भरत झुनझुनवाला। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार बीते ढाई वर्षो में भारत का पूंजी खाता ऋणात्मक रहा है। जितनी पूंजी हमें मिली है उससे ज्यादा पूंजी हमारी देश से बाहर गई है। यह पलायन लगातार हो रहा है। कोविड संक्रमण के महीनों में ऐसा अधिक हुआ है। वैसे पूंजी पलायन का कारण केवल कोविड ही नहीं है, क्योंकि एक तो यह संकट लगातार कायम है और केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। इसलिए कोविड ग्रस्त भारत से कोविड ग्रस्त अन्य देशों को पूंजी पलायन अन्य कारणों से ही हुआ है। यह कहने की जरूरत नहीं कि पूंजी पलायन से देश को नुकसान होता है। बिल्कुल वैसे जैसे जूलरी चोरी हो जाए तो परिवार गरीब हो जाता है। ऐसे गंभीर तथ्यों के बावजूद रिजर्व बैंक ने पूंजी के मुक्त आवागमन की जोरदार वकालत की है। इस विषय पर बैंक द्वारा गठित कमेटी ने पूंजी के मुक्त आवागमन के कई लाभ बताए हैं।

पहला यह कि देश में निवेश के लिए पूंजी की उपलब्धता बढ़ जाती है। यह सही नहीं, क्योंकि रिजर्व बैंक के ही आंकड़े बताते हैं कि हमारी पूंजी बाहर जा रही है। दूसरा लाभ यह बताया है कि इससे पूंजी की लागत कम हो जाती है। यदि हमें भारी मात्रा में विदेशी पूंजी उपलब्ध हो जाए तो उस पर अदा किया जाने वाला लाभांश कम हो जाता है। यह भी सही नहीं, क्योंकि पूंजी पलायन से पूंजी की उपलब्धता घटने के साथ ही लागत भी बढ़ रही है। अपने देश में निवेश कम होना और विकास दर का गिरना भी इस कथित लाभ की भ्रामकता को बताता है। तीसरा यह कि घरेलू निवेशकों के लिए अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में पहुंच बढ़ जाती है यानी बंबई स्टाक एक्सचेंज के साथ ही न्यूयार्क में भी निवेश का अवसर मिल जाता है। हालांकि यह मुख्य रूप से अमीरों के लिए ही लाभप्रद है और देश के लिए व्यापक रूप से नुकसानदेह, क्योंकि इससे देश में निवेश कम होता है और रोजगार के अवसर भी कम सृजित होते हैं। चौथा लाभ यह बताया है कि हमारे घरेलू निवेशक विविध प्रकार के निवेश कर सकते हैं। यह तथ्य भी सही है, लेकिन अपने देश में ही विविध प्रकार के निवेश के अवसर क्यों न बढ़ाए जाएं? इस प्रकार रिजर्व बैंक द्वारा पूंजी के मुक्त आवागमन के पक्ष में दिए गए तर्क अमीरों के लिए लाभप्रद हो सकते हैं, परंतु देश के लिए नहीं।

रिजर्व बैंक के दृष्टिकोण के विपरीत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा प्रकाशित एक पर्चे में कहा गया है कि विकासशील देशों को अपने आर्थिक अस्त्रों में पूंजी के पलायन पर सीधे रोक लगाने का अस्त्र बनाए रखना चाहिए। उन्होंने कोरिया और पेरू जैसे देशों में ऐसे प्रतिबंध लगाए जाने के लाभ बताए हैं। वर्तमान परिस्थिति में पूंजी का मुक्त आवागमन और अधिक हानिप्रद हो सकता है। कारण यह कि बीते समय में अपने यहां विदेशी पूंजी के आने का एक कारक अमेरिकी मौद्रिक नीति का नरम रहना है। इससे वहां ब्याज दरें शून्य से 0.25 प्रतिशत प्रति वर्ष रह गई हैं। निवेशकों के लिए यह लाभप्रद हो गया है कि वे अमेरिका में शून्य ब्याज दर पर ऋण लेकर भारत में निवेश करें, जहां उन्हें अधिक लाभ मिल रहा है। अब संकट यह है कि अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व द्वारा नरम मौद्रिक नीति से पीछे हटने के संकेत दिए जा रहे हैं। इससे अमेरिकी मुद्रा बाजार में मुद्रा का अभाव होगा और ब्याज दरें बढ़ेंगी। यदि ऐसा होता है तो निवेशकों के लिए भारत से पूंजी को वापस अमेरिका ले जाकर अमेरिका में निवेश करना लाभप्रद हो जाएगा। अमेरिका में ही उन्हें ऊंची ब्याज दरों का लाभ मिलेगा और भारत आकर निवेश करना जरूरी नहीं रह जाएगा। इसलिए समय रहते रिजर्व बैंक को अपनी नीति पर पुनर्विचार करना चाहिए और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के द्वारा सुझाई गई पूंजी के पलायन पर सीधे रोक लगाने की नीति पर विचार करना चाहिए।

