[ डॉ. सुरजीत सिंह गांधी ]: चीन ने गलवन घाटी में जो कायरतापूर्ण हरकत की उसने भारतीयों के मन को आक्रोश से भर दिया है। जनभावना का उबाल चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के रूप में हमारे सामने है। कोरोना महामारी के कारण विश्व के देशों का तो चीन के प्रति नजरिया बदला ही है, भारत भी समझ गया है कि 'हिंदी-चीनी, भाई-भाई’ नहीं हो सकते। कई विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का चीन पर बहुत अधिक आर्थिक प्रभाव नही पड़ेगा, क्योंकि चीन अपने कुल निर्यात का केवल तीन प्रतिशत ही भारत को निर्यात करता है। मात्रा में भले ही यह प्रभाव कम हो, परंतु फर्क तो पडे़गा ही। चीनी समाचार पत्र ग्लोबल टाइम्स ने लिखा भी है कि यदि दोनों देशों के बीच जारी हालात सामान्य नहीं होते तो इसका प्रभाव दोनों देशों के व्यापार पर पड़ेगा। प्रश्न यह है कि क्या चीनी सामान के बहिष्कार के लिए हमारी तैयारी पूरी है? क्या हम इस चुनौती से लड़ने के लिए तैयार हैं? इसे समझने के लिए हमें दोनों देशों के व्यापारिक संबंधों को समझना होगा।

भारत चीन से ज्यादा सामान खरीदता है और बेचता कम है, चीन के साथ व्यापार घाटा सबसे ज्यादा

भारत चीन से ज्यादा सामान खरीदता है और उसे बेचता कम है। इससे हमारा व्यापार घाटा भी सबसे ज्यादा चीन के साथ है। इस सदी की शुरुआत में दोनों देशों के बीच व्यापार केवल तीन अरब डॉलर का था, लेकिन 2018 में दोनों देशों के बीच 95.7 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। भारत ने जितना निर्यात किया उसकी तुलना में पांच गुना अधिक सामान चीन से मंगाया।

भारत ने 76.87 अरब डॉलर का आयात किया जबकि निर्यात 18.83 अरब डॉलर का रहा

भारत ने 76.87 अरब डॉलर का आयात किया जबकि हमारा निर्यात केवल 18.83 अरब डॉलर का ही रहा। इससे व्यापारिक घाटा 58.04 अरब डॉलर का हुआ। 2018-19 में भारत के कुल इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का 70 प्रतिशत, टेलीकम्युनिकेशन उपकरण का 25 प्रतिशत, टेलीविजन उद्योग सामानों का 25 प्रतिशत, घरेलू उपकरणों का 12 प्रतिशत, ऑटोमोबाइल बाजार का 26 प्रतिशत, सोलर एनर्जी का 90 प्रतिशत, स्टील का 20 प्रतिशत, फार्मा का 70 प्रतिशत, न्यूक्लियर और मशीनरी का 18 प्रतिशत, आर्गेनिक केमिकल का 10 प्रतिशत, खेल-खिलौने के 90 प्रतिशत बाजार पर चीन का ही कब्जा है। एक तरह से चीन किसी न किसी रूप में हमारे साथ मौजूद है।

लॉकडाउन में पूरा विश्व कोरोना से जूझ रहा चीन अपने एप और ऑनलाइन गेम से कमाई कर रहा

भारत कच्चे माल के रूप में भी चीन से सामान आयात करता है जैसे विद्युत मशीनरी, ऑप्टिकल और फोटोग्राफिक उपकरण, रसायन आदि। जैसे भारत का हर बाजार चीनी वस्तुओं से भरा पड़ा है वैसे ही मोबाइल प्लेटफॉर्म भी चीनी एप से भरे हुए है। लॉकडाउन में भारत सहित जब पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है, अर्थव्यवस्थाएं लड़खड़ा रही हैं तब चीन अपने एप और ऑनलाइन गेम से कमाई कर रहा है।

चीन ने भारत में आठ अरब डॉलर से भी अधिक का निवेश किया है

चीन भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी करता है। चीनी कंपनी अलीबाबा ने स्नैपडील, पेटीएम, बिग बास्केट, जोमैटो आदि में और टेनसेंट ने ओला, स्विगी, हाइक आदि में निवेश किया हुआ हैं। शाओमी, ओप्पो आदि चीनी कंपनियों ने भारत में उत्पादन केंद्र खोले हुए हैं। चीन ने भारत में आठ अरब डॉलर से भी अधिक का निवेश किया है। यह अक्षय ऊर्जा, मोटर कलपळ्र्जे, स्टील, दवा, उपभोक्ता वस्तुओं, और इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में है। जब हमारी निर्भरता चीन पर कुछ ज्यादा ही है तो हम चीनी वस्तुओं का बहिष्कार कैसे कर सकते हैं?

