[नरपत दान चारण]। Tiddi Dal Attack in India पाकिस्तान के रास्ते देश में आए टिड्डी दलों ने लंबे समय से सरहदी राज्य राजस्थान, पंजाब और गुजरात से लेकर मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश तक कोहराम मचा रखा है। हजारों किसानों की खड़ी फसलें इन टिड्डियों के निशाने पर हैं। सीमा पार से आया ये टिड्डी दल जहां भी जाता है उस इलाके को वीरान बना देता है। लहलहाती फसलों को चट कर जाता है। सामने जो कुछ भी हरा-भरा दिखता है उसे पूरी तरह से चट कर जाता है या बर्बाद कर देता है। इसीलिए इनकी मौजूदगी से सरहदी गांवों में बसे किसान हलकान हैं, प्रशासन परेशान है। वैसे इनसे पार पाने की हर मुमकिन कोशिश भी की जा रही है, किंतु अब तक मुकम्मल तरीके से इन पर काबू नहीं पाया जा सका है।

टिड्डी दलों ने सबसे पहले आक्रमण राजस्थान के सरहदी जिलों बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर बीकानेर में किया, लेकिन अब जयपुर, झुंझनूं, सीकर, सिरोही तक फैलते हुए पूर्व के जिलों बूंदी, कोटा होते हुए मध्य प्रदेश में तबाही मचा रहे हैं। प्रशासन द्वारा ग्रामीणों की मदद से इन्हें नष्ट करने के लिए वाहनों से कीटनाशकों का छिड़काव किया गया है, लेकिन टिड्डी दल कई गांवों में फसलों को भारी नुकसान पहुंचा चुके हैं। टिड्डी दल से प्रभावित किसान अपने स्तर पर फसलों को बचाने के लिए बर्तनों को बजाकर या शोर करके परंपरागत तरीकों से भगाने का जतन कर रहे हैं।

कृषि अधिकारी व प्रशासनिक अधिकारियों ने भी खेतों की तरफ रुख किया है, लेकिन समस्या विकराल बनी हुई है। जितनी टिड्डियों को रोज मारा जा रहा है उससे कहीं ज्यादा पाकिस्तान से देश में दाखिल हो रही हैं। तेज हवा के चलते भी इन टिड्डी दलों पर काबू नहीं हो पा रहा है। स्प्रे के वक्त तेज हवा के चलते ज्यादातर टिड्डियां हवा में कई झुंड बनाकर उड़ जाती हैं जिसके चलते छिड़काव का असर उतना नहीं हो पा रहा जितना होना चाहिए। जब तक इन पर काबू पाया जाता है तब तक हजारों एकड़ की फसल लील जाते हैं। करोड़ों की तादाद में होने के कारण इनका सफाया करना इतना आसान नहीं है। कृषि विभाग के अनुसार करीब पौने चार लाख हेक्टेयर में टिड्डियां मारने के लिए दवा का छिड़काव किया जा चुका है। लेकिन समस्या यह है कि सीमा पार से नए झुंड लगातार आ रहे हैं।

टिड्डी का उद्गम लाल सागर के दोनों ओर स्थित अफ्रीका के पूर्वी देशों और सऊदी अरब से हुआ है। इसके बाद सऊदी अरब, यमन, ओमान और ईरान में टिड्डी के बड़े झुंड विकसित होते गए। खास तौर से ईरान से लगातार टिड्डियां पाकिस्तान के बलूचिस्तान होती हुई भारत की तरफ आईं। दरअसल बीते नवंबरदिसंबर में थार रेगिस्तान और पश्चिमी राजस्थान में पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से अच्छी बारिश हुई जिससे पश्चिम एशिया से यहां पहुंचीं टिड्डियों को प्रजनन करने की अनुकूल परिस्थितियां मिलीं। आमतौर पर टिड्डियां नवबंर में खत्म हो जाती हैं, लेकिन इस बार नवंबर में हुई बारिश से इन बिन बुलाए मेहमानों का दिल लग गया और 2020 का मई आ गया है, परंतु वे यहीं पर हैं।

टिड्डियों की आबादी बढ़ाने में बढ़ते तापमान का भी योगदान है, लेकिन आबोहवा में बदलाव के साथ ये भी बदल रही हैं। वर्ष 1993 में जब टिड्डियों का हमला हुआ था तो उस दौरान अक्टूबर की ठंड में ये खत्म हो गई थीं। लेकिन इस बार ठंड में इनका हमला और खतरनाक बन कर उभरा है। बड़ी बात यह है कि कृषि वैज्ञानिक अप्रैल-मई में फिर से टिड्डियों के हमले की आशंका जता चुके थे। भारत को सबसे बड़ा खतरा पाकिस्तान के रास्ते आ रहीं टिड्डियों से ही है। वहां अब भी ब्रीडिंग बहुतायत में है और टिड्डियों की रोकथाम के उसके उपाय गंभीर नहीं दिख रहे हैं। इससे चिंता बढ़ी है। आने वाले दिनों में नई पीढ़ी हमले को तैयार होगी। फिलहाल यह कई देशों की बड़ी समस्या बन गई है। इस आपदा ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय में व्यापक चिंता पैदा कर दी है। वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि टिड्डियों के खतरे का सामना करने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत किया जाना चाहिए।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के खाद्य व कृषि संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक टिड्डी संकट पश्चिम अफ्रीका से पूर्वी अफ्रीका और पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया तक 20 से अधिक देशों में फैल चुका है। इसका कुल प्रभावित क्षेत्र 1.6 करोड़ वर्ग किमी से भी अधिक है। रेगिस्तानी टिड्डियों ने अपने सीमा पार प्रवास के दौरान लाखों हेक्टेयर वनस्पतियों को खा लिया है जो प्रभावित क्षेत्रों में पहले से ही असुरक्षित खाद्य सुरक्षा स्थितियों को बढ़ा रही हैं। विश्लेषकों का कहना है कि अगर नियंत्रण के लिए कोई उपाय नहीं किए गए तो आगामी माह तक रेगिस्तानी टिड्डियों की संख्या 500 गुना तक भी बढ़ सकती है। साथ ही इसके अफ्रीका और एशिया के 30 देशों में फैलने की आशंका जताई गई है।

जाहिर है कि यह विपत्ति केवल प्रभावित क्षेत्रों की समस्या नहीं, बल्कि एक वैश्विक समस्या है। इस विपत्ति की गंभीरता को समझते हुए इस संबंध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मजबूत करना भी महत्वपूर्ण है। भारत को वैश्विक सहयोग के साथ टिड्डी की पैदाइश वाले देशों में ही इसके खात्मे का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि एक बार देश में घुसने के बाद इस पर नियंत्रण पाना आसान नहीं होता।

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