विजय क्रांति : भारत सरकार के इस फैसले ने कि अगले साल भारत में होने वाले जी-20 शिखर सम्मेलन का आयोजन जम्मू-कश्मीर में भी किया जाएगा, चीन और पाकिस्तान की सरकारों को परेशान कर दिया है। दोनों सरकारों के विदेश मंत्रालयों ने भारत सरकार के इस फैसले का इस आधार पर कड़ा विरोध किया है कि जम्मू-कश्मीर एक विवादित क्षेत्र है, इसलिए भारत को वहां इस तरह का अंतरराष्ट्रीय आयोजन करने का अधिकार नहीं है। भारत विरोध की अपनी इस बौखलाहट में चीनी प्रवक्ता यह भी मान बैठे कि कश्मीर के एक हिस्से पर पाकिस्तान ने कब्जा किया हुआ है। कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान और चीन की भारत विरोधी प्रतिक्रियाएं नई नहीं हैं, लेकिन इस बार नया यह है कि भारत सरकार के इस फैसले और चीन-पाकिस्तान के साझा विरोध ने जम्मू कश्मीर विषय को सात दशक में पहली बार एक ऐसे संदर्भ में खड़ा कर दिया है, जिसमें कूटनीतिक पहल भारत के हाथ में दिखाई दे रही। भारत सरकार रक्षात्मक होने के बजाय आक्रामक मुद्रा में है। इसका पता प्रधानमंत्री मोदी की ओर से दलाई लामा को जन्मतिथि पर बधाई संदेश देने से भी चलता है।

पाकिस्तान और चीन की असली समस्या यह है कि भारत के खिलाफ उनके सारे प्रयासों के बावजूद अंतरराष्ट्रीय मंचों और देशों की बिरादरी में भारत का रुतबा लगातार बढ़ रहा है। जी-20 दुनिया के सबसे अमीर देशों और आर्थिक क्षेत्र में तेजी से उभरते हुए देशों का संगठन है, जिनका कुल सकल घरेलू उत्पाद दुनिया भर के उत्पादन का 90 प्रतिशत है और जो दुनिया के कुल व्यापार के 75 से 80 प्रतिशत का नियंत्रण करते हैं। इसलिए इतने बड़े मंच के अध्यक्ष पद पर भारत का आसीन होना इन दोनों देशों को रास नहीं आ रहा है। मोदी सरकार द्वारा जी-20 के शिखर सम्मेलन का आयोजन जम्मू-कश्मीर में करने का फैसला पिछले 70 साल से चली आ रही उस नीति से एकदम हटकर है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर से जुड़ा कोई छोटा फैसला लेने से पहले यह पता लगाया जाता था कि इस पर पाकिस्तान या इस्लामी देशों समेत अन्य दूसरे देश क्या कहेंगे, लेकिन इस बार भारत सरकार की इस घोषणा ने पूरी दुनिया को एक साथ कई संदेश दे दिए हैं।

पहला संदेश यह है कि जम्मू-कश्मीर पूरी तरह भारत का अभिन्न अंग और अंदरूनी मामला है और इसके बारे में वह दूसरे देशों की राय और आपत्तियों की परवाह नहीं करता। इसके साथ ही यह फैसला दुनिया को यह संदेश भी देता है कि पिछले सात दशक से जिस आतंकवाद ने पाकिस्तान की शह और समर्थन से कश्मीर को अपना घर बना रखा था, वह अब समाप्त हो रहा है और जम्मू-कश्मीर भारत के दूसरे राज्यों की तरह शांतिपूर्ण विकास की मुख्यधारा में शामिल हो चुका है। इस फैसले में भारत ने दुनिया भर की कंपनियों और निवेशकों को सीधा संदेश दे दिया है कि जिस तरह वे भारत के दूसरे राज्यों में निवेश करते आ रहे हैं और वहां व्यापार चला रहे हैं, उसी तरह अब जम्मू-कश्मीर के दरवाजे भी उनके लिए खुले हैं। सबसे बड़ा संदेश यह है कि जम्मू-कश्मीर के मामले में पाकिस्तान और चीन की खुराफात के दिन अब लद चुके हैं।

