[प्रमोद भार्गव]। यह भारत जैसे उदार व सहिष्णु देशों में ही संभव है कि आप अलगाव और देशद्रोह का खुलेआम राग अलापिए, मासूम युवाओं को भड़काइए, राष्ट्र की संपत्ति को नुकसान पहुंचाइए, बावजूद आपका बाल भी बांका होने वाला नहीं है? पाकिस्तान के समर्थन में और भारत के विरोध में नारे लगाने वाले ऐसे लोगों को हम देशद्रोही नहीं मानते, अलबत्ता उनकी सुरक्षा पर करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं। यह एक ऐसी हैरानी में डालने वाली वजह है, जो अलगाववादियों का न केवल भारत में पोषण कर रही है, बल्कि वे भारतीय पासपोर्ट के जरिये दूसरे देशों की सरजमीं पर इतारते हुए भारत के खिलाफ मानवाधिकारों के हनन की वकालत करते हुए विद्रोह की आग भी उगलते हैं।

सुरक्षा और सरकारी धन की यह इफरात ही अलगाववादियों को दुनिया में इतराने का मौका दे रही है। अब बड़ी चोट सहकर भारत पाकपरस्त पांच अलगाववादियों की सरकारी सुरक्षा हटाने को मजबूर हुई है। अब तक यह सुरक्षा केंद्र के परामर्श से राज्य सरकार अस्थाई तौर पर मुहैया करा रही थी। इनमें ऑल पार्टीज हुर्रियत कांफ्रेंस के अध्यक्ष मीरवाइज उमर फारूक, जम्मू-कश्मीर डेमोक्रेटिक पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष शब्बीर शाह, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के हासिम कुरेशी, पीपुल्स इंडिपेंडेंट मूवमेंट के अध्यक्ष बिलाल लोन और मुस्लिम कांफ्रेंस के अध्यक्ष अब्दुल गनी बट हैं।

उमर फारूक ने 29 जनवरी को पाक के विदेश मंत्री से वार्ता की थी जिस पर विवाद हुआ था। शब्बीर शाह कश्मीर में आत्मनिर्णय के अधिकार की बात करते हैं जबकि वहां से चार लाख से भी ज्यादा पंडितों और अन्य अल्पसंख्यकों को 30 साल पहले विस्थापित कर दिया गया है। हाशिम कुरैशी इंडियन एयरलाइंस के विमान अपहर्ताओं में शामिल था। बिलाल लोन पीपुल्स कांफ्रेंस के एक अलगाववादी धड़े का नेता है। अब्दुल गनी बट हुर्रियत का हिस्सा है। इसने कश्मीरी पंडितों को खदेड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। इस कारण इसे सरकारी नौकरी से बर्खास्त किया गया था। इन लोगों पर पाक से पैसा लेने व आइएसआइ के लिए जासूसी करने का भी आरोप है। इसके बावजूद इन सभी पर केंद्र सरकार कड़ी कानूनी कार्रवाई करने से बचती रही।

विडंबना देखिए कि जो देश-विरोधी गतिविधियों में ढाई दशक से लिप्त हैं, उन्हें राज्य एवं केंद्र सरकार की तरफ से सुरक्षा-कवच मिला हुआ है। इन्हें सुरक्षित स्थलों पर ठहराने, यात्राएं कराने और स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने पर पिछले पांच साल में 560 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं। पूरे जम्मू-कश्मीर के 22 जिलों में 670 अलगाववादियों को विशेष सुरक्षा दी गई है जबकि ये पाकिस्तान का पृथकतावादी एजेंडा आगे बढ़ा रहे हैं। कश्मीर के सबसे उम्रदराज अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी कहते हैं, ‘यहां केवल इस्लाम चलेगा। इस्लाम की वजह से हम पाकिस्तान के हैं और पाक हमारा है।’ अलगाववादी महिला नेत्री असिया अंद्राबी पाक का कश्मीर में दखल कानूनी हक मानती हैं। कमोबेश यही स्वर यासीन मलिक और मीरवाइज उमर फारुक का है। यह विडंबना ही है कि हम इनकी बद्जुबानी भी सह रहे हैं और इन्हें सुरक्षा भी मुहैया करा रहे हैं। भारत सरकार ऐसे बर्ताव को देशद्रोही नहीं मानती है, तो तय है कि इन अलगाववादियों का संरक्षण कालांतर में देश के लिए आत्मघाती साबित होगा?

