[कैप्टन आर विक्रम सिंह]। कश्मीर कभी महान शासक ललितादित्य और कनिष्क के कारण भी जाना जाता था, लेकिन इसी कश्मीर में सिकंदर ने 1393 से 1413 तक इतने कत्ल किए कि घाटी धर्मांतरित होकर लगभग हिंदूविहीन हो गई थी। यह भी कभी कश्मीर का वर्तमान था।

तलवार के घाट उतारे गए उन्हीं हिंदुओं के वशंज अभी कल तक निजामे मुस्तफा के नारे लगाते सुनाई देते थे। स्मृतिलोप का प्रभाव इतना भयंकर हो गया था कि वे अपने ही इतिहास के शत्रु हो गए थे। सूफियों का हिंदू परंपराओं से सामंजस्य इसलिए हुआ ताकि प्रताड़ित हिंदू समाज को धर्मांतरित कराने का रास्ता बनाया जा सके, लेकिन फिर असहाय हिंदू समाज पर तलवारों ने अपना काम किया।

1946 की अमृतसर संधि
कहने का तात्पर्य यह कि कश्मीर का इतिहास कोई 1946 की अमृतसर संधि से प्रारंभ नहीं हुआ जब अग्रेजों ने कश्मीर को महाराजा गुलाब सिंह को 75 लाख रुपये के राजस्व पर हस्तगत कर दिया था। उस संधि से कश्मीर और जम्मू एक राज्य के अधीन आए जिसमें फिर लद्दाख भी सम्मिलित हुआ। उसी समय से जम्मू और कश्मीर का स्वरूप सामने आया है।

लाल किले के प्राचीर से पीएम मोदी
जो अब अतीत है वह वर्तमान से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। 15 अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से उठाए गए इस प्रश्न का कोई जवाब विरोधी पक्ष के पास नहीं है कि जब आपका प्रचंड बहुमत था तो अनुच्छेद 370 को स्थायी क्यों नहीं कर दिया गया? अनुच्छेद 370 का हटाया जाना आजाद भारत के इतिहास की सबसे महान घटना है।

5 अगस्त जब इतिहास ने करवट ली
1971 की विजय को हम महानतम उपलब्धि मानते रहे, लेकिन वह विजय वार्ताओं की मेज पर अर्थहीन हो गई। संविधान का अनुच्छेद 370 जैसे हमारे भाग्य के साथ रफू कर दिया गया था। 5 अगस्त वह दिन है जब इतिहास ने करवट ली। इसके लिए यह देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ऋणी रहेगा। सदन में हुई चर्चाओं में आपत्तियां सामने आईं कि विपक्ष को विश्वास में लेकर निर्णय लिया जाना चाहिए था। आखिर अनुच्छेद 370 को संविधान में जोड़ते वक्त कौन सी बहस सुनी गई थी?

बाबा साहब आंबेडकर ने तो साफ मना कर दिया था। सरदार पटेल ने भी कहा था कि नेहरू इस जिद के लिए पछताएंगे। दरअसल यह धार्मिक अलगाववाद को प्रश्रय देने वाला अनुच्छेद बनकर रह गया था। यह एक कैंसर था जिसे देश रूपी शरीर से निकाल फेंकना जरूरी था।

नेहरू की जनमतसंग्रह की घोषणा
यह अनुच्छेद कश्मीर में नेहरू की जनमतसंग्रह की घोषणा का परिणाम था जिसका निहितार्थ यह था कि कश्मीर का भविष्य अनिर्णीत और अनिश्चित है। इस विभाजित मानसिकता का प्रभाव शेष जम्मू-कश्मीर पर तो नहीं, लेकिन कश्मीर घाटी पर बहुत बुरा पड़ा। जब कश्मीर को विवादित मानकर पाकिस्तान से समझौता वार्ताएं चल रही हों तब आम कश्मीरी के लिए अपने को भारत का नागरिक न मानने का आधार मिल जाना स्वाभाविक था।

अनिश्चितता का कोहरा पूरी तरह साफ
आखिर जब कश्मीर का भविष्य तय करने की वार्ताएं हों तब कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह कहने का क्या अर्थ था? दुर्भाग्य से इस पर कभी विचार ही नहीं किया गया। अनुच्छेद 370 हटा तो अनिश्चितता का कोहरा भी पूरी तरह साफ हो गया है। अनुच्छेद 370 था तो मजहबी अलगाववाद था। अब आतंकवाद स्वयं लक्ष्यविहीन हो चुका है। अब वार्ताएं होंगी, पर गुलाम कश्मीर, गिलगित-बाल्टिस्तान की वापसी के लिए होंगी। इसी के साथ पाकिस्तान द्वारा चीन को हस्तगत की गई 5200 किमी की शख्शगम घाटी को लेकर भी वार्ताएं होंगी। वास्तव में अब यह अहसास हो रहा है कि 1971 की विजय के बाद इंदिरा गांधी और 1984 के प्रचंड बहुमत के बाद राजीव गांधी भी तो इस अनुच्छेद को हटा सकते थे।

लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश 
हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि यह अनुच्छेद 370 ही था जिसके चलते कश्मीर की भारत से आजादी के पैरोकार मुखर होने लगे थे, लेकिन अब सब कुछ बदल गया है। चूंकि बदले हुए परिदृश्य में पाकिस्तान की ओर से कश्मीर घाटी को अशांत करने के हर संभव प्रयास हो सकते हैं इसलिए सतर्कता आवश्यक है। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश बनाना प्रतीक्षित था। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि स्थिति सामान्य होने पर जम्मू-कश्मीर बतौर पूर्ण राज्य बहाल हो सकता है।

कश्मीरी आतंकवाद का बुलबुला फूटा
यह वह मास्टरट्रोक है जिसकी कल्पना किसी को नहीं थी। इससे कश्मीरी आतंकवाद का बुलबुला फूट गया है। मात्र चार जिलों श्रीनगर, कुलगाम, पुलवामा, अनंतनाग के प्रायोजित आतंकवाद से कश्मीर की मात्र 35 लाख आबादी और 7.5 प्रतिशत क्षेत्रफल ही प्रभावित है। भविष्य में स्थिरता की दृष्टि से पश्चिम कश्मीर के जिलों कुपवाड़ा, उड़ी, पुंछ, राजौरी को मिलाकर 15 लाख की आाबादी के लिए लद्दाख की तरह केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

यह क्षेत्र गुलाम कश्मीर की सीमा पर स्थित है। इसका मिजाज घाटी से अलग है और यह इलाका पाकिस्तानपरस्त नहीं है, बल्कि यह कश्मीर घाटी को उसके पाकिस्तानी संपर्कों से काटता है। इस इलाके में रहने वाले गुज्जर बकरवालों को केंद्र के सहारे की जरूरत पड़ सकती है। जब भी कभी जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए तो पश्चिमी कश्मीर सीमा क्षेत्र को केंद्र शासित बनाए रखना जरूरी होगा। यह परिवर्तन घाटी को सीमाओं से दूर कर जम्मू कश्मीर राज्य को मध्य में ले आएगा।

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की घोषणा
उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी की ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ की घोषणा का निहितार्थ पूरी दुनिया के साथ पाकिस्तान ने भी समझा होगा। भारत अपनी सेनाओं को बड़ी भूमिका के लिए तैयार कर रहा है। जहां तक पाकिस्तान से हुए द्विपक्षीय समझौतों यथा शिमला समझौते और लाहौर घोषणा का प्रश्न है तो अब उनके निहितार्थ बदल जाएंगे।

पाकिस्तान कश्मीर की बाजी हार चुका 
पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का जो मुद्दा अब तक अनुच्छेद 370 के पीछे छिपा हुआ था, अब मुख्य मुद्दा बनकर सामने आ चुका है। कश्मीर घाटी वार्ता की मेज से हट चुकी है। जाहिर है पाकिस्तान कश्मीर की बाजी हार चुका है। पाकिस्तान का रणनीतिक महत्व कम होने से कश्मीर को लेकर दुनिया के देशों और विशेषकर चीन की सोच भी बदलेगी। वे आठ लाख लोग जो 1947 में पाकिस्तान से बतौर शरणार्थी आए थे और बेचारगी के माहौल में बिना नागरिकता के गुजर-बसर कर रहे थे उनके जीवन में भी बड़ा बदलाव आने वाला है।

कश्मीरी पंडितों की वापसी की उम्मीद
चुनावी परिसीमन जम्मू को मुख्य भूमिका में ले आएगा। धार्मिक उन्माद के खात्मे के बाद कश्मीर के 14 लाख शियाओं की आवाज भी सुनी जाएगी। हमने कश्मीरी पंडितों के वे लावारिस घर देखे हैं जहां से उन्हें जान बचाकर भागना पड़ा था। कश्मीर यात्रा के दौरान शियाओं के एक गांव में लोगों ने एक उजड़ी हुई बस्ती दिखाई थी। वहां के सात मकानों को गांव वालों ने अपने पंडित भाइयों की वापसी की उम्मीद में सुरक्षित रखा हुआ था। उम्मीद है कि ये घर भी अब आबाद होंगे।


(लेखक पूर्व सैनिक एवं पूर्व प्रशासक हैं)