International Women's Day 2020: इस वर्ष महिला दिवस की थीम ‘ईच फॉर ईक्वल’
International Womens Day 2020 पच्चीस वर्षों के दौरान दुनिया भर में आधी आबादी के लिए हालात कितने बदले हैं और अभी किन और बदलावों की दरकार है।
अलका आर्य। International Women's Day 2020: इस वर्ष महिला दिवस का थीम महिलाओं की कार्यक्षमता को लेकर बने पूर्वाग्रहों को तोड़ने के लिए और सकारात्मक धारणाओं को और अधिक व्यापक बनाने के संदर्भ में भी है। लेकिन हकीकत यह है कि विश्व का कोई भी मुल्क आज लैंगिक बराबरी हासिल करने का दावा नहीं कर सकता। इन सबके बीच वैश्विक सहमति यह उभर रही है कि लैंगिक बराबरी की दिशा में कुछ प्रगति के बावजूद अधिकांश महिलाओं व लड़कियों के लिए वास्तविक बदलाव काफी धीमा है। दुनिया के अलग-अलग देश इस बार अंतरराष्ट्रीय दिवस को खास तरह से मना रहे हैं।
भारत में भी अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस इस बार विशेष योजना के तहत मनाया जा रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के विजन के मुताबिक ही इसे खास प्रारूप दिया गया है। इस बार देश में यह दिवस एक मार्च से 10 मार्च तक मनाया जा रहा है। देश में पहली बार इतने व्यापक स्तर पर मनाने के लिए दस दिन तक विभिन्न मंत्रालयों में सेमिनार, कार्यशाला, सम्मेलन आदि के आयोजन के लिए अभियान शुरू किया गया है। इस अभियान का फोकस महिलाओं से जुड़े थीम- शिक्षा, स्वास्थ्य व पोषण, महिला सशक्तीकरण, कौशल और उद्यमिता और खेलों में भागीदारी, विशेष परिस्थितियां (उत्तरपूर्वी क्षेत्र, आदिवासी) ग्रामीण महिला और कृषि, व शहरी महिला।
महिला सशक्तीकरण थीम के तहत सशस्त्र पुलिस बल, खनन कार्यों समेत इसरो आदि में महिलाएं और सुरक्षा जैसे विषयों पर विस्तार से चर्चा हो रही है। ग्रामीण महिलाओं को भी विशेष तौर पर रेखांकित किया जा रहा है। इस अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अभियान में महिलाओं के द्वारा की गई खोज, जैविक खाद्य प्रसंस्करण पर फोकस है। इसके अलावा महिला स्वास्थ्य की दिशा में हुई प्रगति के संदर्भ में भी आम जनता तक जानकारी पहुंचाना है।
महिला स्वास्थ्य : देश में महिलाओं के स्वास्थ्य की बात करें तो सरकार की प्राथमिकता इस समय मातृत्व मृत्यु दर को कम करना है। दरअसल भारत ने संयुक्त राष्ट्र के स्थाई विकास लक्ष्यों में से एक मातृत्व मृत्यु दर को वर्ष 2030 तक प्रति लाख जीवित पर 70 तक लाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है। इस दिशा में देश निरंतर प्रयासरत भी है। देश में महिलाओं का स्वास्थ्य हमेशा से एक गंभीर मुद्दा बना हुआ है।
देश में आजादी के बाद पहली बार महिलाओं की स्थिति जानने के लिए 1974 में एक समिति का गठन किया गया। इस संबंधित समिति की ‘टूवड्र्स इक्वलिटी’ शीर्षक रिपोर्ट-1974 में महिलाओं के स्वास्थ्य पर की गई टिप्पणी का जिक्र यहां प्रसंगवश किया जा रहा हैजनसंख्या व स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच संबंधी सभी आंकड़ों से यह जाहिर होता है कि महिलाओं के प्रति बहुत लापरवाही बरती जाती है। उन्हें एक खर्च की जाने वाली वस्तु की तरह देखा जाता है। कई दशकों से महिलाओं के गिरते अनुपात की यही तर्कपूर्ण व्याख्या की जा सकती है। मातृत्व और बच्चे के स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लापरवाही।