कश्मीरी अलगाववादियों को देश-विदेश की हवाई यात्राएं, पांच सितारा होटलों में ठहरने की सुविधाएं मुहैया कराई जा रही हैं। दिल्ली के एम्स से लेकर महंगे निजी अस्पतालों तक में इनका उपचार कराया जाता है। जम्मू कश्मीर विधानसभा परिषद में भाजपा सदस्य अजातशत्रु ने इस संदर्भ में 1916 में बड़ा खुलासा किया था। सदन में उन्होंने आंकड़े दिए कि राज्य में कुल 73,363 पुलिसकर्मी हैं जिनमें से 18,000 पुलिसकर्मी 670 अलगाववादियों की सुरक्षा में तैनात हैं। देश के खिलाफ बगावत का स्वर उगलने वालों को इतनी सुख-सुविधाएं सरकार दे रही है, तो भला वे अलगाव से अलग होने की बात सोचें ही क्यों? देश की मुख्यधारा में क्यों आएं? राज्य सरकार इस सुरक्षा को उपलब्ध कराने का कारण अलगाववादी नेताओं और आतंकी संगठनों में कई मुद्दों पर मतभेद बताती रही है। इस तकरीर से ही साफ है कि अलगाववादी राष्ट्र के नहीं, बल्कि आतंकियों के ज्यादा निकट हैं। लिहाजा इनके अलगाव के स्वर को पनाह देना कतई राष्ट्रहित में नहीं है।

ये अलगाववादी कितने चतुर हैं और अपने परिवार के सदस्यों के सुरक्षित भविष्य के लिए कितने चिंतित हैं, यह इनकी कश्मीरियों के प्रति अपनाई जा रही दोगली नीति से पता चलता है। इनका यह आचरण ‘तुम सांप के बिल में हाथ डालो, मैं मंत्र पढ़ता हूं’ जैसे मुहावरे को चरितार्थ करता है। वर्ष 2010 में पुलिस व सेना पर बच्चों, किशोरों और युवाओं से पत्थर फेंकने का तरीका मसरत आलम नाम के अलगाववादी ने इजाद किया था। किंतु इस गतिविधि में मसरत की कभी कोई संतान शामिल नहीं रही। इनके सभी बच्चे दिल्ली के महंगे शिक्षा संस्थानों में पढ़कर देश-विदेश में नौकरी कर रहे हैं। खुद खाएं गुलगुले और गुड़ से करें परहेज वाली कहावत सैयद अली गिलानी पर लागू होती है। लोगों को जिहाद और इस्लाम का पाठ पढ़ाने वाले इस चरमपंथी के तीन बेटे व तीन बेटियों में से एक भी अलगाववादी जमात का हिस्सा नहीं है।

ये दिल्ली और अमेरिका में पढ़-लिखकर वैभवशाली जीवन जी रहे हैं। यही नहीं कश्मीर में अलगाववादी गतिविधियां चलाने के लिए इन्हें विदेशों से भी अकूत धन मिल रहा है। सर्वदलीय बैठक में नेताओं ने आतंकवाद खत्म करने की प्रतिबद्धता जताई। सीमापार से प्रायोजित आतंक की कड़ी निंदा की, लेकिन पाकिस्तान का नाम लेने से बचते दिखे। जबकि इन नेताओं को पाकिस्तान का नाम लेने के साथ धारा-370 खत्म करने की बात भी करनी थी? यही वह धारा है जिससे कश्मीरियों को विशिष्ट अधिकार मिले हैं। वे कश्मीरियत की बात तो करते हैं, लेकिन उसे भारतीयता से भिन्न मानते हैं। अलगाववादियों पर अंकुश के साथ इस मानसिकता को भी बदलने के लिए एक वैचारिक मुहिम कश्मीर में चलाने की जरूरत है।

[वरिष्ठ पत्रकार]