भूपेंद्र यादव : अगस्त माह का स्वतंत्र भारत के इतिहास में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। आठ अगस्त, 1942 को महात्मा गांधी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' नारे के साथ ही भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया था। बापू के आह्वान को करीब से देखने पर आभास होता है कि उनका उद्देश्य पूर्ण रूप से राजनीतिक नहीं, बल्कि लोक जागरण करना भी था। गांधीजी ने केवल स्वतंत्र भारत की ही कल्पना नहीं की थी। वह छुआछूत से मुक्त स्वतंत्र भारत की दिशा में भी सक्रिय थे। वह भारतीयों को सत्य के प्रति प्रतिबद्ध, निर्भय और प्रेम से परिपूर्ण बनाना चाहते थे। वह सामूहिक विकास चाहते थे, जहां लोग परस्पर एक दूसरे के विकास में मदद करें।

इस विकास के लिए स्वदेशी और स्वराज के अर्थ नैतिक और आध्यात्मिक उत्थान से जुड़े हैं। ऐसा भारत जहां वंचितों और महिलाओं को सभी क्षेत्रों में समान जीवन का अधिकार मिलता और जहां लोग अपने आसपास स्वच्छता का ध्यान रखते। समग्रता में गांधीजी ने एक ऐसे भारत की कल्पना की, जहां लोग न केवल स्वतंत्र हों, बल्कि सिद्धांतवादी, नैतिक और न्यायपूर्ण भी हों। इस जागरण के लिए वह भारतीय समाज को एक करना चाहते थे, क्योंकि एक होने पर ही हम गरिमापूर्ण समावेशी विकास कर सकते हैं। आज अगस्त के इस महीने में जब भारत अपने अस्तित्व की गौरवशाली गाथा के 75 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है तब हमें अपने राष्ट्र निर्माताओं के सपनों और आकांक्षाओं को मूर्त रूप देने का संकल्प लेना चाहिए।

जिस समय भारत स्वतंत्र हुआ तब एक तबके ने आशंका भरी भविष्यवाणी की थी कि वह असफल राष्ट्र सिद्ध होकर शीघ्र ही बिखर जाएगा। ऐसी चिंताएं पूरी तरह निराधार भी नहीं थीं। भारत जैसे विशाल आकार और व्यापक विविधता वाले देश का सैकड़ों वर्षों तक विदेशी शासन से बाहर आकर एकाएक खड़ा होना आसान नहीं था। ऐसे कई देश या तो छोटे-छोटे टुकड़ों में बंट गए थे या फिर परतंत्र होते गए। उनके विपरीत भारत ने न केवल स्वतंत्रता के बाद भी अपने अस्तित्व को बनाए रखा, बल्कि समय के साथ समृद्ध भी होता गया।

स्वतंत्र भारत आज अपनी गौरवशाली गाथा के 75 वर्षों का जश्न मना रहा है। दुनिया हमें विस्मय से देख रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस महत्वपूर्ण अवसर के महत्व को समझते हुए इसे 'हर घर तिरंगा अभियान' के साथ मनाने का आह्वान किया है, क्योंकि भावनात्मक एकता हमें अपनी कमजोरियों पर विजय प्राप्त कर आगे बढ़ने में मदद करेगी। यहां कोई सवाल उठा सकता है कि तिरंगा ही क्यों? वास्तव में तिरंगे से बेहतर भारत के विचार और आदर्शों का प्रतिनिधित्व कोई और कर भी नहीं सकता। ऐसा क्यों है? इसकी पड़ताल के लिए हमें अतीत के पन्नों को पलटना होगा।

झंडे प्राचीन काल में धर्मों, व्यापारियों और यहां तक कि राजवंशों के प्रतीक बन गए। लोगों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले ध्वज को संबंधित व्यक्ति और क्षेत्र के समान ही सम्मान दिया जाता था। यही कारण है कि युद्ध में शामिल दलों का उद्देश्य एक दूसरे के झंडे को पकड़ना और नीचे गिराना होता था। युद्ध में झंडा खोना सम्मान गंवाने और युद्ध हारने के समान था। बदलते समय के साथ आधुनिक युग में किसी व्यक्ति या सेना का प्रतिनिधित्व करने वाले ध्वज की अवधारणा समाप्त होती गई।

