शंभु सुमन। देशभर में बेरोजगारी बेतहाशा बढ़ती जा रही है। कोरोना जनित लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था के व्यापक तौर पर प्रभावित होने के बाद से रोजगार क्षेत्र की स्थिति और भी बदतर हो गई है। बेरोजगारी की रफ्तार को रोकने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा की गई तमाम कोशिशें निष्फल होती दिख रही हैं। सरकारों द्वारा नौकरी मुहैया करवाना महज आंकड़ों की बाजीगरी बनकर रह गया है। सरकारी नौकरियां सिमटती जा रही हैं। हालांकि निजी क्षेत्रों की कंपनियों में जॉब का दायरा बड़ा तो हुआ है, लेकिन अनेक कारणों से इन्हें स्थायी नौकरी नहीं माना जाता। इसकी प्रमुख वजह यह है कि ये नौकरियां कई अनिश्चितताओं व अनियमितताओं से भरी होती हैं। फिर भी, इसमें भी मारामारी है।

निजी क्षेत्र में कार्यरत युवा पीढ़ी से लेकर लंबी कतार में लगे बेरोजगारों तक की निगाहें हमेशा जॉब पोर्टल, प्लेसमेंट एजेंसियों और सोशल साइटों पर टिकी रहती हैं। दूसरी तरफ कोविड-19 महामारी के चलते बेरोजगारों की फौज और भी बड़ी हो गई है। छोटी-मोटी नौकरियों से लेकर प्रोफेशनल जॉब की भारी कमी से यह परिवेश पहले से अधिक अव्यवस्थित हो गया है। परिणामस्वरूप रोजगार देने का भी एक नया रोजगार पैदा गया है।

दैनिक समाचार पत्रों के रोजगार कॉलम या साप्ताहिक परिशिष्ट की जगह जॉब्स पोर्टल ने ले ली है। ऑफलाइन की जगह ऑनलाइन नौकरी तलाशने की प्रवृत्ति जोर पकड़ चुकी है। यही कारण है कि आज सैकड़ों जॉब पोर्टल बेरोजगारों की एक जरूरत बन चुके हैं। इसके जरिये वाइट कॉलर जॉब के अलावा हर किस्म के नियमित से लेकर अंशकालिक या फ्रीलांस नौकरियां तलाशी जाने लगी हैं। दर्जनों देशी-विदेशी जॉब पोर्टल के अतिरिक्त केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा भी पोर्टल बनाए गए हैं, जिन पर हर क्षेत्र की नौकरियां मौजूद हैं। वहां नौकरी देने और ढूंढने वाले दोनों होते हैं। नियोक्ता कंपनियों और नौकरी तलाशने वाले उम्मीदवारों को इन पोर्टल पर पंजीकरण कराना होता है।

अधिकतर नियोक्ता द्वारा जॉब से संबंधित संक्षिप्त जानकारियां ही होती हैं, जिनमें मुख्यत: जॉब का स्वरूप, वेतन, योग्यता और अनुभव आदि का संक्षिप्त विवरण रहता है। जबकि उनके द्वारा दी गई जानकारियां या दावे पूर्णत: सही नहीं माने जा सकते। ज्यादातर कंपनियां अपना कोई पता या फिर संपर्क नंबर नहीं देती हैं। ये कंपनियां जॉब पोर्टल में अपलोड किए गए रिज्यूम का ही उपयोग करती हैं, लेकिन कुछ रिज्यूम अपने ईमेल या वेबसाइट के माध्यम से भी मंगाती हैं। यानी अधिकतर पोर्टल पर नियोक्ता की तमाम जानकारियां छिपी होती हैं। दूसरी तरफ पोर्टल आवेदक से रिज्यूम रजिस्टर करने के समय ही अपलोड करवा लेते हैं। ऐसे जॉब्स पोर्टल नियोक्ता और आवेदकों के बीच एक पुल का काम करते हैं।

