हर्ष वी. पंत: भारत के अशांत एवं अस्थिर सामरिक परिदृश्य में कायम तल्खी में किसी प्रकार से कमी आने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। नई दिल्ली को पारंपरिक रूप से चीन और पाकिस्तान जैसे चिरपरिचित प्रतिद्वंद्वियों की चुनौती का सामना करना पड़ा है। समय के साथ यह चुनौती और बढ़ती ही गई है। नि:संदेह पाकिस्तान अभी भारी आर्थिक मुश्किलों से जूझ रहा है तो उससे हाल-फिलहाल उतना खतरा नहीं, लेकिन यह भी सही है कि वह कभी भी अपना असली चेहरा दिखा सकता है। हालांकि, इस बीच भी वह आतंकी हरकतों से बाज नहीं आ रहा।

दूसरी ओर, चीन के साथ चुनौती बहुत तात्कालिक महत्व की दिखती है, जो हिमालयी क्षेत्र में दुस्साहस दिखाने के साथ ही सीमा पर भारी सैन्य जमावड़े में जुटा है। हिंद महासागर क्षेत्र में चीनी नौसेना की बढ़ती मौजूदगी से नई दिल्ली के लिए मुश्किलें और बढ़ रही हैं। तीसरे विमानवाहक पोत की घोषणा के साथ ही चीनी क्षमताएं बहुत तेजी से विस्तार की ओर हैं। यही कारण है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में तमाम अन्य देश भी चीनी सैन्य शक्ति की काट के लिए अपने प्रयास तेज करने में लगे हैं। इनमें जापान सबसे महत्वपूर्ण देश के रूप में उभरा है।

जापान में किशिदा सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति यानी एनएसएस की घोषणा के साथ ही चीन की बढ़ती सैन्य चुनौती से मुकाबले के लिए रक्षा बजट बढ़ाने की प्रतिबद्धता व्यक्त की है। जापान ने लंबे समय से अपना रक्षा बजट अपनी जीडीपी के एक प्रतिशत के दायरे में रखा हुआ था, लेकिन चीन को ‘सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती’ करार देने वाली एनएसएस जैसी पहल के अंतर्गत उसने एक प्रतिशत की इस सीमा को बढ़ाकर दो प्रतिशत कर दिया। जापान की अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह भारी-भरकम राशि होगी, जिससे व्यापक सैन्य ढांचे के निर्माण की राह खुली है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में ही दक्षिण कोरिया भी अपनी जीडीपी के पांच प्रतिशत के बराबर रक्षा व्यय करने की तैयारी है। हालांकि, अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह वास्तविक अर्थों में जापान जितना न हो, लेकिन कोरियाई दृष्टिकोण से खासी ऊंची छलांग जरूर है। दक्षिण कोरिया अपने पड़ोसी उत्तर कोरिया से उपजे खतरे को देखते हुए अपनी सामरिक तैयारी में कोई कोर-कसर शेष नहीं रखना चाहता। चीन भी उसकी चिंता बढ़ा रहा है। दक्षिण कोरिया की जनता में चीन के प्रति असंतोष भी बढ़ने पर है। माना जा रहा है कि इस साल फिलीपींस भी रक्षा पर अपनी जीडीपी के आठ प्रतिशत के बराबर खर्च करने की तैयारी में है। रक्षा खर्च में यह निरंतर होती वृद्धि आक्रामक चीनी सैन्य शक्ति का प्रत्यक्ष परिणाम है, जो हिंद-प्रशांत क्षेत्र में जापान और अन्य देशों को भी सैन्य क्षमताएं बढ़ाने को बढ़ावा दे रही है। वहीं हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी नौसेना के उतरने से भारत के लिए भी एक नया खतरा उत्पन्न हो गया है, जो पहले से ही हिमालयी सीमा पर चीन के साथ सैन्य गतिरोध में उलझा हुआ है।

इस परिदृश्य में भारत के लिए आवश्यक होगा कि वह आगामी बजट में रक्षा आवंटन का बहुत तार्किक रूप से उपयोग करे। इसमें सरकार के साथ ही तीनों सैन्यों बलों को सुनिश्चित करना होगा कि वे रक्षा व्यय के मोर्चे पर सही तालमेल बिठाएं। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा चुनौतियों को देखते हुए सेनाओं को अपनी प्राथमिकताएं भलीभांति तय करनी होंगी कि उन्हें सबसे अधिक आवश्यकता किसकी है। यदि भारत को चीन की मौजूदा या आकार ले रही अत्याधुनिक सैन्य क्षमताओं की बराबरी करनी है तो रक्षा में पूंजीगत व्यय बढ़ाना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य हो चला है। समय के साथ रक्षा मंत्रालय का राजस्य व्यय यानी वेतन-भत्तों और पेंशन आदि पर खर्च काफी ज्यादा बढ़ गया है, जिसने आवश्यक आधुनिकीकरण की राह रोके रखी है। आधुनिकीकरण के लिए आवंटित बजट को पूरी तरह खर्च न कर पाने में सैन्य बलों की कमजोरी भी 21वीं सदी के युद्धों के लिए भारतीय सेना की तैयारियों को लेकर आश्वस्ति प्रदान नहीं करती।

सरकार को इस ओर भी उतना ही ध्यान देना होगा कि वह संयुक्त कमान की दिशा में सेनाओं को कैसे तैयार करे। यह कदम न केवल सैन्य अभियानों की सफलता के लिए, बल्कि तमाम तरह की लागत घटाने के लिहाज से भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सेनाओं को साथ मिलकर काम करने के लिए आगे आना होगा और बजटीय आवंटन भी इस प्रकार से हो जो भारतीय सेना की तीनों शाखाओं के बीच बेहतर समन्वय स्थापित करने में सहायक सिद्ध हो सके। इसके अतिरिक्त रक्षा बजट के पूंजीगत परिव्यय में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भरता’ के साथ ही सैन्य बलों की परिचालन तत्परता के बीच भी संतुलन बनाना आवश्यक होगा। रक्षा उत्पादन में अपेक्षित परिणामों की प्राप्ति में मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भरता जैसे अभियानों को कुछ समय लगेगा। जबकि संघर्ष का मोर्चा तो कभी भी खुल सकता है। ऐसे में सरकार को उन सैन्य क्षमताओं के विस्तार पर अवश्य ही ध्यान देना होगा, जो चीन और पाकिस्तान से मुकाबले के लिए आवश्यक हैं।

भारत के विरुद्ध जिस प्रकार की सैन्य व्यूह रचना हो रही है उसे देखते हुए रक्षा तैयारी में विलंब उचित नहीं। इसमें समय गंवाए बिना ही तैयारी तेज करनी होगी। इस समय भारत की सबसे बड़ी प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि वह चीन के बढ़ते दुस्साहस का करारा जवाब देने के लिए सेना के सभी स्तरों को सशक्त बनाने की दिशा में बजट का आवंटन करे। ऐसे में आगामी बजट सरकार के लिए कड़ी परीक्षा का पड़ाव सिद्ध होने जा रहा है कि उसमें पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी की समयानुकूल आवश्यकता पर ध्यान दिया जाता है या नहीं?

(लेखक नई दिल्ली स्थित आब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में अध्ययन कार्यक्रमों के वाइस प्रेसिडेंट हैं)