विवेक ओझा। संयुक्त राष्ट्र के पिछले सात दशकों में उसकी भूमिका के मूल्यांकन पर अक्सर प्रश्न उठाए जाते हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 1990 से पूर्व शीत युद्ध के दौर में राष्ट्रों के जिस शक्ति राजनीति के साये में कार्य किया, उसने निश्चित रूप से इसकी कार्यप्रणाली और प्रतिबद्धताओं पर असर डाला। वर्ष 1990 में शीत युद्ध के अंत और अमेरिका के नेतृत्व में जिस एक ध्रुवीय विश्व व्यवस्था का निर्माण हुआ, उसे बहु ध्रुवीय बनाने की जिम्मेदारी संयुक्त राष्ट्र सहित कई प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संगठनों की थी।

पर सवाल यह उठता है कि क्या संयुक्त राष्ट्र इतना सक्षम है कि आज स्वतंत्र राष्ट्रों के निर्णयों पर विश्व व्यवस्था के हित में प्रश्न खड़े कर जरूरत पड़ने पर कोई प्रभावी कार्रवाई कर सके। तो इस प्रश्न का जवाब यही मिलता है कि जब तक यूएन में संरचनात्मक बदलाव नहीं लाए जाते, तब तक ऐसा हो पाना संभव नहीं। आज यूएन और उसके सदस्य देशों को सशक्त बनाने की जरूरत है।

दूसरी प्रमुख बात कि संयुक्त राष्ट्र की वित्तीय मजबूती के लिए राष्ट्रों में सर्वसम्मति बननी जरूरी है, ताकि संयुक्त राष्ट्र अपने शांति अनुरक्षण मिशन को बेहतर ढंग से चला सके, वैश्विक भुखमरी और निर्धनता उन्मूलन में प्रभावी भूमिका निभा सके। इसी क्रम में अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन ने ग्लोबल कार्बन टैक्स लगाने का भी प्रस्ताव किया था। उच्च सागरीय क्षेत्रों में होने वाले व्यापार पर एक निश्चित मात्र में टैक्स लगाकर उससे प्राप्त पैसे का इस्तेमाल यूएन के उद्देश्यों को पूरा करने में लगाने के विचार भी दिए जा चुके हैं जिस पर विभिन्न देशों को सद्भाव से विचार करने की भी जरूरत है। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र को यूएनएफसीसीसी यानी यूनाइटेड नेंशस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑफ क्लाइमेट चेंज की वार्षकि बैठक को परिणाम मूलक बनाने का तत्काल प्रयास करना होगा।

आज यूएन द्वारा संगठित अपराधों से निपटने में राष्ट्रों के आपसी सहयोग को भी सुनिश्चित कराने की चुनौती है। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार आपराधिक व्यवहार को आतंकवाद से जोड़ कर देखने के कई साधन मौजूद हैं। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने 2014 में एक प्रस्ताव पारित किया गया था जिसमें कहा गया है कि विश्व के कई क्षेत्रों में पार-राष्ट्रीय संगठित अपराध से आतंकवादी लाभान्वित हुए हैं और ऐसा हथियारों, व्यक्तियों, ड्रग्स व पुरातात्विक सामग्रियों की तस्करी और प्राकृतिक संसाधनों के अवैध व्यापार के रूप में हुआ है। इसके अलावा, फिरौती के लिए अपहरण और अन्य अपराधों के जरिये भी आतंकवादियों को लाभ मिला है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की जुलाई 2019 की बैठक में स्पष्ट किया गया है कि छोटे अपराधी अवसर का लाभ उठाने के लिए आतंकवाद को अपना रहे हैं, जो चिंता का विषय है। संयुक्त राष्ट्र अंतरक्षेत्रीय अपराध और न्याय अनुसंधान संस्थान ने भी इसे स्पष्ट किया था।

संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक स्तर पर कौशल विकास, नवाचार और सामाजिक उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिए निर्णायक उपाय करने होंगे। इसी क्रम में अक्टूबर 2019 में 70 देशों के 1,200 प्रतिनिधियों ने इथोपिया की राजधानी अदिस अबाबा में सोशल एंटरप्राइज वल्र्ड फोरम में सहभागिता दर्ज की थी। इथोपिया में ऐसा आयोजन समूचे अफ्रीकी महाद्वीप में शांति, स्थिरता और समृद्धि में सामाजिक पूंजी और उद्यमों की भूमिका को रेखांकित करता है। इस बैठक में स्थानीय परंपराओं के संरक्षण पर बल दिया गया है। अफ्रीका के देशों में निर्धनता उन्मूलन में सामाजिक उद्यमियों की भूमिका को बढ़ावा देने की बात इसमें की गई है। बैठक में बौद्धिक सामाजिक नवाचारी उद्यमियों ने माना कि संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों अथवा एजेंडा 2030 के लक्ष्यों की प्राप्ति में वैश्विक सामाजिक उद्यमशीलता आंदोलन को दिशा देने में इथोपिया अपनी प्रशंसनीय भूमिका निभा रहा है। बैठक में विभिन्न अफ्रीकी देशों जैसे रवांडा, युगांडा, इथोपिया ने इस बात पर बल दिया कि अफ्रीका में असमानताओं के उन्मूलन में युवाओं को कौशल विकास के लक्ष्य से जोड़कर सामाजिक उद्यमशीलता को एक आंदोलन बनाने की जरूरत है।

