मनोज झा। आजकल में दिल्ली पहुंच रहा मानसून छत्तीसगढ़ में दस दिन पहले ही मानो उम्मीदों का आसमान सजा चुका है। यह उम्मीद खेत-खलिहान से लेकर सियासत और समाज तक में देखी या महसूस की जा सकती है। पिछले तीन माह से व्याप्त कोरोना के सन्नाटे और आशंका के बादलों को मानसूनी मेघों ने मानो ढांप दिया है। अच्छी बारिश के चलते धान के बंपर पैदावार की उम्मीद है। दफ्तर-दुकानों में रौनक लौट रही है और आम जनजीवन कोरोना के साथ जीने का अपना अभ्यास लगातार मजबूत कर रहा है। उधर सियासत में भी हलचलें तेज हैं। मरवाही विधानसभा सीट पर चुनावी दुंदुभि बजने जा रही है।

दिवंगत अजीत जोगी की इस पारंपरिक सीट पर उनके उत्तराधिकारी अमित जोगी को सहानुभूति लहर चलने की उम्मीद है तो सत्तारूढ़ कांग्रेस भी इस बार यहां पूरे जोर-शोर से मैदान में उतरने जा रही है। इन दोनों की जोर-आजमाइश के बीच भाजपा भी अपनी संभावनाओं को मजबूत करने में लग गई है। कुल मिलाकर प्रदेश की मरवाही सीट सियासत की उम्मीदों का नया ठिकाना बनने जा रही है। मरवाही सीट पर होने जा रहे उपचुनाव की अधिसूचना जारी होने वाली है।

हालांकि अभी यहां किसी भी दल की ओर से उम्मीदवार के नाम का एलान नहीं हुआ है। बहुत संभव है कि अजीत जोगी की पार्टी से उनके पुत्र अमित ही मैदान में उतरें। लॉकडाउन के दौरान बंदिशों के बावजूद अजीत की अंतिम यात्रा में यहां जिस तरह से उनके समर्थकों की भीड़ उमड़ी थी, उससे अमित का उम्मीद पालना लाजिमी भी है। हालांकि अमित को अभी अपने पिता की तरह लोकप्रियता पाने के लिए सियासत का लंबा सफर तय करना है। करीब डेढ़ दशक से मरवाही और अजीत एक तरह से एक दूसरे के पर्याय जैसे बन गए थे।

पिछले चुनाव में वह यहां से भारी मतों से जीते भी थे। भाजपा चूंकि दूसरे स्थान पर रही थी, इसलिए वह भी एड़ी-चोटी का जोर लगाएगी। ऐसा इसलिए भी, क्योंकि नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय के नेतृत्व में यह पहला चुनाव है। इन सबके बीच पिछले चुनाव में तीसरे नंबर पर रही कांग्रेस की सक्रियता ने मरवाही उपचुनाव को बेहद रोचक बना दिया है। दरअसल पिछले विधानसभा चुनाव के बाद से प्रदेश में जिन दो सीटों पर उपचुनाव हुए, वे दोनों बस्तर इलाके की हैं। विस चुनाव में बस्तर में कांग्रेस ने शानदार जीत दर्ज की थी और उपचुनावों में भी यह क्रम जारी रहा। अब बस्तर के बाहर पहली बार जोर-आजमाइश होने जा रही है। प्रदेश सरकार को डेढ़ साल हो चुके हैं। ऐसे में मरवाही में परचम फहराकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जहां अपनी सरकार के कामकाज पर जनता की मुहर लगवाना चाहेंगे, वहीं यह संदेश भी देना चाहेंगे कि उनकी लोकप्रियता भी बदस्तूर कायम है।

उधर प्रदेश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि क्षेत्र के लिए भी आषाढ़ इस बार मानो अतिरिक्त उम्मीदें लेकर आया है। लॉकडाउन के दौरान तमाम मुश्किलों से जूझते रहे किसान इस बार झमाझम बरसात से गदगद हैं। खासकर धान के किसानों को अपने अरमान के परवान चढ़ने की उम्मीदें हैं। महीने भर बाद राजीव गांधी न्याय योजना के तहत दूसरी किस्त की राशि का भुगतान होने जा रहा है। निश्चित रूप से इन पैसों से खेती- बाड़ी में उन्हें मदद मिल सकती है। ऐसे में बहुत संभव है कि सरकार की चाहत के उलट इस बार प्रदेश में धान का रकबा बढ़ सकता है। यदि इंद्रदेव मेहरबान रहे तो प्रदेश में धान की पैदावार नये र्कीतिमान भी गढ़ सकती है। उधर आम जनजीवन भी कोरोना के डर से एक हद तक बाहर निकलता दिखाई दे रहा है। रायपुर और बिलासपुर समेत प्रदेश के तमाम बड़े शहरों में लॉकडाउन के दौरान थम गईं गतिविधियां पटरी पर लौटती दिखाई दे रही हैं। सबसे अच्छी बात है कि कोरोना को लेकर पिछले तीन महीने से बरती जा रही सतर्कता को लोग अभी भूले नहीं हैं।

यह सतर्कता शहर से लेकर गांव-कस्बों तक दिखाई देती है। ऐसे में उम्मीद की जानी चाहिए कि कोरोना से सबसे पहले जंग जीतने वालों में एक नाम छत्तीसगढ़ भी रहेगा। उम्मीदों के इस सफर में मुंगेली जिले के जरहागांव की प्रज्ञा का जिक्र भी जरूरी होगा। राज्य बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में 600 अंक लाकर गांव की इस बिटिया ने महानगरों को मानो यह संदेश दे दिया कि छत्तीसगढ़ की माटी में मेधा और प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। हम बड़े- बड़ों से भी हाथ मिलाने का माद्दा रखते हैं। प्रज्ञा को विशेष शुभकामनाएं।

[राज्य संपादक, छत्तीसगढ़]