इस संदर्भ में वर्ष 1974 से 2019-20 यानी लगभग 45 वर्षों का सफर यह बताता है कि देश की सरकारें महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर नतीजों पर आधारित कार्यक्रमों पर फोकस करने लगी हैं। भारत में मातृत्व मृत्यु दर (एमएमआर) वर्ष 2014-16 में प्रति लाख 130 से घटकर 2015-17 में 122 हो गया है। नेशनल हेल्थ पॉलिसी 2017 के मुताबिक वर्ष 2020 तक एमएमआर को प्रति लाख 100 करना है और स्थायी विकास लक्ष्य प्रति लाख 70 को 2030 तक हासिल करना है।
तय समय सीमा में लक्ष्य हासिल कर सकता है भारत : कई लोग सवाल करते हैं कि क्या भारत जैसा विशाल व विकासशील देश तय समय सीमा तक इस लक्ष्य को हासिल कर लेगा। भारत सरकार इसके लिए प्रतिबद्ध है और इस प्रतिबद्धता के पीछे उसकी नीतियां व कार्यक्रम हैं। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा शुरू की गई योजनाएं मसलन जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम, जननी सुरक्षा योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान, सुरक्षित मातृत्व आश्वासन, लक्ष्य कार्यक्रम, आयुष्मान भारत, हेल्थ एंड वेलनैस सेंटर्स आदि हैं।
वर्ष 2015- 17 के सरकारी सर्वे के मुताबिक देश में एमएमआर की राष्ट्रीय औसत दर 122 है, लेकिन असम में यही दर 229 है तो उत्तर प्रदेश में 216 है, जो चिंतनीय है। मध्य प्रदेश में 188 है तो राजस्थान में 186 है। केरल में यह 42 है। वर्ष 2007-08 में सुरक्षित प्रसव दर 52.7 प्रतिशत था जो बढ़कर 2015-16 (राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4) में 81.4 प्रतिशत हो गई। संस्थागत डिलीवरी भी इसी अवधि में 47 प्रतिशत से बढ़कर 78.9 प्रतिशत हो गई। संस्थागत डिलीवरी की संख्या वृद्धि में जननी सुरक्षा योजना की बहुत बड़ी भूमिका है। स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने जून 2016 में प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान शुरू किया। इसके अंतर्गत हर महीने की नौ तारीख को सरकारी अस्पतालों में गर्भवती महिलाओं की मुफ्त जांच होती है। इस अभियान के अंतर्गत देश भर में 6,219 निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाता भी इस दिन सरकारी अस्पतालों में अपनी स्वैच्छिक सेवाएं दे रहे हैं।
स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय ने दिसंबर 2017 में लक्ष्य कार्यक्रम शुरू किया। इसके पीछे मंशा लेबर रूम व मेटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता को सुधारना है। अक्तूबर 2019 में ‘सुमन’ नामक जो पहल लांच की गई थी, उसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि सेवाएं लाभार्थी महिला तक सम्मानजनक तरीके से पहुंचे और स्वास्थ्य देखभाल वाली ये सेवाएं गुणवत्तापूर्ण हों। देश में सरकार इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस अभियान के जरिये ‘ईच फॉर ईक्वल’ यानी सब को बराबरी वाला संदेश देने में कोई कसर नहीं छोड़ना नहीं चाहती है।
ईच फॉर ईक्वल: इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘ईच फॉर ईक्वल’ है। यह थीम इसलिए भी खास है, क्योंकि इस वर्ष बीजिंग में आयोजित चतुर्थ विश्व महिला सम्मेलन (1995) की 25वीं वर्षगांठ है। उल्लेखनीय है कि 1995 में बीजिंग में महिलाओं पर संपन्न चतुर्थ विश्व सम्मेलन में बीजिंग घोषणापत्र को अपनाया गया था। ऐसे में इसकी समीक्षा करना भी जरूरी है कि इन बीते पच्चीस वर्षों के दौरान दुनिया भर में आधी आबादी के लिए हालात कितने बदले हैं और अभी किन और बदलावों की दरकार है।
स्वतंत्र टिप्पणीकार