहते हैं कि परमाणु बम का बटन तो उनकी मेज पर भी लगा है, और वह उनकी तुलना में काफी बड़ा है तो लोग इस कुशल संवाद अदायगी का सिर्फ लुत्फ उठाते हैं। ईरान से लेकर मध्य-पूर्व तक के हालातों पर रूस के मुकाबले निर्णय के मोर्चे पर ट्रंप कमजोर ही साबित होते रहे।

राष्ट्रपति के चरित्र को लेकर भूतकाल की कई बातें सामने आईं, लेकिन उनकी अगंभीरता को दुनिया ने कई बार लाइव देखा। उनके अप्रत्याशित व्यवहार का कई बार लोग गवाह बने। नवंबर, 2017 में वे जापान दौरे पर गए थे। वहां एक कार्यक्रम के दौरान जापान के तत्कालीन प्रधानमंत्री एबी शिंजो उन्हें मछलियों को चारा खिलाने ले गए। शिंजो एक्वेरियम में मछलियों को एक एक करके चारे की गोलियां डाल रहे थे, पर दो तीन गोली डालने के बाद ट्रंप ने पूरी बर्तन उड़ेल दी। किसी को भी ऐसी उम्मीद नहीं रही होगी।

घरेलू मोर्चे पर उनकी नीतियों ने वैमनस्य बढ़ाने का ही काम किया, तभी उनके मुकाबले सामने आए डेमोक्रेट उम्मीदवार जो बाइडन ने शुरू से ही देश की एकता को मजबूत करने को अपनी प्राथमिकता बनाया। पिछले एक साल से दुनिया जिस सबसे बड़ी महामारी से जूझ रही है, उसको लेकर अमेरिका के राष्ट्रपति कभी गंभीर नहीं दिखे। बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी संस्था द्वारा जारी एहतियाती कदमों का न सिर्फ उपहास उड़ाया, बल्कि खुद भी कभी उनका अनुपालन नहीं किया। 

दुनिया के सभी राष्ट्राध्यक्ष जहां अपने नागरिकों को इस महामारी से बचाने के लिए रात-दिन एक किए हुए थे, वहीं ट्रंप इससे एकदम बेपरवाह दिखे। उनकी इस लापरवाही का उनके नागरिकों ने बहुत ही शिद्दत से अनुसरण किया। बाकी सब इतिहास में दर्ज हो चुका है कि किस तरह अमेरिका अब तक इस महामारी के जबड़े से निकल नहीं सका है।

जिस देश के किसी एक सैनिक की विदेशी मोर्चे पर मौत सरकारों से जवाब-तलबी का सबब बन जाया करती है, उसी देश के करीब चार लाख लोग इस वायरस के शिकार होकर असमय काल-कवलित हो चुके हैं। ‘देश पहले’ के नाम पर ट्रंप ने जो नीतियां लागू कीं, उसने भारतीय हितों पर भी वार किया। इन सबके बीच नए वैश्विक भू-राजनीतिक संदर्भ में उन्होंने चीन को 21वीं सदी का सबसे बड़ा खतरा घोषित करते हुए बड़ी शिद्दत से उसे स्थापित भी किया। यह बात उनके हक में जाती है कि चीन से ट्रेड डील विफल होने के बाद उन्होंने उसे चोट पहुंचाने की जितनी संभव कोशिश की, वह उल्लेखनीय है।