हर्ष गुप्ता मधुसूदन। हमारे यहां एक बड़ी मशहूर कहावत है-मुंगेरी लाल के हसीन सपने। असल में किसी महत्वाकांक्षा का मखौल उड़ाना और उसे संशय की दृष्टि से देखना बहुत आसान होता है। उपहास और निंदा करने में कुछ खर्च भी तो नहीं होता। ऐसे विघ्नसंतोषी निराशा से लगाव रखते हैं, लेकिन वास्तविकता यही है कि अंत में आशावाद ही विजयी होता है। आशावादी और निराशावादी की यह बहुत कुछ आगे जाए, उससे पहले ही मैं स्पष्ट कर देना चाहता हूं मेरा वास्ता इन दोनों में से किसी से नहीं। मैं अनुभववादी हूं। इसमें अनुभवों एवं साक्ष्यों का सम्मिश्रण होता है। वस्तुत: किसी भी आकलन में इन तत्वों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इन दिनों भारत को लेकर भी तमाम आकलन लगाए जा रहे हैं, जो आगामी 15 अगस्त को अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे कर लेगा। फिर अगले 25 वर्षों के दौरान स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ मनाने की यात्रा आरंभ होगी। इसे अमृत काल का नाम दिया जा रहा है। इस अवसर पर अपने विश्लेषण के आधार मैं यही कहूंगा कि अब भारत का स्वर्णिम दौर शुरू हो गया है। आने वाले समय में इस सुनहरे दौर की चमक और निखरकर ही सामने आएगी। भारत तेज वृद्धि के एक नए चक्र में दाखिल होने जा रहा है।

भारत को लेकर मेरा ऐसा आकलन मुख्य रूप से तीन व्यापक स्तंभों पर आधारित है। पहला मानव पूंजी, दूसरा क्लीन टेक यानी स्वच्छ तकनीक और तीसरा लोकतंत्र। इन तीनों के भीतर भी अन्य बिंदु समाए हैं। मैंने इसे 4-2-4 फ्रेमवर्क नाम दिया है। इनमें आरंभिक चार का संबंध मानव पूंजी से है, जिसमें भारतीयों की संख्या, आयु वितरण, कामकाजी महिलाएं और युवाओं में सार्वभौमिक साक्षरता जैसे पहलू शामिल है। इसके उपरांत स्वच्छ तकनीक से जुड़े दो बिंदुओं में स्वच्छ ऊर्जा और सुपर फास्ट डाटा हैं। इस फ्रेमवर्क के तीसरे स्तंभ लोकतंत्र में चार बिंदु समाहित हैं। इनमें पहला है साफ्ट पावर एवं आंतरिक एकता, दूसरा आत्मनिर्भरता विशेषकर रक्षा क्षेत्र में स्वावलंबन, तीसरा सुधारों की राह एवं जनधन-आधार-मोबाइल की त्रिवेणी और चौथा भौतिक अवसंरचना से संबंधित है। कुल मिलाकर ये दस कारक हो जाते हैं। अमूमन ये किसी अन्य देश के लिए प्रतिकूल भी हो सकते हैं, किंतु भारत के मामले में यह अनुकूल प्रतीत हो रहे हैं। इससे भी बढ़कर बात यह है कि जो वैश्विक महामारी भयावह त्रासदी लाई, जिसने भारत समेत पूरी दुनिया को भारी क्षति पहुंचाई, उसके बावजूद इन दस में से अधिकांश कारकों में सुस्ती के बजाय और तेजी का रुझान ही देखने को मिला। मेरे हिसाब से यह 'शार्ट टर्म पेनÓ और 'लांग टर्म गेनÓ यानी कुछ समय की तकलीफ और लंबे समय में मिलने वाला लाभ जैसा है।