जॉब पोर्टल पर जालसाजों का जमावड़ा : जॉब पोर्टल पर जालसाजों का भी जमावड़ा लग चुका है। इसकी चेतावनी देते हुए कुछ पोर्टल अब ओटीपी और कैप्चा का इस्तेमाल कर खुद को सही साबित करने लगे हैं। जबकि उनके जरिये फर्जी कंपनियों की पहचान करने के संबंध में कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। पोर्टल अपनी गतिविधियों और लोगों तक तेजी से पहुंच बनाने की सुविधा के हिसाब से जॉब पोस्ट करने वाली कंपनियों से शुल्क वसूलती है। कई बार ज्यादा वेतन वाली नौकरियों या अधिक पारिश्रमिक वाले काम के ऑफर के लिए ये जॉब पोर्टल फीस की मांग भी करते हैं। इनमें से कई तो बहुचíचत कंपनियों में नौकरी दिलवाने का झांसा देकर ठगी करने से भी नहीं चूकते। मल्टीलेवल मार्केटिंग करने वाली कई कंपनियां किसी विदेशी पोर्टल या कंपनी की फ्रेंचाइजी पर काम करती हैं और जॉब देने की आड़ में कमीशन की आय वाले पोंजी स्कीम में शामिल होने का ऑफर देती हैं। आवेदक को हैरानी तब होती है, जब उन्हें कॉल सेंटर या प्लेसमेंट के जरिये बुलाया तो जाता है, लेकिन जिस जॉब के लिए उसने आवेदन किया होता है, वहां वह नौकरी नहीं होती है। आवदेक से जॉब के लिए अलग से प्रशिक्षण या सिक्योरिटी के नाम पर फीस मांगी जाती है। ऐसे में कई बार फ्रेशर इनके झांसे में आ जाते हैं।

नेशनल कैरियर सíवस और रोजगार बाजार : बहरहाल ऑनलाइन नौकरी तलाशना जितना आसान लगता है, उतना ही जोखिम भरा भी है। सरकारें इन्हीं की बदौलत लाखों लोगों को रोजगार और नौकरी देने के दावे करती हैं। उदाहरण के तौर पर केंद्र सरकार के पोर्टल नेशनल कैरियर सíवस और दिल्ली सरकार के रोजगार बाजार समेत दूसरे राज्यों के जॉब पोर्टल को देख सकते हैं। यही पोर्टल सरकार के रोजगार देने के दावे की पोल भी खोलते हैं। जैसे श्रम रोजगार मंत्रलय के अंतर्गत एनसीएस यानी नेशनल कैरियर सíवस पर जहां कुछ दिनों पूर्व तक नौकरी ढूंढने वाले पंजीकृत आवेदकों की संख्या एक करोड़ से भी अधिक थी, वहीं इनके लिए रिक्तियों की संख्या महज दो लाख के आसपास थी, जिसे करीब 57 हजार नियोक्ता कंपनियों की ओर से दिया गया था। इस पोर्टल के जरिये बेरोजगारों की वास्तविक स्थिति और नौकरियों की किल्लत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

निजी नौकरियों के साथ-साथ सरकारी नौकरियों की सूचनाओं के लिंक से भरे एनसीएस पर देश के विभिन्न शहरों में रोजगार मेले के आयोजनों की भी जानकारी होती है। इसके जरिये रोजगार मेला लगता है। उसमें देशभर के लाखों आवेदक पंजीयन करते हैं। फिर भी बेरोजगारों की संख्या में कोई कमी नहीं आती दिखती है। सरकारें इन्हीं रोजगार मेले के लिए पंजीकृत आवेदकों की संख्या के हवाले से नौकरी देने के आंकड़ों की बाजीगरी को भी अपने तरीके से अंजाम देती हैं। तकनीक से इंटरनेट आधारित भर्ती की प्रक्रिया स्मार्ट हो गई है।

सर्च इंजन पर कीवर्ड से नौकरियों की तलाश करना आसान हो गया है। इससे समय की बचत होने लगी है। उपयोगकर्ता को विभिन्न कंपनियों के कार्यालयों के चक्कर नहीं लगाने होते हैं। इसके लिए अपनी योग्यता और जरूरत के मुताबिक एक आदर्श जॉब सर्च पोर्टल पर ही भरोसा करना चाहिए। ईमेल अलर्ट, मैसेज, वाट्सएप, ट्रेंड और नोटिफिकेशन जैसे अलर्ट पर ध्यान देते हुए अपनी योग्यता और जरूरत के मुताबिक पोर्टल पर रजिस्टर कंपनियों को भी समझना जरूरी है। उल्लेखनीय है कि आने वाले दिनों में एआइ यानी आर्टििफशियल इंटेलिजेंस आधारित जॉब पोर्टल की उपयोगिता बढ़ेगी और लोगों की कुशलता संबंधी तमाम गतिविधियों की जानकारी स्वत: जुटाई जा सकती है।

कोरोना संक्रमण की मुश्किल घड़ी में जॉब सर्च पोर्टल मददगार बनकर सामने आया तो जरूर, लेकिन आशंकाएं भी कम नहीं है। लिहाजा सावधान रहने की जरूरत है। साइबर अपराधी इसके जरिये बेरोजगारों को जाल में फंसा सकते हैं। इस बाबत लोगों को साइबर ठगी से बचाने के लिए गृह मंत्रलय ने एक ट्वीटर हैंडल शुरू किया है। मंत्रलय ने कुछ टिप्स बताए हैं, ताकि लोगों को बैंकिंग ट्रांजैक्शन के दौरान ठगी व डाटा चोरी होने से बचाया जा सके।

कोई भी जॉब सर्च पोर्टल परफेक्ट और फूलप्रूफ तब ही हो सकता है, यदि वह एडवांस टेक्नोलॉजी के संबंध में विशेष बातों की जानकारी देता हो। इनमें अगर जॉब सर्च के विकल्प व्यापक हों, तो नौकरी ढूंढने वालों को नियोक्ता कंपनियों की लिंक पर जाने के बजाय पोर्टल पर ही आवेदन की आजादी मिलनी चाहिए। अतिरिक्त सर्च के तहत विशिष्ट नौकरियों, प्रशिक्षण, लोकेशन और नौकरी के स्वरूप की भी स्पष्ट जानकारी मिलनी चाहिए। आम तौर पर पोर्टल को एक सप्ताह पहले या पिछले महीने तक रिक्तियों की संख्या के साथ-साथ अंशकालिक व पूर्णकालिक नौकरियों की उपलब्धता के बारे में बताना चाहिए। उसकी समय सीमा क्या है? नई नौकरियां पोस्ट होने पर उसकी सूचना ईमेल पर मिलती है या नहीं? आदि जानकारियां भी होनी चाहिए।

मौजूदा परिदृश्य में नौकरीपेशा लोगों के लिए घर से काम करने का तरीका बढ़ गया है। इसमें सहुलियत देने के लिए एनसीएस पोर्टल ने भी कई सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं। जैसे सरकार ने नियोक्ताओं को ऐसी नौकरी और इंटर्नशिप पोस्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया है, जो वर्क फ्रॉम होम हो। केंद्र और राज्य की सरकारों द्वारा आयोजित डिजिटल रोजगार मेले ऐसी नौकरियों के लिए उपायोगी साबित हो सकते हैं।

रजिस्ट्रेशन और रिज्यूम पोस्ट की प्रक्रिया न केवल आसान हो, बल्कि ईमेल के जरिये आवेदन प्राप्ति की सूचना भी तुरंत मिलनी चाहिए। इन दिनों जॉब पोर्टल ने खुद को कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के साथ जोड़ लिया है। हालांकि इनसे जॉब पोर्टल पर रजिस्टर करना आसान हो गया है, पर साइबरदोस्त के अनुसार किसी भी जॉब पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन से पहले वेबसाइट की प्राइवेट पॉलिसी को अवश्य चेक कर लेना चाहिए। सीधे वेबसाइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन करना ही सही होता है। सोशल मीडिया या कहीं और से भेजे गए लिंक मिलते-जुलते कंपनियों के फर्जी साइट से जुड़ सकते हैं। वेबसाइट की सिक्योरिटी की जांच भी यूजर्स के हिसाब से आसान बनाई जानी चाहिए, ताकि कोई सामान्य समझ रखने वाला यूजर भी उसे समझ सके। ऑनलाइन बैंकिंग ट्रांजैक्शन के दौरान बैंकों की वेबसाइट में उसके लिंक वाले स्थान पर लॉक का निशान चेक करना चाहिए। इस निशान के होने का मतलब वेबसाइट का सुरक्षित होना दर्शाता है।

कई बार नियोक्ता कंपनी नौकरी के अवसर को सुरक्षित करने के लिए सिक्योरिटी डिपॉजिट, रजिस्ट्रेशन या डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन के लिए फीस मांगती है, तो सावधान हो जाना चाहिए। ऐसे में कंपनी के बारे में व्यापक जांच के बाद ही निर्णय लिया जाना चाहिए। ईमेल में आए कंटेंट में खामियां निकालकर भी फर्जी वेबसाइट का पता लगाया जा सकता है। जैसे कंटेंट की फॉर्मेटिंग, स्पेलिंग की गलतियां, कंपनी का अस्पष्ट या मिलता-जुलता लोगो, अधूरा पता आदि ऐसे तथ्य हैं, जिनसे संदेह पैदा हो सकता है। आजकल बहुत से जॉब पोर्टल बाजार में हैं, लिहाजा सबकुछ समझ कर ही फैसला लेना उचित होगा।

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