नई दिल्ली [ प्रकाश जावडे़कर ]। आज छह अप्रैल को भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा पूरे 38 साल की हो रही है। यदि भारतीय जनसंघ के समय से देखेंगे तो पार्टी 67 साल की हो गई। पहले 1951 से 1977 तक जनसंघ का रूप था। फिर 1977 से 1980 तक जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हुआ और 1980 में भाजपा के नाम से अलग दल बना। दुनिया में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती है, लेकिन उससे भी ज्यादा 11 करोड़ से अधिक सदस्य भाजपा के हो गए हैं।

भाजपा पहली ऐसी पार्टी है जिसने तकनीक का उपयोग कर जनता को खुला आमंत्रण देकर अपना सदस्य बनाया है। लोगों ने मिस कॉल दी, फिर उनको पार्टी से फोन गया। उनसे जानकारी ली और फिर कार्यकर्ताओं ने उनसे संपर्क किया। इस क्रम में मैं खुद पुणे शहर की झुग्गी झोपड़ियों में इस तरह से सदस्यता लेने वाली 200 महिला सदस्यों के घर गया। मैंने उनसे पूछाआप खुद सदस्य क्यों बन रहीं तो उन्होंने कहा-हमारा मोदी जी पर भरोसा है और वह देश को आगे ले जाएंगे। मुझे अहसास हुआ कि किस तरह गरीबों की आकांक्षा पार्टी से जुड़ गई। जब सदस्यता मुहिम की कल्पना पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने रखी थी तो अनेक नेता सशंकित थे। उनका कहना था कि घर-घर जाकर सदस्य बनाने के लिए भी प्रयास करने पड़ते हैं तो भला यह कैसे संभव होगा? सबके पास मोबाइल नहीं होंगे। आशंकाएं बहुत थीं, लेकिन अमित शाह अपने निर्णय पर अडिग रहे और इस अभियान की सफलता ने इतिहास रच दिया। उन्होंने पार्टी को नई ऊंचाई पर पहुंचाया।

भाजपा की विशेषता क्या है? मैं कहूंगा कि यह पार्टी ‘नेशन फस्र्ट’ यानी राष्ट्र को ही सर्वोपरि मानती है। ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा देकर चलने वाली यह किसी एक परिवार की पार्टी नहीं है। किसी एक जाति की पार्टी नहीं। किसी एक मजहब की पार्टी नहीं। ऐसी एक पूर्ण लोकतांत्रिक तरीके से कैडर आधारित, संगठन के रूप में उभरी हुई एक अनूठी पार्टी है और इसलिए आज इतनी मजबूती के साथ खड़ी हुई है। भारत में अनेक पार्टियां हैं। उनमें से अधिकांश पारिवारिक रूप से ही संचालित हैं। वहां नेतृत्व एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के हाथ में चला जाता है, लेकिन भाजपा की यही विशेषता है कि यह कार्यकर्ताओं का संगठन है। यहां पैसा, जाति और घराना नहीं लगन, प्रतिभा और मेहनत को सबसे ज्यादा अहमियत दी जाती है। इसलिए गरीब घर से ताल्लुक रखने वाले और स्टेशन पर चाय बेचने वाले नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने।

भाजपा में पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से लेकर छोटे-बड़े तमाम पदाधिकारी जमीनी स्तर पर काम करके ही आगे बढ़े हैं। पार्टी में समायोजन की भावना बलवती है। दूसरी पार्टियों के तमाम नेताओं ने भी हमारी संस्कृति को बखूबी आत्मसात किया है तो यह पार्टी के माहौल का ही परिणाम है। जहां अनेक पार्टियां एक ‘परिवार पार्टी’ हैं वहीं भाजपा पार्टी के रूप में ‘एक परिवार’ है।

