विकास सिंह। कोविड-19 ने हर किसी को प्रभावित किया है। मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। गरीब कंगाल होता जा रहा है। अधिकांश सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग यानी एमएसएमई संघर्ष कर रहे हैं, कई मैदान भी छोड़ चुके हैं। शीर्ष 1,000 कॉरपोरेट में 20 फीसद से भी ज्यादा ऐसे हैं, जिनके सामने अस्तित्व का संकट पैदा हो गया है। आर्थिक गतिविधियां भी धीमी हो गई हैं। नौकरी की अनिश्चितता व उपभोक्ताओं से सीधे जुड़े क्षेत्रों में घटती मांग ने अन्य क्षेत्रों को भी प्रभावित किया है। लॉकडाउन ने 70 फीसद विवेकाधीन खपत को विलंबित कर दिया है। 20 फीसद खपत पूरी तरह प्रभावित हुई है। जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) को 10 फीसद नुकसान पहुंचा है और इससे गरीबों की आय 35 फीसद प्रभावित हुई है। नाजुक दौर से गुजर रही अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए केंद्र को निर्णायक व सशक्त मौद्रिक तथा राजकोषीय नीति को अमल में लाने की जरूरत है। निवेश को बढ़ावा देना होगा और खजाने को खोलना होगा।

हालांकि, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने निराश किया है। उन्होंने सस्ते लोन, टैक्स में कमी और ऋण ढांचे की पुन: संरचना जैसे उपाय अपनाए हैं, जबकि आवश्यकता मांग बढ़ाने, उपभोक्ता को तसल्ली देने और कमजोर व्यवसायों की ढाल बनने की थी। बिक्री और खरीद से जुड़ी शृंखला प्रभावित हुई है। नीति निर्माताओं को यह अच्छी तरह से याद रखना होगा कि जब कोई व्यक्ति किसी दुकान से खरीदारी करता है तो वह खरीद और बिक्री की एक शृंखला शुरू करता है। यह शृंखला एक लाभकारी चक्र शुरू करती है।

यह चक्र मांग और रोजगार पैदा करने के साथ आपूर्ति शृंखला से जुड़े हर व्यक्ति को लाभ प्रदान करता है। जीडीपी को बल देता है। वित्त मंत्री को वंचितों के बीच थोड़ी-थोड़ी राशि बांटने में नहीं फंसना चाहिए। यह अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता है। कॉरपोरेट कर में वृद्धि करनी होगी, ताकि खजाना समृद्ध हो सके। इसमें रिजर्व बैंक को भी भूमिका अदा करनी होगी। छोटे किसानों, व्यापारियों और एमएसएमई पर ध्यान देना होगा। ये न सिर्फ हमारी अर्थव्यवस्था को चलाते हैं, बल्कि रोजगार भी पैदा करते हैं।

एक अध्ययन बताता है कि मांग में बढ़ोतरी और खपत को प्रोत्साहित करते हुए सरकार को रोजगार पैदा करने वालों के हाथों में धन उपलब्ध कराना चाहिए। सरकारी संस्थानों को तीन लाख करोड़ रुपये एमएसएमई को जारी करने चाहिए जो कि उनका बकाया है। इससे आर्थिक विकास में तेजी आएगी।

(लेखक मैनेजमेंट गुरु और वित्तीय एवं समग्र विकास के विशेषज्ञ हैं)