[तरुण विजय]। हिंदू धर्मप्राण लोग सदियों से अपनी जान जोखिम में डालकर तीर्थ यात्राएं करते आ रहे हैं। जिन तीर्थ यात्राओं पर जाने से पहले अनेक यात्री अपना तर्पण भी कर जाते थे और गांव के लोग उन्हें श्रद्घा से नमन कर विदा देते थे उनमें कैलास मानसरोवर यात्रा, बलूचिस्तान में माता हिंगलाज यात्रा प्रमुख है। आधुनिक समय की तीर्थयात्रा अमरनाथ को भी इसी श्रेणी में मान सकते हैं। अमरनाथ यात्रा जिहादी आतंकवाद की धमकियों, अन्य अवरोधों और मौसम बिगड़ने से अचानक आने वाली प्राकृतिक आपदा के बावजूद बेरोकटोक चलती रही है। 2000, 2001, 2002, 2017 में हिजबुल मुजाहिदीन, लश्कर ए तैयबा आदि आतंकी संगठनों के कायर आतंकवादियों ने अमरनाथ यात्रा पर हमले किए और कई तीर्थयात्रियों को मार डाला। फिर भी न यात्री कम हुए, न यात्रा थमी। 12756 फीट की हड्डियां कंपा देने वाली बर्फानी कठिनाइयों को पार कर छह लाख से ज्यादा हिंदू तीर्थयात्री हर साल अमरनाथ जी जाते हैं-सरकार सुविधाएं दें तो भी ठीक, न दे तो भी अपनी व्यवस्था स्वयंकर भोले बाबा का नाम जपते हुए शांति पूर्वक यात्रा कर आते हैं। यात्रा में जान जाए तो जाए, लेकिन शिव दर्शन की तड़प उन्हें आगे बढ़ाती रहती है।

बलूचिस्तान में माता हिंगलाज 52 शक्ति पीठों में से एक है। रेगिस्तान के अपार विस्तार से गुजरते हुए हिंगोल नदी के किनारे माता का शक्तिपीठ पुराणों में भी सर्वाधिक कठिन यात्रा का धाम माना जाता था। यात्री प्यास, थकान और गर्मी से प्राण त्याग देते थे। अब सड़क बनने से यात्रा कुछ सुगम तो हुई है, लेकिन जिहादी आतंक का खतरा बना रहता है। कैलास मानसरोवर इन सभी यात्राओं में विशिष्ट, अतुलनीय, अनुपमेय यात्रा है। यह इतनी कठिन है कि इसे दूसरा जन्म लेने के समान माना गया है। इसी कारण मराठी भाषा में तो स्वर्गीय का समानार्थी शब्द ही ‘कैलास वासी’ होना बन गया। महाभारत में भी कैलास मानसरोवर का उल्लेख है। भारतीय मानस, साहित्य, संस्कृति-मूलक ग्रंथों में मानसरोवर अलंकारों, उपमाओं और श्रद्घा के शिखर पर विद्यमान है। यहां शिव परिवार का साक्षात निवास है। मान्यता है कि देवगण मानसरोवर में स्नान के लिए आते हैं। यह सनातन वैदिक परंपरा, जैन और बौद्घ सभी के लिए समान श्रद्घा का स्थान है। प्रथम जैन तीर्थकर ऋषभदेव की निर्वाणस्थली यहीं है। बौद्घ यहां निर्वाण का मार्ग मानते हैं। तिब्बती बौद्घ 14 से 18 हजार फीट की ऊंचाई के इस क्षेत्र की दंडवत परिक्रमा करते हैं। इसमें तीन से पांच सप्ताह लगते हैं। प्रसिद्घ तांत्रिक योगी मिला रेपा की गुफा भी कैलास पर्वत के मार्ग में है। संसार के इतिहास में संभवत: कैलास पर्वत ही ऐसा है जहां धार्मिक आस्था के सम्मानार्थ किसी को पर्वतारोहण की अनुमति कभी भी नहीं दी गई।

यह क्षेत्र संसार की महान नदियों सतलज, झेलम, सिंधु, मीकांग और ब्रह्मपुत्र का उद्गम स्थान है। स्वामी प्रणवानंद, जो वरिष्ठ भूगर्भ वैज्ञानिक भी थे, ने 21 बार कैलास यात्रा की थी। उन्होंने यह भी सिद्घ किया था कि गंगा का मूल स्रोत भी कैलास-मानसरोवर में है और मानसरोवर तल से एक अंतर्धारा गोमुख तक पहुंचती है। पहले भारत से कैलास-मानसरोवर यात्रा के लिए दस से अधिक मार्ग थे। मुंश्यारी-मिलम ग्लेशियर (उत्तराखंड) से गांधी जी की अस्थियां मानसरोवर में विसर्जन के लिए भेजी गई थीं। माणा (बद्रीनाथ) होते हुए पांडवों के स्वर्गारोहण के मार्ग माने जाने वाले वसुधारा से भी मानसरोवर का मार्ग था। हिमाचल में शिपकी ला और लद्दाख में देमछोक से भी यात्री जाते थे। अब भारत और चीन सरकार केवल उत्तराखंड के धारचूला-लिपू-लेख

मार्ग और नाथू ला (सिक्किम) मार्ग से संयुक्त व्यवस्था के अंतर्गत यात्रा का आयोजन करते हैं। पहला मार्ग 1962 के चीनी आक्रमण के बाद बंद था, जो अटल बिहारी वाजपेयी और सुब्रमण्यम स्वामी के प्रयास से 1981 में खुला। नाथू ला का मार्ग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग के सहयोग से 2015 में खुला, लेकिन बहुत बड़ी संख्या में यात्री नेपाल होते हुए भी कैलास मान सरोवर जाते हैं। वहां से निजी पर्यटन एजेंसियां चीनी वीजा एवं तिब्बत प्रवास की व्यवस्था कराती हैं।

हाल में भारी वर्षा के कारण करीब 1500 यात्रियों को नेपाल-भारत के संयुक्त अभियान में सुरक्षित निकालना पड़ा। दो यात्रियों की मृत्यु भी हुई। ऐसी स्थिति में आवश्यक है कि चीन की भांति नेपाल से भी भारत सरकार कैलास-यात्री व्यवस्था को संस्थागत रूप दे। जब दुबई, इराक जाने वाले भारतीयों को विदेश मंत्रालय समीक्षा, निरीक्षण आदि का कवच देता है तो नेपाल के साथ भी पर्यटन एजेंसियों का मानक निर्धारित करने और यात्रियों के हितार्थ संयुक्त व्यवस्था बनाने में समस्या नहीं आनी चाहिए। ध्यान रहे प्राण हथेली पर रखकर शिव दर्शन को जाने वाले तीर्थ यात्री भारत की सांस्कृतिक एकता के महान संरक्षक भी हैं। उनकी सुरक्षा और सुविधा के लिए यथासंभव उपयुक्त किए ही जाने चाहिए।