1980 में जब भाजपा का जन्म हुआ तब मैंने बैंक की नौकरी छोड़कर पार्टी के लिए पूर्णकालिक तौर पर काम शुरू किया था। उस समय दोहरी सदस्यता के एक बेमतलब मुद्दे पर समाजवादियों ने जनता पार्टी को तोड़ दिया। जनता पार्टी में विभाजन के बाद जनसंघ अलग हुआ और भाजपा की फिर से स्थापना हुई। उसका पहला अधिवेशन मुंबई में हुआ, लेकिन स्थापना दिल्ली में हुई थी। उस समय बहुत ही अनिश्चित राजनीतिक माहौल था? तब अटल जी ने अपने जादुई मंत्र ‘अंधेरा छंटेगा, सूरज निकलेगा, कमल खिलेगा’ से जबरदस्त प्रोत्साहित किया। अटल जी, आडवाणी जी, कुशाभाऊ ठाकरे, सुंदर सिंह भंडारी, मुरली मनोहर जोशी जी ने 1980 के बाद से पार्टी को लगातार जैसा नेतृत्व दिया और हमारे लाखों-करोड़ों कार्यकर्ताओं ने जो मेहनत की यह उसका ही परिणाम है कि भाजपा इतनी आगे बढ़ी। उतार- चढ़ाव हर पार्टी के जीवन में आते हैं।

इंदिरा जी की जघन्य हत्या के बाद 1984 के लोकसभा चुनाव में सहानुभूति के चलते कांग्रेस को भारी बहुमत मिला। इसलिए भाजपा के केवल दो सदस्य चुनकर आए और कांग्रेस के चार सौ से भी ज्यादा सदस्य जीते। तब लगता था कि अब हमारी पार्टी का कोई भविष्य नहीं, लेकिन हमारे नेताओं और कार्यकर्ताओं ने जबरदस्त मेहनत की। कांग्रेस और भाजपा का संघर्ष भी 1984 से शुरू हुआ। तब कांग्रेस के चार सौ से अधिक सांसद थे और भाजपा के महज दो। फिर हम दो से 282 हो गए और कांग्रेस महज 44 सांसदों पर सिमट गई।

जो हिम्मत नहीं हारते और विचारधारा पर अडिग रहते हैं, वही विजयी होते हैं। भाजपा ने राष्ट्रवाद की गुहार लगाई, सबको साथ लिया, कभी एक जाति या वर्ग के लिए नहीं, सारे समाज के उत्थान के लिए काम किया। भाजपा भारत की तरक्की के लिए, ‘नेशन फस्र्ट’ पार्टी के रूप में चली। इसलिए इतना आगे बढ़ी। 1989 में एक महत्वपूर्ण पड़ाव आया जब राम मंदिर का मुद्दा उठा और देश भर में भाजपा के कार्यकर्ता और मतदाता बढ़े। उसके बाद 1991 के चुनाव में भी भाजपा को अच्छा समर्थन मिला। उसकेबाद 1996 में सबसे बड़ी पार्टी बनी और अटल जी प्रधानमंत्री बने। 13 दिन की ही सत्ता सही, लेकिन तब यह भ्रम दूर हुआ कि कांग्रेस के बिना भी कोई पार्टी सत्ता संभाल सकती है। 1999 से 2004 तक अटल जी की सरकार रही।

अटल जी की सरकार ने सुशासन का परिचय दिया। देश का सभी क्षेत्रों में अहम विकास हुआ। अटल जी की सरकार के बाद दस साल कांग्रेस की सरकार रही। पार्टी फिर से संघर्षरत थी, लेकिन 2013 में एक सामूहिक निर्णय के तहत पार्टी ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में प्रस्तुत किया। आठ महीने में ही माहौल ऐसा बदला कि नरेंद्र मोदी के पीछे पूरा देश खड़ा हो गया। भाजपा अकेले पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आ गई। सबकी उम्मीदों के नायक नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने। इसके बाद भाजपा अधिकांश राज्यों में सरकार बनाने में सफल रही तो कांग्रेस की सत्ता चंद सूबों तक सिमट गई। हमारी सरकार के नेतृत्व में एक ओर जहां गांव, गरीब, किसान, जवान, नौजवान, मध्य वर्ग दलित एवं शोषित पीड़ित लोगों के कल्याण के अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं वहीं पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ता बूथ लेवल पर काम कर रहे हैं। बूथ और पन्ना प्रमुख हमारी मुख्य ताकत हैं।

(लेखक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं)