जीवन में वास्तविक प्रसन्नता के लिए हमारी रुचि के कार्यों का होना बहुत आवश्यक है। जब हम लगातार अपनी इच्छा अथंवा रुचि के विरुद्ध कार्य करने को विवश होते हैं तो हमारे अंदर निराशा, जड़ता, उदासीनता, नीरसता व तनाव आदि के भाव व्याप्त हो जाते हैं, जो प्रसन्नता ही नहीं स्वास्थ्य के भी शत्रु हैं। अपने स्वास्थ्य को बचाए रखने व अपनी प्रसन्नता को बनाए रखने के लिए अपनी रुचि के कार्य अवश्य करें। लेकिन जीवन में कई बार अपनी रुचि के कार्य करने का न तो अवसर ही मिलता है और न कोई विकल्प ही होता है। ऐसे में जरूरी है कि हम जो कार्य कर रहे हैं उसके प्रति नकारात्मक भाव न रखकर उसमें अपनी रुचि उत्पन्न करने का प्रयास करें। उसके प्रति अपनी मानसिकता बदलें। उसमें प्रसन्नता के बिंदु खोजें। कोई भी कार्य कितना भी अरुचिकर अथवा नीरस क्यों न हो उसमें भी कुछ रोचकता खोजी जा सकती है। उसे कुछ अलग या नए तरीके से किया जा सकता है। दुनिया में जो विजेता होते हैं वे भी कुछ सर्वथा नया कार्य नहीं करते, अपितु कार्यों को नए ढंग से करके सफलता प्राप्त करते हैं।

जब हम किसी नीरस कार्य को भी ध्यान लगा कर पूरे मन से करते हैं तो उसमें हमारी रुचि उत्पन्न होने लगती है। उस कार्य को करना अच्छा लगने लगता है। और जब कार्य रुचिकर हो जाएगा तो उसे करने में हमें आसानी भी होगी और हमारी प्रसन्नता के स्तर में वृद्धि भी। एक बात और भी है और वह यह है कि जब तक हम अपने अनिवार्य कार्यों को चाहे वे कितने भी अरुचिकर क्यों न हों, नहीं निपटा लेते हम समय होने पर भी अपनी पसंद के कार्य करने के लिए तत्पर नहीं हो पाते और वे कार्य मन पर बोझ बने रहते हैं। एक ओर अपने जरूरी कार्यों को न निपटा पाने का बोझ और दूसरी ओर अपने पसंदीदा कार्यों को न कर पाने का मलाल। ऐसे में प्रसन्नता हमसे और अधिक दूर हो जाती है। अरुचिकर अथवा नीरस कार्य को पूरा कर लेने के बाद वैसे भी अतिरिक्त प्रसन्नता की अनुभूति होना स्वाभाविक है। अत: जीवन में भरपूर प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए अरुचिकर कार्यों की उपेक्षा करके उनका ढेर लगाने के बजाय उन्हें समय पर पूरा करके अतिरिक्त प्रसन्नता प्राप्त करें। इसी से अपने मनपसंद कार्यों को करने का पर्याप्त समय भी मिल पाएगा और अधिकाधिक प्रसन्नता भी।

[ सीताराम गुप्ता ]