[ डॉ. फैयाज खुदसर ]: इन दिनों नीला आकाश, रात को उसमें चमकते अनगिनत तारे और सुबह चिड़ियों की चहचहाहट मुझे मेरे बचपन की ओर खींच ले जाती है। दिल और दिमाग से मैं खुद को वर्षों पीछे गंगा-गंडक के संगम पर बसे छोटे से शहर खगड़िया में खड़ा पाता हूं। मैं ही क्यों गांवों में पले-बढ़े, लेकिन इस वक्त महानगरों का हिस्सा बने हजारों-हजार लोग भी शायद मेरा जैसा महसूस करते होंगे। पहले जनता कर्फ्यू और फिर लॉकडाउन कोरोना वायरस से उपजी महामारी से बचने के लिए एहतियातन उठाया गया कदम है। फिलवक्त हम इंसानों के पदचाप ठहर गए हैं। सड़कों पर गाड़ियों का चलना तकरीबन बंद है। महानगरों में आवाजाही पर रोक ने ऐसा माहौल बना दिया है जो दूसरे जीवों के अधिकारों को सशक्त बना रहा है। शहरी परिवेश में जिन पक्षियों का दर्शन दुर्लभ था, वे आज यह हर तरफ दिख रहे हैं।

लॉकडाउन से वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में आएगी गिरावट

ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि वैश्विक स्तर पर कार्बन उत्सर्जन में पांच फीसद या इससे भी ज्यादा की सुखद गिरावट आएगी। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह अपनी तरह की पहली घटना होगी। इसके सही आंकड़े तो संकट खत्म होने के बाद के अध्ययनों से ही मिल सकेंगे, लेकिन इसका असर अभी भी महसूस किया जा सकता है। मसलन, दिल्ली एवं इसके आस-पास इस वक्त दिखने वाला नीला आसमान। बमुश्किल बीस दिन पहले यह धूल कणों और धुएं से मिश्रित काला और भयानक नजर आता था। हवाई जहाजों के जमीन पर बने रहने, कारखानों के बंद होने और वाहनों के सड़कों से नदारद रहने से शायद ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में अभूतपूर्व गिरावट आई है।

ल एवं वायु के बाजारीकरण का खामियाजा समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोग उठा रहे हैं

वैश्वीकरण ने हमें प्राकृतिक न्याय के विपरीत संसाधनों का अत्यधिक शोषण करना सिखाया है। मानव जाति ने पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन सिद्धांत के विपरीत नदियों एवं जंगली पर्यावासों का दोहन किया। मानव ने विकास की दिशाहीन दौड़ मे पीने के पानी एवं शुद्ध वायु तक को भी नजरअंदाज किया। उसने प्रकृति की अनमोल धरोहर-जल एवं वायु का भी बाजारीकरण कर दिया। इसका खामियाजा समाज के अंतिम पंक्ति में खड़े लोगों को उठाना पड़ रहा है।

यमुना नदी का साफ पानी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गया

इन दिनों केरल के कोझीकोड में मालाबार सिवेट का सड़क पर निकल आना, दिल्ली-एनसीआर की सड़कों पर नीलगायों का विचरण करना, देहरादून शहर में हाथी का बेरोकटोक घूमना दिखाता है कि पक्षियों और जंगली जानवरों ने अपने पर्यावास की सीमाएं बढ़ा ली हैं। लगता है ये जीव अपने मूल पर्यावास पर अपना आधिपत्य जमा रहे हैं। आज यमुना नदी का साफ पानी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होने के साथ कौतूहल का विषय भी बना हुआ है। नदी आज यह बताने की कोशिश कर रही है कि संयम और धीमी गति से चलने वाले मानव जीवन से दूसरे जीवों एवं प्राकृतिक संसाधनों को थोड़ी जगह और थोड़ा समय मिल जाता है, जिससे अंतत: मानव जीवन ही फायदे में रहता है।

लॉकडाउन गहरा संदेश दे रहा है और शिक्षा भी

कोरोना वायरस का प्रकोप एवं इससे बचने के लिए लगाया गया लॉकडाउन हम मनुष्यों को गहरा संदेश भी दे रहा है और शिक्षा भी। जीवन शैली में बदलाव, प्राकृतिक संसाधनों का सतत प्रयोग एवं वैज्ञानिक तरीकों से प्रकृति को फिर से स्थापित करना ही मानव जीवन को लंबे समय तक इस धरती पर जीवित रख सकता है।

पर्यावरण को निरंतर बायोडायवर्सिटी पार्क के रूप में संजीवनी देनी होगी

अधिकतर सूक्ष्म जीवाणु जंगली जीवों को ही पोषिता बनाते हैं, लेकिन प्राकृतिक पर्यावासों में लगातार आ रही गिरावट से नाना प्रकार के जंगली जीव विलुप्त होने के कगार पर हैं। नतीजन वातावरण में मौजूद वायरस अन्य पोषिता की तलाश करते हैं और मूल पोषिता के अभाव में मुनष्य उनका पोषिता बन जाता है। मैं खुद वृद्धावस्था की ओर अग्रसर हूं, लेकिन मैं नहीं चाहता कि हमारा पर्यावरण कभी वृद्ध हो। इसके लिए पर्यावरण को निरंतर बायोडायवर्सिटी पार्क के रूप में संजीवनी देनी होगी। यही मनुष्यों को धरती पर अजर-अमर रखने में सक्षम होगी। हम सचेत हो जाएं। अभी भी हमारे पास वक्त है।

( लेखक यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क, दिल्ली के वैज्ञानिक हैं )