सद्गुरु शरण। कोरोना वायरस पिछले नौ महीने से पूरी दुनिया में लोगों की जिंदगी से खेल रहा है, पर दाद देनी होगी मध्य प्रदेश की सियासत के ‘साहस’ की, जो कोरोना की लहरों के साथ मजे ले-लेकर खेल रही है। याद करिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खतरे के प्रति सबको आगाह करने के लिए क्या कुछ नहीं किया। तालियां बजवाईं, थालियां बजवाईं, मोमबत्तियां जलवाईं, खुद नाक-मुंह पर अंगोछा बांधकर दिखाया, अक्सर टीवी पर आकर नसीहतें दीं, पर गजब है, मध्य प्रदेश की सियासत। यहां के एक मंत्रीजी ने तो ऑन कैमरा कह दिया कि वह मास्क नहीं लगाते। वैसे राज्य के अधिकतर मंत्री मास्क लगाना पसंद नहीं करते। बात सिर्फ मंत्रियों की नहीं, यहां मानो कुएं में ही भांग घुली है।

कह सकते हैं कि भाजपा नेता सत्ता के नशे में कोरोना को नजरअंदाज कर रहे, पर कांग्रेस नेताओं को क्या हुआ? उनके पास उनकी जिंदगी के अलावा क्या बचा है? कमलनाथ से लेकर दिग्विजय सिंह तक अक्सर भीड़भाड़ में बिना मास्क दिख जाते हैं। विधानसभा उपचुनाव में तो नेताओं ने हद कर दी थी। कोर्ट की रोक के बावजूद सभी दलों के नेताओं ने न सिर्फ खुद कोरोना के प्रति बेपरवाही दिखाई, बल्कि शक्ति प्रदर्शन करने के लिए तमाम रैलियां करके प्रदेशवासियों की भी जान खतरे में डाली।

खैर उपचुनाव भी निपट गया, पर सियासत और कोराना का खेल जारी है। कागजों पर गाइडलाइनें बनी हुई हैं, पर इनके अमल पर सख्ती करके सरकार अपने मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती। प्रदेश में जल्द ही निकाय चुनाव होने वाले हैं। कोरोना को लेकर ज्यादा रोक-टोक हुई तो मतदाताओं के नाराज होने का खतरा है इसलिए प्रशासन को नरम रहने का इशारा कर दिया गया है। कोरोना शुरू से ही मध्य प्रदेश के प्रति आकर्षति रहा है। मार्च-अप्रैल में इसकी पहली लहर ही इंदौर और भोपाल पहुंच गई थी। सितंबर में दूसरी लहर ने भी प्रदेश में जमकर कहर बरपाया और अब तीसरी लहर भी अपना रौद्र रूप दिखा रही है। अस्पतालों में बेड नहीं हैं, डॉक्टर-नर्से नहीं हैं, ऑक्सीजन नहीं है। इसके बावजूद लोग शारीरिक दूरी और मास्क के अनुशासन में बंधने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनके सामने न तो कोई प्रेरक उदाहरण है और न किसी जुर्माने का भय। जिस सत्ता-सियासत पर कोरोना को लगाम लगाने की जिम्मेदारी है, उसने ही वायरस को खेलने के लिए खुला मैदान दे दिया है। कोरोना को मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई। वह पूरे मध्य प्रदेश में धमाचौकड़ी मचाए हुए है।

दरअसल सियासत की आंख सिर्फ सत्ता देखने की अभ्यस्त होती है। सत्ता की कुंजी मतदाता के हाथ में होती है इसलिए किसी भी कीमत पर मतदाता खुश रहना चाहिए, यहां तक कि खुद मतदाता की जान की कीमत पर भी। मध्य प्रदेश में ऐसा ही चल रहा है। न सरकार लोगों पर सख्ती कर रही है और न विपक्ष इसकी मांग कर रहा। लोग दूसरे राज्यों में मास्क, शारीरिक दूरी और अन्य एहतियातों के लिए आमजन पर बरती जा रही सख्ती की खबरें पढ़कर अपनी सरकार की सराहना कर रहे हैं कि वह कितनी रहमदिल है। सियासत अपना काम कर रही है, पर आम आदमी को अपनी चिंता करनी चाहिए। मध्य प्रदेश देश के उन राज्यों में शामिल है जहां कोरोना के कारण सर्वाधिक नुकसान हुआ है। वैक्सीन कब आएगी, कैसे मिलेगी, इन तमाम सवालों के जवाब अभी किसी के पास नहीं हैं। इसलिए आवश्यक है कि लोग अपनी चिंता खुद करें और उपलब्ध संसाधनों से अपना जीवन सुरक्षित रखें। मोदी जी की नसीहत याद है ना? जान है तो जहान है।

मेरे गुंडे-तेरे गुंडे : पिछले महीने 28 विधानसभा सीटों के उपचुनाव के बाद सशक्त हुई शिवराज सिंह सरकार पूरे प्रदेश में एक सराहनीय अभियान चला रही है। प्रशासन की जेसीबी मशीनें गुंडों की काली कमाई से निíमत अवैध इमारतों को ध्वस्त कर रही हैं। इस पर आम आदमी तो बहुत खुश है, पर विपक्षी नेताओं के पेट में मरोड़ उठ रही है। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री के इशारे पर प्रशासन बदले की भावना से कांग्रेस समर्थकों को निशाना बना रहा है, जबकि भाजपा के करीबी वास्तविक गुंडों पर हाथ नहीं डाला जा रहा। लोग खासकर भाजपाई कांग्रेसियों की इस तिलमिलाहट का खूब मजा ले रहे हैं।

दरअसल कुछ महीने पहले जब कांग्रेस की सरकार थी, उस वक्त भी गुंडों के भवनों पर इसी तरह जेसीबी गरजी थी और तमाम भवन ध्वस्त किए गए थे। तब भाजपाइयों को ऐसी ही पीड़ा हुई थी। उस वक्त आरोप लग रहा था कि कमलनाथ सरकार भाजपा समर्थकों को निशाना बना रही है। सिर्फ समय और सत्ता बदली है। वही प्रशासन, वही जेसीबी मशीनें और वैसे ही गुंडों की काली कमाई से निíमत भवन। बदले की भावना से ही सही, यदि गुंडों का मान-मर्दन हो रहा है, उनकी आíथक रीढ़ तोड़ी जा रही है, उनका आतंक मिट्टी में मिलाया जा रहा है तो हर्ज क्या है? आम आदमी खुश है। कमलनाथ भाजपा के गुंडों को ठिकाने लगाएं और शिवराज कांग्रेस के गुंडों को। इससे गुंडों को भी समझ में आ रहा होगा कि वे किसी भी सरकार में सुरक्षित नहीं हैं। सियासत की ऐसी नकारात्मक हरकतें अंतत: समाज के लिए सकारात्मक साबित होती हैं।

[संपादक, नई दुनिया, मध्य प्रदेश]