नई दिल्ली [डॉ पवन दुग्गल]। एक देश के रूप में भारत साइबर स्पेस में चुनौतियों का सामना कर रहा है।

इनमें पोर्नोग्राफी पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर यह सुनिश्चित करना कि अश्लीलता का देश के युवाओं के दिमाग पर किसी भी तरह का नकारात्मक असर न पड़े, बहुत मुश्किल डगर लग रही है। भारत में संसद ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है, जो प्रभावशाली ढंग से ऑनलाइन अश्लीलता देखने पर रोक लगा सके। हालांकि जब

कोई व्यक्ति अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सूचना को प्रकाशित अथवा प्रसारित करता है तो जरूर कानूनी घेरे में आता है। सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा 67 के तहत ऐसा करना अपराध है।

प्रौद्योगिकी कानून की धारा 67 में अश्लीलता शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है। हालांकि भाषा की गिरावट जैसे इलेक्ट्रॉनिक कंटेंट में जो कि कामुक हो अथवा कामुकता को बढ़ाने वाली हो या मानसिकता को बिगाड़ने वाली हो चाहे फिर वो पढ़ने, देखने या सुनने वाली हो, का यह उल्लेख करता है। यह इतना विस्तृत है कि ऑनलाइन अश्लील सामग्री के सभी तत्वों को शामिल कर सकता है फिर चाहे वे दृश्य, श्रव्य, तस्वीर या लिखित रूप में हों। 2008 में सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 में दो विशिष्ट अपराधों को जोड़ा गया है। धारा 67ए के मुताबिक अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सामग्री को प्रकाशित करना अथवा प्रसारित करना अपराध है। इसे पांच साल की कैद अथवा दस लाख रुपए के जुर्माने के साथ और ज्यादा गंभीर अपराध बनाया गया है। साथ ही पहली बार 2008 में चाइल्ड पोर्नोग्राफी के प्रावधानों को भी जोड़ा गया। इसके तहत चाइल्ड पोर्नोग्राफी का न केवल प्रकाशन और प्रसारित करना बल्कि इसे ब्राउज करना भी धारा 67बी के तहत जघन्य अपराध है। इसके तहत दस साल की सजा और दस लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है।

इन प्रावधानों के कानून में होने के बावजूद इनका विस्तृत रूप से उपयोग नहीं किया जा सका है। इसके परिणामस्वरूप, इन मामलों में सजा कम ही मिल सकी है। इसके अतिरिक्त आरोपितों की प्रवृत्ति और उनके जमानत पर बाहर आने के बाद वह संबंधित इलेक्ट्रॉनिक सबूतों को नष्ट कर सकते हैं। इसमें साइबर अपराध के लिए सजा का अकाल और योगदान देता है। अब वह समय आ चुका है जब देश को इंटरनेट और मीडिया पर मौजूद अश्लील सामग्री के खिलाफ कड़ा और इसे हतोत्साहित करने वाला संदेश देना चाहिए।

कानूनी प्रावधानों को स्पष्ट रूप से लागू करने की आवश्यकता है और उससे भी ज्यादा आवश्यकता अश्लील सामग्री के प्रकाशन, प्रसारण में लगे ऐसे लोगों को रोकने के लिए कानून में संशोधन की है। सोशल मीडिया पर मौजूद अश्लील सामग्री के बड़े उपयोग और प्रसार पर लगाम कसने के लिए सोशल मीडिया की प्रभावी निगरानी जरूरी है। इस मामले में सबसे ज्यादा जरूरी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म उपलब्ध कराने वालों को रोकना और भी महत्वपूर्ण है। सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 की धारा 2 (1)(डब्ल्यू) के अंतर्गत सभी सोशल मीडिया सेवा प्रदाता और मध्यस्थ इसके अंतर्गत आते हैं। इन्हें दायित्वों के उचित निर्वहन के लिए धारा 79(2) के अंतर्गत बाध्य किया जासकता है। यह अनिवार्य है कि इन मध्यस्थों और सेवा प्रदाताओं को अपने उद्यम के मानकों पर पोर्नोग्राफी और अश्लीलता संबंधी सामग्री को रोकने के संबंध में उपयुक्त और प्रभावी होना चाहिए।

यह सेवा प्रदाता की जिम्मेदारी है कि वो यह सुनिश्चित करे कि अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सामग्री उसके प्लेटफॉर्म से प्रसारित नहीं होगी। अगर उन्हें सूचित किया जाता है तो उन्हें कानून के अनुसार तुरंत ऐसी चीजों को हटाना या नष्ट कर देना चाहिए। कानून में बदलाव के अतिरिक्त यह मौजूदा कानूनी प्रावधानों को प्रभावी ढंग से लागू किया जाना भी अहम है। अश्लील इलेक्ट्रॉनिक सामग्री के बीमार करने वाले खतरों के प्रति लोगों को जागरूक करने पर निर्भर करता है। यह काफी महत्वपूर्ण है कि हम इस मुद्दे को स्कूलों में पहली कक्षा से ही उठाएं। यह हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है कि हम इंटरनेट को सुरक्षित और स्वच्छ बनाने की शुरुआत करें।