जैसे-जैसे हम स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे करने के करीब पहुंच रहे हैं, वैसे-वैसे तकलीफ का पहलू कमजोर पड़ता दिख रहा है। वहीं लाभ वाला हिस्सा और मुखरता के साथ उभरता हुई दिखाई देगा। आंकड़ों की बात करें तो आज भारत की अर्थव्यवस्था अमेरिकी डालर बाजार विनियम दरों के लिहाज से तीन ट्रिलियन (लाख करोड़) डालर से अधिक की है। इस पैमाने पर अमेरिकी अर्थव्यवस्था आठ गुना बड़ी है। हालांकि यदि भारत की प्रति व्यक्ति आय अमेरिका जितनी होती तो उस स्थिति में भारतीय अर्थव्यवस्था करीब 100 ट्रिलियन डालर की होती। फिलहाल जो आसार दिख रहे हैं, उसके हिसाब से अगले 25 वर्षों के दौरान यानी 2047 तक हम पहले अमेरिका और फिर चीन को पछाड़कर आगे निकल सकते हैं। फिर उसके अगले दस वर्षों में दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में अग्र्रणी प्रति व्यक्ति आय के लक्ष्य का संधान करने की दिशा में आगे बढ़ा सकता है।

तमाम लोग इस विवरण को फिर से 'मुंगेरी लाल के हसीन सपनेÓ कहेंगे। ऐसे लोगों को कदाचित यह विस्मृत नहीं करना चाहिए कि आर्थिक परिदृश्य में आकार बहुत मायने रखता है। विशेषकर ऐसे विश्व में जहां वैश्विक ढांचे की संरचना बहुत तेजी से बदल रही हो और उसमें वैश्वीकरण को लेकर अनिश्चितता का भाव गहरा रहा हो। जल्द ही भारत दुनिया में सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। युवाओं की सबसे बड़ी संख्या के मामले में वह पहले ही दुनिया में शीर्ष पर पहुंच गया है। कामकाजी आबादी में महिलाओं की भागीदारी गर्त वाली स्थिति में पहुंचने के बाद चरम की स्थिति की ओर उन्मुख हो रही है। नई पीढ़ी साक्षर होने के साथ-साथ डिजिटल रूप से भी दक्ष है। यानी मानव संसाधन की तस्वीर गुलाबी नजर आती है।

ऊर्जा आयात हमेशा से हमारी दुखती रग रहे हैं। कतिपय कारणों से देश को अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के एक बड़े हिस्से की पूर्ति आयात के माध्यम से करनी पड़ती है। ऐसे में समय की मांग है कि हम अपनी इस कमजोरी से पार पाएं। अब सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, व्यापक भंडारण क्षमताओं और परमाणु ऊर्जा में भारी निवेश के साथ ही इलेक्ट्रिक वाहनों एवं ग्र्रीन हाइड्रोजन के दम पर हम अगले दस वर्षों के दौरान ऊर्जा आयात की उलझन से बड़े स्तर पर मुक्ति पा सकते हैं। साथ ही 5जी के आगमन एवं आगमेंटेड रियलिटी (मेटावर्स) के माध्यम से लोग भारत में बैठे-बिठाए अमेरिकी कंपनियों के लिए बहुत सहजता से कार्य करने में सक्षम हो सकेंगे।

कुल मिलाकर, आर्थिक वृद्धि की दशा-दिशा बाजारों और राज्य क्षमताओं पर निर्भर करेगी। हमारा लोकतंत्र हमें एकजुट रखते हुए और किसी के लिए कोई खतरा न बनते हुए इसे संभव बनाता है। मेक इन इंडिया की मुहिम परवान चढ़ रही है। विशेषकर रक्षा साजोसामान में स्वदेशी निर्माण से हम एकाध दशक में हथियार आयातक से निर्यातक की स्थिति में आ जाएंगे। दिवालिया संहिता, जीएसटी, रेरा और आधार पर आधारित इंडिया स्टैक जैसी पहल ने हमारे दैनंदिन जीवन में क्रांतिकारी बदलाव ला दिए हैं। आने वाले समय में उनकी उपयोगिता और ज्यादा ही बढ़ेगी।

पिछले कुछ समय से कायम राजनीतिक स्थिरता एवं स्थायित्व भी वृद्धि के लिए बहुत मददगार सिद्ध हुई है। इसने भौतिक बुनियादी ढांचे में निवेश को प्रोत्साहन दिया है। विशेषकर घनी बसावट वाले उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में इसके परिमाण प्रत्यक्ष दिख रहे हैं। ये संकेत उत्साहजनक है, लेकिन कोई तस्वीर कितनी ही बेहतर क्यों न हो, लेकिन उसमें मीनमेख निकालने वाले नुक्स निकालने के लिए तैयार बैठे ही रहते हैं। 

(स्तंभकार निवेशक एवं लेखक हैं)