नई दिल्ली [एनके सिंह]। चंद दिनों बाद 26 मई को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने शासन के चार साल पूरा करेंगे तब तक कर्नाटक विधानसभा के चुनाव परिणाम आ चुके होंगे। प्रधानमंत्री के पास अगला एक साल काम करने से ज्यादा काम बताकर जनता को प्रभावित करने का होगा और वह भी एक ऐसे समय में जब विपक्षी एकता की रूप-रेखा राजनीतिक क्षितिज में उभरती हुई दिखने लगी है। शायद यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों से रिपोर्ट मांगी है कि परोक्ष या प्रत्यक्ष तौर पर पिछले चार साल में कितने रोजगार पैदा हुए और सरकारी योजनाओं ने सकल घरेलू उत्पाद में क्या योगदान किया? दरअसल मोदी जानते हैं कि विपक्ष के साथ-साथ हाल में कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं और खासकर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने आंकड़ों के हवाले से भारत में बेरोजगारी की स्थिति पर चिंता व्यक्त की है। दो माह पहले पीएमओ की एक आंतरिक रिपोर्ट में तमाम अच्छे सरकारी कार्यक्रमों के बावजूद क्रियान्वयन के स्तर पर अफसरशाही की उदासीनता की बात कही गई थी।

प्रधानमंत्री ने गत 21 अप्रैल को लोक सेवा दिवस के अवसर पर अफसरों को संबोधित करते हुए कहा था कि सिस्टम बदलना होगा, क्योंकि एक फाइल 32 जगह घूमने के बाद भी मोक्ष नहीं ले पा रही है। मोदी सरकार की नीतियों की दो बानगी देखें। आजाद भारत में पहली बार कर ढांचे में सुधार के लिए जीएसटी लाया गया। इसके पहले कालाधन खत्म करने के लिए नोटबंदी भी एक बड़ा फैसला थी। यह हाईस्कूल का बच्चा भी समझ सकता है कि इन दोनों फैसलों से शुरुआत में जनता को तकलीफ होनी थी। इन फैसलों की घोषणा के पहले सरकार को भी यह डर रहा होगा कि वह जनाक्रोश का भागीदार बन सकती है, लेकिन उद्देश्य सार्थक था इसलिए ऐसा नहीं हुआ। इसके बावजूद यह एक तथ्य है कि जीएसटी और नोटबंदी ने व्यापार पर असर डालने के साथ रोजगार के अवसरों पर चोट की। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि इन दोनों फैसलों पर सही तरह अमल नहीं हो सका। यह भी साफ है कि जिस नौकरशाही को इन फैसलों पर अमल की जिम्मेदारी दी गई उसने अपना काम सही तरह नहीं किया।

मोदी सरकार की एक अन्य महत्वाकांक्षी योजना प्रधानमंत्री आवास योजना का जायजा लें तो पाएंगे कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने कुल 74.48 लाख आवास बनाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन विगत 31 मार्च तक का लेखा-जोखा कहता है कि मात्र 33 लाख ही घर बन सके हैं। मोदी सरकार की एक अन्य महत्वाकांक्षी योजना गंगा को साफ करने की है, लेकिन पिछले दिनों जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी ने खुद माना कि अगले साल मार्च तक यानी एक तरह से मोदी सरकार का कार्यकाल खत्म होने की नौबत आने तक गंगा के 70-80 फीसद तक ही साफ होने की उम्मीद है। शिक्षा में सुधार भी मोदी सरकार का एक महत्वाकांक्षी एजेंडा था, लेकिन अभी तक नई शिक्षा नीति ही नहीं आ सकी है।