रिजर्व बैंक ने यह भी कहा है कि पूंजी के आवागमन को छूट देने के साथ-साथ वित्तीय घाटे पर नियंत्रण जरूरी है। वर्तमान में देश का वित्तीय घाटा तेजी से बढ़ रहा है। यह वृद्धि कोविड संकट के कारण होने से इसके विपरीत प्रभाव में कोई अंतर नहीं पड़ेगा। इसलिए रिजर्व बैंक अपनी ही बात के विरुद्ध आचरण कर रहा है। एक तरफ रिजर्व बैंक कह रहा है कि पहले वित्तीय घाटे पर नियंत्रण हो और उसके बाद पूंजी के आवागमन को छूट दी जाए, लेकिन दूसरी तरफ वित्तीय घाटा बढ़ने के साथ पूंजी आवागमन की छूट को भी बढ़ा रहा है। ज्ञात हो कि रिजर्व बैंक ने उदार रेमिटेंस योजना के अंतर्गत भारतीयों को अपनी पूंजी को विदेश में भेजकर निवेश करने की छूट हाल में ही बढ़ाई है।

जर्नल आफ इंडियन एसोसिएशन आफ सोशल साइंस इंस्टीट्यूशंस पत्रिका में कहा गया है कि भारत से पूंजी का पलायन देश से होने वाले निर्यात को कम मूल्य पर दर्शा कर और आयात को अधिक मूल्य पर दिखा कर बड़ी मात्र में हो रहा है। इस पलायन का कारण भारत में भ्रष्टाचार, बाहरी ऋण का बोझ, पूंजी खाते में घाटा और मुक्त व्यापार है। ऊपर से अपने यहां वित्तीय घाटा तेजी से बढ़ रहा है। इन समस्याओं के रहने से हमारी पूंजी का पलायन होगा ही, लेकिन रिजर्व बैंक इन समस्याओं को दूर करने की वकालत करने के स्थान पर पूंजी के पलायन को बढ़ा रहा है।

रिजर्व बैंक को सोचना चाहिए कि आखिर अपने ही देश के निवेशकों को भारत में निवेश करना रास क्यों नहीं आ रहा है? इसका पहला कारण भ्रष्टाचार और दूसरा सामाजिक वैमनस्य दिखता है। इन कारणों को दूर किए बिना रिजर्व बैंक भारतीय निवेशकों को अपनी पूंजी को बाहर भेजना आसान बना रहा है और भारत सरकार आयात कर की दरों में कटौती कर रही है। यही कारण है कि अपने देश से लगातार पूंजी का पलायन हो रहा है और हमारी आर्थिक विकास दर गिर रही है। अत: हमें भ्रष्टाचार, खुला व्यापार, वित्तीय घाटा और सामाजिक वैमनस्य जैसे पूंजी पलायन के मूल कारणों को दूर करना चाहिए। यदि हम इन समस्याओं को दूर न करें तो पूंजी के मुक्त आवागमन पर रोक लगाकर अपनी पूंजी को अपने देश में निवेशित रहने के लिए प्रेरित करना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा विकासशील देशों को पूंजी के पलायन पर सीधे रोक लगाने की वकालत पर ध्यान देना चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं)