कृष्ण स्वरूप पांडेय। Priority To Population Control सरकार की ओर से विकास की अनेक योजनाएं बनाए जाने के बावजूद आज हमारा देश अन्य विकसित देशों की तरह विकास के पथ पर अग्रसर होता हुआ नहीं प्रतीत हो रहा है। रोजगार और सामाजिक सुरक्षा आदि की तमाम योजनाएं बनाए जाने के बावजूद तेजी से बढ़ती हमारी जनसंख्या सभी प्रयासों पर पानी फेर देती है। सरकार और समाज मिलकर लोगों की सुविधा के लिए विविध प्रकार के संसाधन जुटाते हैं, लेकिन आबादी के निरंतर बढ़ते बोझ के कारण समस्याएं वहीं की वहीं रह जाती है। यानी तमाम प्रयासों के बावजूद समस्या का समग्र निदान नहीं हो पाता है।

समुचित संसाधन के अभाव में ऐसी जनसंख्या कुपोषण समेत अन्य समस्याओं की चपेट में आकर न केवल अपना जीवन निर्थक बना लेती है, बल्कि देश का सामाजिक ताना-बाना भी तहस-नहस कर डालती है। देश की सीमाओं से पड़ोसी देशों से हो रही घुसपैठ ने भी देश पर करोड़ों जनसंख्या का ऐसा बोझ लादा है, जिसकी चुनौतियों के बीच विकास का लक्ष्य प्राप्त करना कतई सरल नहीं है। ऐसे में धरोहर के रूप में मिली जीवन शैली, संस्कृति, पर्यावरण, आध्यात्मिक विरासत, इतिहास, भूगोल, वन्य जीवन आदि बुरी तरह प्रभावित हो जाते हैं, जिनको सुधारने के लिए सरकारों को अंतरराष्ट्रीय सहायता व कर्ज आदि के लिए दूसरों के समक्ष हाथ फैलाना पड़ता है। कई बार देश को युद्ध, दंगे, भुखमरी, गरीबी, भ्रष्टाचार व रोग आदि का सामना भी करना पड़ता है।

भयावहता की राह पर अग्रसर : भारत की स्थिति यदि भयावह नहीं है, तो भी हम चल उसी मार्ग पर रहे हैं, जहां महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के खतरों से इन्कार नहीं किया जा सकता है। देश में होने वाले सुधार, आíथक अवसर, उत्पादन, रोजगार, जीवन स्तर में सुधार के प्रयास, पर्यावरण संरक्षण जैसे कार्यो में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाने के लिए हमारी निरंतर बढ़ती आबादी ही सर्वाधिक जिम्मेदार है। महामारी के दौर में हमें इन सब पर विचार करना चाहिए।

आपातकाल के दौर में वर्ष 1975 में नसबंदी आदि के बाद जनसंख्या को संतुलित रखने की दिशा में हमारे प्रयास कई राजनीतिक-सामाजिक कारणों से ठहर गए। सरकारों को ज्ञात रहा है कि जनसंख्या वृद्धि जरूरत से अधिक हो रही है, परंतु उन्होंने उसे नियंत्रित करने का कोई ऐसा प्रयास नहीं किया, जिसका अच्छा संदेश जनता को गया हो या सकारात्मक परिणाम मिले हों। सरकारें जनसंख्या नियंत्रण के संबंध में कोई ठोस नीति बनाने से बचती रही हैं और इस कार्य को आग से खेलना मान अपना कार्यकाल पूरा करती रहीं। यदि ऐसा न होता तो वेंकट चलैया आयोग के जनसंख्या नियंत्रण हेतु कानून बनाने की सलाह को रद्दी की टोकरी में नहीं डाला गया होता। जनंसख्या के मुद्दे से बचने और सरकारों के भय का आलम यह रहा कि 45 वर्षो तक देश में एक जनसंख्या घड़ी तक नहीं लगाई गई। संसद, विधानसभाओं, सरकारी संस्थाओं में इस पर चर्चा, सेमिनार भी आयोजित नहीं हुए, जबकि उन्हें भलीभांति पता है कि यह एक विकराल समस्या का रूप धर चुकी है।

प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से पैदा विकट समस्या : महानगरों में लाखों परिवार फुटपाथ या फिर सार्वजनिक जगहों पर अपना जीवन गुजारते हैं। सभी सरकारें जानती रही हैं कि हम मंगल मिशन को भले ही पूरा करने में जुटे हों, पर साक्षरता, कुपोषण और पर्यावरण संरक्षण आदि मामलों में हम सैकड़ों देशों से पीछे हैं। अबाधित जनसंख्या वृद्धि का ही परिणाम है कि विश्व की करीब दो प्रतिशत कृषि भूमि वाले भारत में स्वाधीनता के 73 वर्षो में हमने लाखों तालाब खो दिए, हमारा वन क्षेत्र घट गया, हिमनद सिकुड़ रहे, कंक्रीट निर्माण बढ़ रहा, भूगर्भ जल दोहन में हम विश्व में पहले स्थान पर हैं। हमारी सड़कें आज गलियों में बदल रही हैं, हाईवे भयंकर जाम के शिकार हो रहे हैं, पार्क और मैदान आदि सिमट रहे हैं या अवैध कब्जों से पट रहे हैं। महानगर ही नहीं, कस्बों तक में ट्रैफिक रेंग रहा है। कितना ही हम आकाश की ओर भवनों को ऊंचा कर लें, परंतु सड़क, हवा, धूप आदि की आवश्यकता हमें बनी ही रहेगी। जनसंख्या वृद्धि का ही कुपरिणाम है कि फुटपाथ और पार्को व मैदानों आदि को उजाड़ कर सरकार वहां दुकानें बनाने की योजना दे रही है। पैदल चलने वालों के लिए सुरक्षित मार्ग तक पर अतिक्रमण हो चुका है। जिन्हें कानून बनाने के लिए लिए चुना जाता रहा है, वे सब जनसंख्या नियंत्रण पर मौन व्रत भले धारण की अवस्था में रहें, पर देश की आम जनता इस विषय को सब समस्याओं की वैसे ही जननी मानती है, जैसे डायबिटीज को सभी रोगों की माता समझा जाता है। ऐसे में जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार की सकारात्मक पहल की आवश्यकता है।

बेहतर होगा कि सरकार इस संबंध में कठोर कानून बनाने के बारे में सोचना शुरू कर दे। इसके लिए पुरस्कार प्रोत्साहन की योजना भी बनाए, जिसके तहत आबादी को नियंत्रण में रखने वाली आम जनता को सरकार की ओर से अनेक प्रकार का प्रोत्साहन दिया जाए। कम से कम इतना तो सरकार कर ही सकती है कि इस अभियान में योगदान देने वाले जागरूक नागरिकों को प्रोत्साहन के तौर पर एक तय रकम का जीवन बीमा करवाए। इस योजना से देश में न केवल अच्छा संदेश जाएगा, बल्कि लोगों को छोटे परिवार और जनसंख्या नियंत्रण की प्रेरणा भी मिलेगी।

यदि सरकार ऐसी कोई योजना बनाती है, तो उसकी गिनती सर्वाधिक लोकप्रिय योजनाओं में हो सकती है। इससे देश के जन-जन में उत्साह और जागरूकता का संचार होगा। साथ ही जनसंख्या नियंत्रण के लिए बनाई गई योजना के प्रतिकूल व्यवहार करने की दिशा में लोगों को संबंधित कानूनों के जरिये दंडित किया जाए। यह समय की मांग के साथ राष्ट्र को तमाम वर्तमान और भावी संकटों से बचाने का उपाय भी है।

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