पाकिस्तान की तिलमिलाहट इसलिए भी समझ आती है कि अगस्त 2019 में मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर का दोहरा संविधान खत्म करने और उसे एक केंद्रशासित राज्य बनाने का जो क्रांतिकारी फैसला किया, उसके खिलाफ पाकिस्तान ने दुनिया की हर सरकार के दरवाजे पर जाकर भारत विरोधी अभियान चलाया, लेकिन बाकी दुनिया तो क्या खुद इस्लामी देशों ने भी इसे भारत का आंतरिक मामला कहकर पाकिस्तान को बैरंग लौटा दिया। अब तो लगभग दिवालिया हो चुके पाकिस्तानी नेता पुराना उधार चुकाने और पेट्रोलियम पदार्थ खरीदने के लिए भी कटोरा लिए घूम रहे हैं। ऐसे में वह अपने भारत-विरोधी अभियान में कितना सफल हो पाएगा, इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। वैसे भी जम्मू-कश्मीर में उसके भेजे आतंकियों के सफाए और वहां की जनता के बीच आधार खो चुके उसके पालतू कश्मीरी नेताओं एवं हुर्रियत कांफ्रेंस जैसे अलगाववादी संगठनों का प्रभाव खत्म होने के बाद पाकिस्तान के पास कश्मीर में कोई लीवर नहीं बचा है।

जहां तक चीन की बात है, पाकिस्तानी आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र में बार-बार अपने वीटो से बचाकर कश्मीर के सवाल पर चीन अपनी साख पहले ही बहुत खराब कर चुका है। भारत के नए आक्रामक रवैये ने चीन और पाकिस्तान, दोनों के लिए कब्जाए हुए पीओके के रास्ते होकर बनाए गए सीपैक-इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए भी नई चिंताएं पैदा कर दी हैं। चीन को समझ आ चुका है कि पाकिस्तान में 50 अरब डालर से भी ज्यादा की लागत से बनाए गए इस पूरे तामझाम को नई दिल्ली की मिसाइलें एक घंटे के भीतर कचरे में बदल सकती हैं। इसी तरह लद्दाख में अक्साई चिन और पाकिस्तान से भेंट में मिले शक्सगम पर भी भारत की दब्बू नीति अब आक्रामक रूप ले चुकी है। ऐसे में कश्मीर के सवाल पर पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने के अलावा चीन के पास अब और कोई विकल्प भी नहीं बचा। बीजिंग में एक सवाल पर चीनी प्रवक्ता ने धमकी दी कि जम्मू-कश्मीर में जी-20 का शिखर सम्मेलन आयोजित करने के भारतीय फैसले पर चीन इस सम्मेलन का बहिष्कार करने पर भी विचार कर सकता है, लेकिन आखिर दुनिया भर के देशों और खासकर जी-20 के सदस्य देशों का पहले से विरोध झेल रही चीन सरकार अपने इस फैसले से क्या हासिल कर लेगी?

यह तय है कि आने वाले दिनों में चीन और पाकिस्तान कश्मीर पर अपना बेसुरा राग तेज करके भारतीय फैसले को पलटवाने की कोशिश करेंगे, लेकिन प्रमुख देशों की बिरादरी में मोदी सरकार के रुतबे को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि वे इसमें सफल हो पाएंगे। यह तय है कि अगर भारत सरकार जी-20 के शिखर सम्मेलन के कुछ आयोजन जम्मू या श्रीनगर में कराने में सफल रहती है तो जम्मू-कश्मीर का विवाद एकदम उलटा रूप ले लेगा। तब पकिस्तान का असली एजेंडा कश्मीर में आक्रामकता नहीं, बल्कि पीओके को बचाना हो जाएगा। उस हालत में चीन के लिए भी कश्मीर के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ खड़ा रह पाना न तो आसान होगा और न लाभकारी।

(लेखक सेंटर फार हिमालयन एशिया स्टडीज एंड एंगेजमेंट के चेयरमैन एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)