झंडा अब एक राष्ट्र की सर्वव्यापी पहचान के प्रतिनिधि का रूप ले चुका है। अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में उपलब्धि के अवसर पर इसे गर्व से लहराया जाता है। यह विजय और उल्लास को प्रकट करता है। आज राष्ट्रध्वज राष्ट्र के इतिहास का प्रतीक है। राष्ट्र के सतत गौरव की ओर बढ़ने के दृढ़संकल्प का प्रकटीकरण है। राष्ट्रध्वज केवल जीवित नागरिकों के लिए ही नहीं है, अपितु यह हमें देश के उन बलिदानी वीरों की याद भी दिलाता है, जिन्होंने सुनिश्चित किया कि हमारा झंडा कभी न झुके। यह हमें उन सिद्धांतों की भी याद दिलाता है, जिनके आधार पर राष्ट्र टिका है। यह राष्ट्र के गौरव और उन लोगों के लिए सम्मान का प्रतीक है, जिन्होंने राष्ट्र की अखंडता की रक्षा एवं उसके संरक्षण में अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर जब भारत अपने अमृत काल में प्रवेश करने जा रहा है, तब हर घर तिरंगा अभियान का उद्देश्य भारत और उसके लोगों की महान यात्रा का स्मरण करना और बेहतर भविष्य की ओर अग्रसर होना है। यह अभियान हमें देशभक्ति की प्रतिज्ञा को पुन: स्मरण करने और आगे की यात्रा में अपने संकल्प को दृढ़ करने का अवसर प्रदान करता है।

हर घर तिरंगा अभियान के तहत प्रधानमंत्री मोदी ने देश की आजादी के 75 साल पूरे होने पर 13 से 15 अगस्त तक हर नागरिक से अपने घर पर तिरंगा फहराने का अनुरोध किया है। उन्होंने लोगों से एकता की भावना दर्शाने के लिए अपने इंटरनेट मीडिया प्रोफाइल चित्रों के रूप में तिरंगा लगाने के लिए भी कहा है, क्योंकि तिरंगे से बेहतर हमें कुछ भी नहीं जोड़ सकता। इसके तीन रंग भारत की सभी विविधताओं, पर्व-त्योहारों, सभी विश्वासों, रीति-रिवाजों, धर्मों-पंथों और उपासना पद्धतियों को समाहित एवं संयोजित करते हैं।

तिरंगे में मौजूद अशोक चक्र धर्मचक्र का प्रतिनिधित्व करता है। यह कर्तव्य का पहिया है। यह चक्र हमें एक नागरिक के रूप में राष्ट्र के प्रति हमारे कर्तव्यों की याद दिलाता है। यही धर्मचक्र हमें शुद्ध पर्यावरण और शून्य उत्सर्जन के लक्ष्य को पूरा करने वाले विकास माडल के साथ आत्मनिर्भर भारत के निर्माण की दिशा में योगदान करने के हमारे संकल्प की याद दिलाता है। यह विकास का वह रूप होगा जिसमें हम पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली के जीवन मंत्र को अपनाकर प्रकृति के साथ एकात्म स्थापित कर चुके होंगे।

गत वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर अपने भाषण में पीएम मोदी ने कहा था कि यहीं से शुरू होकर अगले 25 साल की यात्रा एक नए भारत का अमृत काल है। उनका कहना है, 'इस अमृत काल में हमारे संकल्पों की पूर्ति हमें आजादी के 100 साल तक ले जाएगी।' उन्होंने ठीक ही कहा है कि भारत एक बड़ा परिवार है, जिसका धर्म भारत का संविधान है और जिसकी पहचान तिरंगा है। अत: अपने 75 वर्ष पूरे होने पर इस परिवार को तिरंगे के नीचे एकजुट होना चाहिए। हर घर तिरंगा अभियान में शामिल होकर भारत के सभी जन अपनी क्षमताओं, उद्देश्यों और अपनी पहचान तिरंगे की आन-बान-शान के संकल्प को दृढ़ बनाएं।

(लेखक भारत सरकार में श्रम व रोजगार तथा वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री हैं)