सामाजिक उद्यमशीलता : वर्तमान जटिल विश्व व्यवस्था में सभी क्षेत्रों में जीवंत उद्यमशीलता और नवाचारी समाधानों की जरूरत है, ताकि सामाजिक, पर्यावरणीय, वित्तीय संकटों को दूर करने की राह मिल सके। ऐसी संस्थाएं जो केवल वित्तीय लाभों के लिए काम करती हैं और गैर लाभकारी संगठन, जो सामाजिक सरोकारों के लिए काम करते हैं, उनके कई प्रकार के जोखिमों के समाधान के लिए एक फोरम पर ले आने की जरूरत है। इसी कारण यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम ने 2015 में सामाजिक उद्यमशीलता की दिशा में वैश्विक क्रांति लाने के लक्ष्य के साथ यूनाइटेड नेशंस सोशल एंटरप्राइजेज फैसिलिटी का गठन किया। इसका गठन यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट ग्रुप के मल्टीपार्टनर ट्रस्ट फंड ऑफिस के तहत किया गया है जो सौ से अधिक देशों में सामाजिक उद्यमशीलता को एक वैश्विक क्रांति बनाने के लक्ष्य के साथ सात खरब डॉलर राशि का प्रबंधन कर रही है।

यूनाइटेड नेशंस सोशल एंटरप्राइजेज फैसिलिटी यूएन की एकमात्र सामाजिक असरकारी निवेश शाखा है। इसका उद्देश्य उच्च क्षमता संभावना वाले सामाजिक उपक्रमों, स्टार्ट-अप बिजनेस को मदद करना है। यह प्रत्येक विकास संभावनामूलक सामाजिक उद्यम को एक लाख डॉलर तक अनुदान देता है। संयुक्त राष्ट्र के तीन अभिकरणों ने इस फैसिलिटी के एमओयू पर हस्ताक्षर किया है जिसमें यूएनडीपी, यूनेप और यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड शामिल हैं। इस प्रकार वैश्विक और क्षेत्रीय स्तरों पर सामाजिक पूंजी के निर्माण की प्रक्रिया अबाधित रूप से चलती रहनी चाहिए।

सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति : संयुक्त राष्ट्र को सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रभावी कार्रवाई करने की जरूरत है। 25 सितंबर 2015 को संयुक्त राष्ट्र के 193 देशों ने जिस सतत विकास लक्ष्य रूपरेखा या एजेंडा 2030 को अपनाया था, उसे इस वर्ष 24 सितंबर को पांच वर्ष पूरे हो गए। इस वर्ष सितंबर माह में हुए संयुक्त राष्ट्र महासभा सम्मेलन में भी यह महत्वपूर्ण विषय रहा कि कोरोना महामारी ने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयासों में किस प्रकार बाधाएं खड़ी की हैं और इसका समाधान किस प्रकार किया जा सकता है? सतत विकास लक्ष्य एक और दो क्रमश: निर्धनता और भुखमरी उन्मूलन की बात करता है। सामाजिक और मानव पूंजी के निर्माण के लिए यह आवश्यक शर्त है, लेकिन कोविड महामारी ने इस लक्ष्य प्राप्ति के वैश्विक अभियानों पर गंभीर चोट किया है।

यूएनडीपी के इक्वेटर पहल जैसे अभियान जो दुनिया भर के देशों की स्थानीय जनसंख्या के आजीविका संरक्षण के लक्ष्य से प्रेरित है, आज नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने कुछ समय पूर्व ही श्रमिकों के कामकाज, उनकी स्थिति पर इस आपदा के प्रभाव से संबंधित अपनी रिपोर्ट साझा की थी, जिसका कहना था कि कोरोना वायरस संकट दूसरे विश्व युद्ध के बाद सबसे भयानक संकट के रूप में हमारे सामने है और इसके कारण भारत में अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले लगभग 40 करोड़ लोग गरीबी के दुष्चक्र का शिकार हो सकते हैं और अनुमान है कि इस साल दुनिया भर में 19.5 करोड़ लोगों की पूर्णकालिक नौकरी छूट सकती है। ऐसे में रोजगार सृजन और आय सुरक्षा जरूरी है।

संयुक्त राष्ट्र को वैश्विक आतंकवाद से निपटने के भारत के प्रस्तावों पर विचार करने की जरूरत : सितंबर 2019 में भारत के प्रधानमंत्री द्वारा संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को शीघ्र से शीघ्र अंगीकृत करने, इस पर हस्ताक्षर करने और इसका समर्थन करने के लिए राष्ट्रों से अपील की गई थी। इसके साथ ही कई क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत ने इस अभिसमय को मूर्तमान स्वरूप देने हेतु राष्ट्रों से सहयोग करने की बात कही है, क्योंकि आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक स्वीकृत परिभाषा नहीं है और इसके चलते विभिन्न देशों के राष्ट्रीय कानूनों में आतंकवाद और आतंकवादियों से निपटने संबंधी प्रावधानों में अस्पष्टता बनी रहती है। इसीलिए भारत ने वर्ष 1996 में अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय को अपनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव रखा था, लेकिन अमेरिका और इस्लामिक सहयोग संगठन के सदस्य देशों तथा कुछ लैटिन अमेरिकी देशों के विरोध और मतभेद के चलते इस प्रस्ताव को अंगीकृत नहीं किया जा सका है।

अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद पर व्यापक अभिसमय (सीसीआइटी) वैश्विक स्तर पर आतंकवाद से निपटने की एक वैधानिक रूपरेखा प्रस्तुत करता है और यह सभी हस्ताक्षरकर्ता देशों पर बाध्यकारी दायित्व आरोपित करने का प्रस्ताव करता है कि वे आतंकी समूहों के वित्तपोषण और उनके संरक्षण का कार्य न करें। संयुक्त राष्ट्र महासभा के विधायी शक्तियों और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों को वैधानिक रूप से बाध्यकारी बनाए जाने की जरूरत है। इसके साथ ही चीन सहित महाशक्तियों द्वारा वीटो पावर के दुरुपयोग को रोकने के लिए राष्ट्रों को संवेदनशीलता के साथ काम करना होगा।

आज विश्व में जिस तरह से बहुपक्षीयतावाद का क्षरण हो रहा है, उसे देखते हुए वैश्विक संस्थाओं में आस्था और विश्वास को मजबूती देने की जरूरत है, लेकिन इसके साथ ही वैश्विक संगठनों को अपनी भूमिका को भी निष्पक्ष, पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की कोशिश करनी होगी, जिससे राष्ट्रों के मन में उनके लिए विश्वसनीयता का भाव बना रहे। इन्हीं संस्थाओं की कार्यकुशलता पर वैश्विक शांति और न्याय की उपलब्धता निर्भर करती है और इसके लिए राष्ट्रों के बीच वैश्विक साङोदारियां जरूरी हैं। वैश्विक स्वास्थ्य सुविधा अवसंरचना, नवीकरणीय ऊर्जा, वैश्विक आपदा प्रबंधन, वैश्विक शांति गठजोड़ जैसे कई अन्य क्षेत्र हैं, जहां वैश्विक समावेशी विकास के लिए साङोदारियां करनी जरूरी हैं। इस दिशा में महासागरीय विवादों को दूर करने, ब्लू इकोनॉमी के विकास के लिए सहमति बनाने, समुद्री डकैती रोकने और प्लास्टिक प्रदूषण समेत ग्लोबल वाìमग की मार से महासागरों को बचाने के लिए एकीकृत प्रयास जरूरी है। लुप्त होती समुद्री जैवविविधता के लिए राष्ट्रों को बिना शर्त एक साथ आना चाहिए। संयुक्त राष्ट्र के मंच से ऐसा किया जाना जरूरी है। सभी राष्ट्रीय कानूनों में महासागरीय सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता का भी प्रावधान होना चाहिए।

दुनियाभर में शांति व्यवस्था कायम रखने समेत अन्य अनेक मामलों को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। लेकिन हाल के वर्षो में इस संगठन की कार्यप्रणाली पर जिस तरह सवाल खड़े हुए हैं, उन्हें देखते हुए इसकी विशेषज्ञ संस्थाओं खास तौर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनेस्को, यूनिसेफ आदि की भूमिकाओं को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के देशों में सर्वसम्मति बननी जरूरी है। आज संयुक्त राष्ट्र को कई मामलों में प्रभावी बनाने की जरूरत है।

[अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार]