मुकेश चौरसिया। अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव की घड़ी आ गई है। तीन नवंबर के मतदान के बाद यह पता चल जाएगा कि दुनिया के इस सबसे ताकतवर देश में किस पार्टी की सरकार आएगी। डोनाल्ड ट्रंप दूसरे कार्यकाल के लिए ह्वाइट हाउस पहुंचेंगे या डेमोक्रेट्रिक उम्मीदवार जो बिडेन राष्ट्रपति चुने जाएंगे। इनमें से भले ही कोई राष्ट्रपति चुना जाए, लेकिन इस बार का अमेरिकी चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक है। खासकर कोरोना महामारी के दौर में चुनाव का होना। चीन, कोरोना, नस्ली भेदभाव और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों का चुनाव में हावी होना।

इनके अलावा, अमेरिका में पहली बार ऐसा होगा जो न सिर्फ ऐतिहासिक है, बल्कि भारत के लिए भी गर्व की बात है। दरअसल अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोगों की इस चुनाव में अहमियत बढ़ी है। इसी का नतीजा है कि अमेरिका में पहली बार किसी भारतवंशी को उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया गया है। साथ ही, राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार भारतीय मूल के वोटरों को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। ये सब भारत के हित के लिहाज से काफी अहम माने जा रहे हैं।

चुनाव में प्रमुख मुद्दा बने चीन को लेकर राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार ट्रंप और बिडेन सख्त रवैया दिखा रहे हैं। ट्रंप लगातार कह रहे हैं कि कोरोना महामारी फैलने के लिए बीजिंग जिम्मेदार है और इसके लिए उसे बख्शा नहीं जाएगा। वह चुनावी रैलियों में कई बार कोरोना वायरस को चीनी वायरस तक कह चुके हैं। उन्होंने यह भी दावा किया है कि इस वायरस की उत्पत्ति चीनी लैब में हुई है। यहीं से यह खतरनाक वायरस पूरी दुनिया में फैला। वह दक्षिण चीन सागर में चीन की दादागीरी वाले रवैये पर भी सख्त संदेश दे चुके हैं। उनके प्रशासन ने कुछ माह पहले ही दक्षिण चीन सागर क्षेत्र में उसके सभी दावों को अवैध करार दिया था। ट्रंप सरकार भारतीय सीमा पर चीन के आक्रामक रवैये से भी खफा है। उसने साफ तौर पर कह दिया है कि वह भारत के साथ है। हाल में दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों की टू प्लस टू वार्ता के बाद जारी किए गए संयुक्त बयान में कहा गया कि चीन की आक्रामक नीतियों से मिलकर लड़ा जाएगा।

हालांकि कुछ मसलों पर ट्रंप का रुख भारतीयों के हित के लिहाज से अच्छा नहीं माना जा रहा है। भारतीयों में लोकप्रिय एच1-बी वीजा पर उनकी सख्ती है। उन्होंने अमेरिकी कामगारों के हितों की रक्षा का हवाला देकर इस वीजा के नियमों को कड़ा कर दिया है। वैसे बीते दिनों वायु प्रदूषण को लेकर भी ट्रंप भारत को घेर चुके हैं। अंतिम प्रेसिडेंशियल डिबेट में तो उन्होंने यहां तक कह दिया था कि भारत, चीन और रूस की हवा बेहद गंदी है, और इन देशों को इसकी चिंता नहीं है। दूसरी ओर बिडेन ने वादा किया है कि वह एच1-बी वीजा के सख्त नियमों को आसान करेंगे और इस पर लगी रोक को भी खत्म करेंगे।

भारत के साथ अमेरिका की रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करेंगे। हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत, अमेरिका का अहम साझेदार है। उन्होंने भारतीय मूल के वोटरों को साधने के लिए कमला हैरिस को डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार भी बनाया है। अमेरिकी इतिहास में यह उपलब्धि पाने वाली वह पहली भारतवंशी हैं। अगर वह चुनाव जीतती हैं तो वहां की पहली महिला उपराष्ट्रपति बनेंगी। इससे न केवल अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में भारत की साख मजबूत हुई है।

कोरोना का अहम मुद्दा : दुनिया में सबसे पुरानी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले इस देश में कोरोना वायरस भी बड़ा मुद्दा बना है। अमेरिका कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित है। सबसे ज्यादा संक्रमण का फैलाव और लोगों की मौतें भी इसी देश में हुई हैं। बिडेन इसके लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं और यह आरोप लगा रहे हैं कि उनकी गलत नीतियों के चलते अमेरिका में महामारी बढ़ी है। इतनी बड़ी संख्या में अमेरिकियों की मौत हो रही है। वह महामारी के खिलाफ जंग से मुंह मोड़ चुके हैं। बिडेन ने वादा किया है कि अगर उन्हें राष्ट्रपति चुना गया तो हर अमेरिकी को मुफ्त में कोरोना वैक्सीन लगाई जाएगी। ट्रंप बड़ी-बड़ी चुनावी रैलियों के जरिये केवल कोरोना वायरस फैला रहे हैं। जबकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप कह रहे हैं कि उनके प्रशासन ने सही तरह से काम किया है।

अमेरिका में जल्द ही इसकी वैक्सीन आने वाली है। इसका वितरण महज कुछ हफ्तों में शुरू कर दिया जाएगा।

अमेरिकी चुनाव में नस्ली भेदभाव और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दे भी छाए हैं। भ्रष्टाचार और बेरोजगारी भी अमेरिकी मतदाताओं के लिए अहम माने जा रहे हैं। महामारी से निपटने के लिए अमेरिका में लगाए गए लॉकडाउन के दौरान बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए। करोड़ों अमेरिकियों ने बेरोजगारी लाभ के लिए आवेदन किया। यह माना जा रहा है कि चुनाव में ये मसले निर्णायक भूमिका में होंगे। वैसे भी अब तक के कई सर्वे में ट्रंप अपने प्रतिद्वंद्वी बिडेन से पिछड़ते दिख रहे हैं। अच्छी बात यह है कि वह इस अंतर को तेजी से कम भी कर रहे हैं। वर्ष 2016 के राष्ट्रपति चुनाव में भी वह डेमोक्रेटिक प्रत्याशी हिलेरी क्लिंटन से चुनाव पूर्व के सर्वे में पिछड़ते रहे, लेकिन अंतिम दौर में वापसी कर विजेता बने थे। इस बार भी कुछ ऐसा ही देखने को मिल रहा है, लेकिन यह देखना बाकी है कि 2016 की तरह इस बार भी बाजी पलटती है या नहीं।

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