विश्व व्यापार की शर्तों के कारण भारत चीन के व्यापार पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता

विश्व व्यापार की शर्तों के कारण यद्यपि भारत प्रत्यक्ष रूप से चीन के व्यापार पर प्रतिबंध नहीं लगा सकता, परंतु चीनी वस्तुओं के बहिष्कार के द्वारा हम कुछ व्यापार कम कर सकते हैं, लेकिन चीन को बड़ी आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए हमें अपने निर्यात को बढ़ाना होगा। इसके लिए एक सुनियोजित दीर्घकालीन रणनीति बनानी होगी।

आत्मनिर्भर भारत: ‘लोकल फॉर वोकल’ का नारा जमीन पर उतरना चाहिए

हालांकि आत्मनिर्भर भारत बनाने की पहल हो चुकी है, लेकिन उपभोक्ता को अधिक जागरूक बनाने के लिए ई-कॉमर्स नीति के तहत उत्पाद की गुणवत्ता के साथ-साथ उसके उत्पादन के संबंध में भी पूरी जानकारी उपभोक्ताओं को उपलब्ध करानी चाहिए। ‘लोकल फॉर वोकल’ का नारा जमीन पर उतरना चाहिए। यह भी आवश्यक है कि सरकार औद्योगिक क्लस्टर विकसित करे और उद्योगों को सहयोग दे ताकि उत्पादन की लागत कम हो और उत्पादकता में भी वृद्धि हो।

मेड इन इंडिया सामान की गुणवत्ता में सुधार जरूरी

मेड इन इंडिया सामान की गुणवत्ता में भी सुधार जरूरी है। भारत सरकार का कौशल विकास कार्यक्रम अभी भी पर्याप्त प्रभावशाली नहीं। यदि इस इस कार्यक्रम को उद्योगों एवं बड़ी कंपनियों के साथ जोड़ दिया जाए तो यह एक कारगर कार्यक्रम बन सकता है। भारत में छोटे उद्योग हमेशा छोटे ही रह जाते हैं, क्योंकि उन्हेंं उचित माहौल एवं प्रोत्साहन नहीं मिल पाता। उन्हें स्टार्ट अप के साथ जोड़कर विकास की एक नई दिशा दी जा सकती हैं।

भारत में आधुनिक तकनीक, गुणवत्ता, कुशल एवं अनुभवी श्रमिकों की कमी

भारत जिन क्षेत्रों में अधिक कुशल है, इसकी शुरुआत वहीं से होनी चाहिए। भारत में आधुनिक तकनीक, गुणवत्ता, कुशल एवं अनुभवी श्रमिकों की कमी, बुनियादी संरचना की कमी और संसाधनों का पूर्ण दोहन न होना ऐसे कारण हैं जिन पर सरकार को तुरंत युद्धस्तर पर कार्य करने की आवश्यकता है।

भारत की अर्थव्यवस्था 2.9 ट्रिलियन डॉलर है जबकि चीन की 14.1 ट्रिलियन डॉलर

नई तकनीक को प्रोत्साहन के साथ-साथ नौकरशाही पर विशेष ध्यान देने जाने की आवश्यकता हैं। भारत में सस्ती बिजली की उपलब्धता भी एक मुद्दा है। चीन में प्रति किलोवॉट विद्युत की लागत तीन रुपये है जबकि भारत में यह आठ-नौ रुपये आती है। कहने को तो भारत जीडीपी के आधार पर विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर चीन की तुलना में पांच गुनी कम है। भारत की अर्थव्यवस्था 2.9 ट्रिलियन डॉलर है जबकि चीन की 14.1 ट्रिलियन डॉलर।

भारतीय बाजार को लेकर चीन खुद को भारत से दूर नहीं कर सकता

भारतीय बाजार की विशाल उपभोग क्षमता को देखते हुए चीन खुद को भारत से दूर नहीं कर सकता। चीन को आर्थिक चोट देने के लिए चीनी सामान के बहिष्कार से ज्यादा उसे अधिक निर्यात करने की नीति बनाने की जरूरत है। जब भी हम जातिगत विवादों एवं वोट बैंक की राजनीति को दरकिनार कर विकास पर ध्यान देना प्रारंभ करेंगे, देश को आत्मनिर्भर बनने से कोई नहीं रोक पाएगा।

( लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं )