अभिषेक। कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के लिए सबसे अधिक शारीरिक दूरी के नियमों को पालन करने पर जोर दिया जा रहा है। ऐसे में इस बात की प्रबल आशंका थी कि हमारे जीवन में जो कई महत्वपूर्ण बदलाव आएंगे, उनमें से एक परिवहन को लेकर भी होगा। अधिकांश लोग भीड़-भाड़ वाले सार्वजनिक परिवहन का प्रयोग करने से बचना चाहेंगे, गैर जरूरी यात्रओं को टालना चाहेंगे। वहीं निजी वाहन ऐसे परिवारों में भी जरूरत के तौर पर खरीदे जाएंगे, जिनमें अभी तक इसे गैर जरूरी माना जाता रहा है। इस कारण यह उम्मीद की गई थी कि लॉकडाउन के बाद जिन क्षेत्रों में सबसे तेजी से रिकवरी होगी, उनमें ऑटोमोबाइल महत्वपूर्ण होगा।

इस बात के आंकड़े आने भी लगे हैं। पिछले चार महीनों में राजधानी दिल्ली में वाहनों की बिक्री चार गुना बढ़ी है, जो अप्रत्याशित नहीं है। लॉकडाउन के समय के मुकाबले बिक्री का चार गुना बढ़ना कोई आश्चर्यचकित करने वाली बात नहीं थी, मगर दो और आंकड़े जो अनुमानों को सत्यापित करते हैं, वो ये हैं कि कोरोना के कारण हुए आर्थिक नुकसान के बावजूद इस साल अगस्त महीने की बिक्री पिछले साल के अगस्त महीने से ज्यादा रही है और सितंबर में 15 दिन पितृपक्ष होने के बावजूद 22,232 गाड़ियों का पंजीकरण हुआ। ये सभी वाहन निजी उपयोग हेतु खरीदे गए हैं।

अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रख कर देखें तो ये खबरें उत्साहवर्धक हैं, लेकिन शहरी विकास और पर्यावरण के लिहाज से देखें तो कहानी उलटी हो जाती है। राजधानी दिल्ली हर साल ठंड के दिनों में स्मॉग की चपेट में होती है। आसपास के राज्यों से आने वाले पराली के धुएं के अतिरिक्त दिल्ली की सड़कों पर चलने वाले वाहनों के टायर से उड़ने वाले धूलकण इसके महत्वपूर्ण कारण होते हैं। इससे निपटने के लिए पिछले दो वर्षो से दिल्ली सरकार वाहनों के प्रयोग को तात्कालिक तौर पर कम करने के लिए सम-विषम लागू करती रही है।

तमाम कवायदों के बावजूद इस साल स्थिति ज्यादा गंभीर होने वाली है। इसका पहला कारण है कोरोना का प्रभाव सíदयों में ज्यादा होने की आशंका जताई जा रही है। दूसरा, शारीरिक दूरी के नियमों का पालन करने के लिहाज से देखें तो सार्वजनिक परिवहन की क्षमता काफी सीमित है। तीसरा, प्रदूषण जनित स्वास्थ्य समस्या कोरोना के साथ मिल कर स्थिति को और जटिल बना सकती है यानी प्रदूषण को कम करने की जरूरत भी होगी। चौथा, सरकार की माली हालत अच्छी नहीं है यानी बसों को किराये पर लेना मुश्किल होगा और पांचवां डीटीसी की हालत तो पहले से ही खराब है। कुल मिला कर इन सर्दियों में दिल्ली में निजी वाहनों का प्रयोग और भी बढ़ेगा और यह एक ऐसी स्थिति होगी जिसमें एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई होगी।

वाहनों की खरीद पर रोक संभव नहीं, मगर इनका प्रयोग कम हो, यह जरूर किया जा सकता है। इस सिलसिले में जो कदम उठाए जा सकते हैं, उन पर तुरंत ही सोचने की जरूरत है। किसी एक समय बहुत ज्यादा भीड़ न हो, इसके लिए कार्यालयों का समय परिवíतत करते हुए व्यवस्थित करना होगा। जहां तक संभव हो सके, वर्क फ्रॉम होम यानी घरों से कार्य करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। साथ ही सार्वजनिक परिवहन के साधनों को सुगम व सस्ता बनाने के अलावा साइकिल ट्रैक के निर्माण व रखरखाव पर जोर देना होगा, ताकि कम दूरी के लिए लोग साइकिल का अधिक से अधिक इस्तेमाल कर सकें। विकसित देशों की राजधानियों समेत अन्य कई शहरों में साइकिल चलाने की जितनी सुगम व्यवस्था है, हमारे यहां अपेक्षाकृत उसकी व्यवस्था लचर है, लिहाजा लोग कम दूरी के लिए भी इसका इस्तेमाल नहीं करते हैं।

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के शोधार्थी)