इस बार के बजट में मोदी सरकार ने दो नई योजनाओं की घोषणा की है। इनमें से एक दस करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक के स्वास्थ्य बीमा से संबंधित है और दूसरी किसानों को उनकी कृषि उपज की लागत का डेढ़ गुना पैसा देने को लेकर है। अगर ये योजनाएं चुनावी साल में सही तरह अमल में आ सकें तो मोदी 2014 से ज्यादा मजबूत स्थिति में हो सकते हैं, पर इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि अभी यह स्पष्ट होना शेष है कि किस फार्मूले के तहत कृषि उपज की लागत तय की जाएगी? इसी तरह फिलहाल यह भी नहीं पता कि दस करोड़ गरीब परिवारों के लिए घोषित की गई स्वास्थ्य बीमा योजना किस प्रकार अमल में लाई जाएगी। अभी हाल में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक साक्षात्कार में कहा कि जनता विकास चाहती है और भाजपा विकास करना जानती है। जिस दिन भाजपा अध्यक्ष का यह साक्षात्कार प्रकाशित हुआ उसी दिन एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें भाजपा के एक सांसद किसी को आदेश देते दिखाई दे रहे हैं कि सभी गाड़ियां रोक दें। मुझे दस मिनट में वैशाली एक्सप्रेस यहां चाहिए। वीडियो वायरल होने के कुछ घंटे बाद जब एक मीडियाकर्मी ने उनसे पूछा तो उनका जवाब था मैं अपने एक कार्यकर्ता से बात कर रहा था न कि किसी रेल अधिकारी से। बचाव में दिया गया जवाब और अधिक चिंताजनक है। क्या कार्यकर्ता इस तरह ट्रेन रोक सकता है?

उसी दिन एक खबर यह भी थी कि भाजपा के एक विधायक ने अपनी जनसभा में बाल विवाह फिर से शुरू करने की वकालत इस आधार पर की कि ऐसा करने से लव जेहाद थम जाएगा। विधायक ने बाल विवाह निरोधक कानून को भी एक बीमारी बताया। ध्यान रहे कि 1929 में जब ब्रितानी हुकूमत ने यह कानून बनाया था तो लेजिस्लेटिव एसेंबली के कुछ सदस्यों ने उसका विरोध यह कहकर किया था कि अगर लड़की दस साल से अधिक की हो जाती है तो फिर कोई उससे शादी नहीं करता। क्या इससे खराब बात और कोई हो सकती है कि कई दशकों बाद एक विधायक न केवल ऐसा सोच रहे हैं, बल्कि उसे खुले आम व्यक्त भी कर रहे हैं। ऐसे विधायक और सांसद अपवाद नहीं। अगर भाजपा के विधायक और सांसद थोड़ी सी भी लगन केंद्र सरकार के कार्यक्रमों के अमल को लेकर दिखाएं तो मोदी शासन एक आदर्श शासन बन जाए, लेकिन शायद उन्हें इसकी जरूरत ही नहीं महसूस हो रही है।

इसमें संदेह है कि भाजपा के सभी सांसद और विधायक केंद्रीय योजनाओं अथवा जनकल्याणकारी कार्यक्रमों से भली तरह परिचित हैं और वे उनके बारे में जनता को बताते भी हैं। सबसे खराब काम वे भाजपा नेता कर रहे हैं जो बेतुके बयान देते रहते हैं। बेतुके बयान और किसी का नुकसान करते हों या नहीं, मोदी सरकार की छवि को जरूर नुकसान पहुंचाते हैं। इतना ही नहीं ऐसे बयान विरोधी दलों के नेताओं को मोदी सरकार पर हमला करने का अवसर प्रदान करते हैं। हालांकि प्रधानमंत्री यह कह चुके हैं कि पार्टी नेता सोच-समझ कर बोलें, लेकिन बयान बहादुर नेताओं पर कोई खास असर पड़ता नहीं दिख रहा है। यदि मोदी को 2014 वाली जन-स्वीकार्यता फिर से हासिल करनी है तो उन्हें अपनी नीतियों पर सही तरह से अमल के साथ उग्र हिंदूवाद के पैरोकारों पर सख्ती से काबू भी पाना होगा। लव जिहाद और जिन्ना की फोटो को मसला बनाने वाले नेताओं ने कुल मिलाकर भाजपा की छवि पर बुरा असर डालने का ही काम किया है। ऐस नेता किसी भी दल के हितैषी नहीं हो सकते जो हर समस्या के लिए किसी समुदाय विशेष को दोष देते रहते हों। एक ओर जहां ऐसे बेकाबू तत्वों पर लगाम लगनी चाहिए वहीं दूसरी ओेर स्वास्थ्य बीमा योजना और किसानों की आय बढ़ने वाली योजनाओं पर गंभीरता से काम करना होगा। इसी के साथ भाजपा विधायकों और सांसदों को जन- धन, उज्ज्वला सरीखी योजनाओं का प्रचार भी करना चाहिए। ऐसे किसी एजेंडे पर काम जितना जल्दी शुरू हो, उतना ही बेहतर।

(लेखक राजनीतिक विश्लेषक एवं स्तंभकार हैं)