[अभिषेक कुमार सिंह]। हम जिस दवा या वैक्सीन पर सरकार और चिकित्सा तंत्र के दावों के बल पर भरोसा करें और कभी वह अचानक टूट जाए तो यह एक बेहद गंभीर मामला बन जाता है। अफसोस है कि पोलियो के टीके (वैक्सीन) के मामले में कुछ ऐसे ही हालात इधर देश में बने हैं। बताया जा रहा है कि सरकार समय-समय पोलियो टीकाकरण का कार्यक्रम चलाकर देश के लाखों-करोड़ों बच्चों को जिस पोलियो वैक्सीन की दो-दो बूंदें पिलाती रही है। उस वैक्सीन में ही टाइप-2 पोलियो वायरस मौजूद था। दावा है कि यह वायरस वैक्सीन के जरिये उत्तर प्रदेश में ही करीब आठ लाख बच्चों में पहुंच गया है।

उल्लेखनीय है कि हमारा देश 2014 में पोलियो को जड़ से मिटाने का दावा कर चुका है। विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस दावे पर मुहर लगा चुका है और ऐसे दावों के आधार पर 25 अप्रैल, 2016 को पोलियो के टाइप-2 के पूरी दुनिया से ही खात्मे का एलान कर चुका है। लेकिन अब इसका देश में लौटना पोलियो टीकाकरण अभियान पर हुए करोड़ों-अरबों रुपये के खर्च और हजारों लोगों की मेहनत पर पानी फेर रहा है। इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि देश को नए सिरे से पोलियो के खिलाफ जुटना पड़ेगा।

पोलियो उन्मूलन का व्यापक अभियान चलाना आसान नहीं होगा, क्योंकि पहले से ही कुछ बातों को लेकर संदिग्ध रहे पोलियो टीकाकरण कार्यक्रम में भरोसा जगाना और आम लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा। साथ ही यह सवाल भी जवाब मांगेगा कि क्या अपने सतत मुनाफे के लिए फार्मा (दवा) कंपनियां ही ऐसी गलतियों की गुंजाइश छोड़ती हैं ताकि उनका कारोबार चलता रहे। यानी उन्हें फिक्र लोगों की सेहत के बजाय अपने धंधे-पानी की होती है। ऐसे में मुमकिन है कि इन गलतियों के पीछे एक आशंका अभियान में लगे लोगों को अपने साथ मिलाने की साजिश की गई हो, जिसकी ताजा प्रकरण में जांच जरूरी हो गई है। यह पूछा जाना आवश्यक हो गया है कि आखिर ऐसा क्यों और किन हालात में हुआ और इसके लिए कौन जिम्मेदार है?

पोलियो के संपूर्ण उन्मूलन की घोषणा का आधार 13 जनवरी, 2011 को पश्चिम बंगाल के हावड़ा जिले में 18 महीने की बच्ची का मामला बना था, जिसके बारे में कहा गया कि वही देश में पोलियो की आखिरी मरीज थी। इसके बाद तीन साल यानी 2014 तक देश में पोलियो का एक भी मामला दर्ज नहीं किया गया। तीन साल की इस अवधि को एक मानक मानते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भारत को पोलियो-मुक्त देश का दर्जा प्रदान कर दिया। यह एक बड़ी उपलब्धि थी, इसकी सराहना भी हुई, लेकिन इसके बाद बीते 4 सालों में तस्वीर बहुत कुछ बदल गई है।

बिहार में पोलियो ड्रॉप पिलाने के बाद कथित तौर पर इसी साल एक बच्चे की मौत का मामला सामने आ चुका है। यूपी में मीरजापुर के एक अन्य 19 महीने के बच्चे में भी इसी साल सितंबर में पोलियो का यह वायरस मिला है, जबकि उसे पिछले साल (2017) अगस्त में पोलियो वैक्सीन दी गई थी। इस वायरस की वापसी के कई पहलू हैं जो पोलियो की कमजोर कड़ियों का खुलासा करते हैं। जैसे एक कमजोर कड़ी केंद्रीय एजेंसियां हैं, जो वैक्सीन की यह जांच करती हैं कि कहीं उनमें पोलियो का कोई वायरस तो मौजूद नहीं है। पता चला है कि ये एजेंसियां पोलियो के टाइप-1 और टाइप-3 वायरस की जांच कर रही थीं। वहां टाइप-2 वायरस की जांच यह मानकर नहीं की जा रही थी कि इस वायरस का खात्मा दुनिया से हो चुका है। यह एक गंभीर खामी है।

दूसरी गंभीर खामी वैक्सीन बनाने वाली दवा कंपनी की लापरवाही के रूप में सामने आई है जिससे साजिश और मिलीभगत की आशंका भी पैदा होती है। उल्लेखनीय है कि हाल में ही सरकार के सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम को वैक्सीन सप्लाई करने वाली गाजियाबाद की दवा कंपनी में पोलियो का वायरस टाइप-2 मिलने के बाद स्वास्थ्य मंत्रालय ने यूपी में इसे पीने वाले बच्चों का पता लगाने के आदेश दिए हैं। इस कंपनी की दवा पूरे देश में सप्लाई की गई थी, लेकिन जिस बैच में वायरस मिला, उसे महाराष्ट्र समेत चार राज्यों में भेजा गया था, वहां से भी सप्लाई वापस मंगाई जा रही है। साथ ही इस दवा कंपनी के प्रबंध निदेशक को लापरवाही के आरोप में 29 सितंबर 2014 को गिरफ्तार किया गया है। ये सारी कार्रवाइयां महज लापरवाही के आरोप में की गई हों, ऐसा नहीं लगता। इनसे साफ है कि सरकार को भी इसमें किसी भारी गड़बड़ी और मिलीभगत के संकेत मिल रहे हैं।

गाजियाबाद की जिस दवा कंपनी के प्रबंध निदेशक की गिरफ्तारी हुई है, केंद्रीय दवा नियामक के मुताबिक वह कंपनी सरकार के टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए ही पोलियो की दवाई की आपूर्ति करती थी। अगले आदेश तक भारतीय दवा महानियंत्रक ने इस कंपनी में इन दवाओं का निर्माण, बिक्री और वितरण रोक देने को कहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच रिपोर्ट में यूपी के जिन कुछ बच्चों के मल के नमूनों में पोलियो के बेहत खतरनाक टाइप-2 वायरस की मौजूदगी की पुष्टि हुई है, उन बच्चों को गाजियाबाद की दवा कंपनी का पोलियो ड्रॉप पिलाया गया था। यहां जो अहम सवाल पैदा होताहै, वह यह है कि कहीं ये घटनाएं कुछ बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों के इशारे पर खामी छोड़ने और लापरवाही बरतने की वजह से तो नहीं हुई हैं।

असल में ऐसे कुछ मामले अतीत में सामने आ चुके हैं, जब कुछ बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियों ने वायरसों को हौवा बनाने और दवाओं का कृत्रिम अकाल पैदा करने की कोशिश की। यह ध्यान रखना होगा कि संक्रामक बीमारियों के मामले में चिकित्सा बाजार ऐसी ही आपात स्थितियों का इंतजार करता है ताकि उनका टीका और दवा बनाकर बाजार में लाने पर दवा कंपनियां सैकड़ों-हजारों गुना मुनाफा कमा सकें। यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि पोलियो की बीमारी स्थाई विकलांगता से लेकर लोगों की मौत का कारण भी बन सकती है। जब तक इसके टीके का विकास नहीं हुआ था, हर साल लाखों लोग, खास तौर से बच्चे इसकी चपेट में आते थे। 1980 के दशक में ही 100 से ज्यादा मुल्कों में इसका वायरस सक्रिय था और इसकी वजह से सालाना साढ़े तीन लाख बच्चे विकलांगता के शिकार बनते थे।

भारत में ही हर साल 2 लाख बच्चे इसकी चपेट में आ जाते थे, पर अंतत: सरकारी टीकाकरण अभियान के जरिये इस पर काबू पा लिया गया था। 1995 की शुरुआत में जब सरकार ने पोलियो के खिलाफ एक बड़े कैंपेन की शुरुआत की और विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और कई अन्य संस्थाएं इस चुनौती से पार पाने के लिए एकजुट हुईं तो धीरे-धीरे यह अभियान रंग दिखाने लगा। दो बूंद जिंदगी की-नामक पोलियो टीकाकरण के अभियान का ही नतीजा कहा जाएगा कि एक मुश्किल बीमारी हमारे नियंत्रण में आ गई थी।

हालांकि अभी भी इस मामले में एक पेच शेष रहता है। असल में अभी दुनिया में कुछ देश ऐसे हैं जहां बड़े पैमाने पर पोलियो के मामले हर साल सामने आ जाते हैं। इनमें से दो तो भारत के पड़ोसी मुल्क-पाकिस्तान और अफगानिस्तान हैं। तीसरा देश नाइजीरिया है। इन तीनों मुल्कों में पोलियो के मामले गाहे- बगाहे सामने आते रहे हैं। लिहाजा खतरा यह है कि किसी भी वक्त यह वायरस अपने देश में पुन: सक्रिय हो सकता है। इस मामले में चीन का उदाहरण सामने है। चीन को वर्ष 2001 में पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया था, लेकिन इसके 10 साल बाद 2011 में चीन में पोलियो के नए मामले पकड़ में आए थे। आशंका है कि ऐसा भारत में भी हो सकता है। इसके अलावा भारत में ही अभी पोलियो वायरस के पूरी तरह खात्मे के पक्के सबूत नहीं हैं। लोगों के शरीर में तो यह अब भी मौजूद बताया जाता है। जरूरी है कि हमारा स्वास्थ्य तंत्र चौकस हो और ऐसे संक्रमणों के प्रति सजग होकर उनसे होने वाली समस्याओं से निपटने की तैयारी रखे।

[एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]