रमेश कुमार दुबे। वोट बैंक की राजनीति की भांति देश में मुफ्तखोरी की राजनीति का आगाज हो चुका है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अब इसका दायरा बढ़ाने में जुट गए हैं। पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और गोवा में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए वह 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा कर रहे हैं। इसी के अनुसरण में समाजवादी पार्टी ने भी औपचारिक तौर पर 300 यूनिट मुफ्त बिजली देने का एलान कर दिया। स्पष्ट है कि अब मुफ्त बिजली सत्ता हासिल करने की सीढ़ी बन चुकी है। ऐसे में आने वाले समय में मुफ्त बिजली की राजनीति का दायरा बढ़ जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। यह स्थिति तब है जब विशेषज्ञ पहले से चेतावनी दे रहे हैं कि मुफ्त बिजली की राजनीति पर्यावरण के साथ-साथ राज्यों की आर्थिक सेहत के लिए भी नुकसानदेह है। यहां पंजाब का उदाहरण प्रासंगिक है। 1997 में पंजाब सरकार ने किसानों के लिए बिजली सब्सिडी शुरू की थी, जिसका दबाव राज्य के खजाने के साथ-साथ पर्यावरण पर भी पड़ा।

वर्ष 1997 में पंजाब सरकार ने 693 करोड़ रुपये की बिजली सब्सिडी दी थी, जो कि वित्त वर्ष 2016-17 में 5,600 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2021-22 में बढ़कर 10,668 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। मुफ्त बिजली ने अंधाधुंध भूजल दोहन को बढ़ावा दिया। पहले किसान पांच हार्सपावर की मोटर इस्तेमाल करते थे, लेकिन भूजल स्तर के नीचे जाने के कारण अब किसान 25 से 35 हार्सपावर की मोटर इस्तेमाल करने लगे हैं। इससे जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। पंजाब जैसे राज्य में धान की खेती को बढ़ावा देने में मुफ्त बिजली की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी का नतीजा है कि राज्य के 138 ब्लाक में से 109 ब्लाक अतिदोहित (डार्क जोन) में तब्दील हो चुके हैं।

बिजली सब्सिडी का सबसे बड़ा खामियाजा भूजल स्तर के नीचे जाने के रूप में सामने आया। गिरते भूजल स्तर को रोकने के लिए सरकार ने 2009 में कानून बनाया, लेकिन वोट बैंक की राजनीति के चलते इस पर सख्ती से अमल नहीं किया जा सका। जो भूजल स्तर पहले 25-30 फीट पर था वह अब 300 फीट तक पहुंच गया है। इससे न सिर्फ खेती की लागत बढ़ रही है, बल्कि भूजल प्रदूषण को भी बढ़ावा मिल रहा है।

उत्तर प्रदेश के संदर्भ में देखें तो योगी सरकार ने विद्युत आपूर्ति में व्यापक सुधार किया है। गांवों में 16-18 घंटे बिजली आपूर्ति की जा रही है। अब प्रदेश सरकार गांवों और शहरों में 24 घंटे निर्बाध बिजली आपूर्ति की योजना पर काम कर रही है। इस समय प्रदेश के किसानों और गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले उपभोक्ताओं को सस्ती बिजली देने के लिए सरकार 11,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती है। प्रदेश में घरेलू उपभोक्ताओं की संख्या 2.75 करोड़ है जिसमें से 2.43 करोड़ उपभोक्ता ऐसे हैं, जो 300 यूनिट तक बिजली की खपत करते हैं। यदि इनको मुफ्त में बिजली दी जाए तो यह सब्सिडी बढ़कर 32,186 करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। तब प्रदेश सरकार को 21,186 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सब्सिडी देनी पड़ेगी। इतनी भारी-भरकम सब्सिडी देने का असर विकास योजनाओं पर पड़ेगा।

दिल्ली में मुफ्त बिजली का फामरूला इसलिए सफल रहा, क्योंकि यहां के अधिकतर उपभोक्ताओं का लोड बहुत कम है। इससे राज्य सरकार पर भारी वित्तीय बोझ नहीं पड़ता है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश की स्थिति इसकी ठीक उलटी है। यहां औसत राजस्व वसूली 6.05 रुपये प्रति यूनिट है तो औसत लागत 7.55 रुपये प्रति यूनिट। स्पष्ट है लागत और वसूली में लगभग 1.50 रुपये प्रति यूनिट का अंतर है। फिर प्रदेश में संचरण-वितरण हानि 27 प्रतिशत है, जिसे अचानक ठीक नहीं किया जा सकता।

एक ऐसे दौर में जब मोदी सरकार हर घर को सातों दिन-चौबीसों घंटे रोशन करने की कवायद में जुटी है उस दौर में मुफ्त बिजली की राजनीति बिजली सुधार प्रक्रिया को पटरी से उतारने का काम करेगी। मोदी सरकार भले ही हर गांव तक बिजली पहुंचाने में कामयाब रही हो, लेकिन 2017 में चार करोड़ घर ऐसे थे जो अंधेरे में डूबे थे। इसके लिए 25 सितंबर, 2017 को प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना (सौभाग्य) शुरू की गई। इसके तहत देश भर में प्रीपेड बिजली मीटर लगाए जा रहे हैं। जिस प्रकार प्रीपेड मोबाइल से देश में मोबाइल क्रांति आई उसी प्रकार प्रीपेड बिजली मीटर देश में बिजली क्रांति लाएंगे। सौभाग्य योजना के चार साल पूरे होने पर अगस्त 2021 तक 2.83 करोड़ घरों तक बिजली पहुंचाई जा चुकी है। इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी ने बिजली क्षेत्र के इतिहास में सौभाग्य योजना को दुनिया की सबसे तेज क्रियान्वयन वाली योजना करार दिया है। दरअसल मोदी सरकार गांव-गांव तक आर्थिक गतिविधि शुरू करने की दूरगामी योजना पर काम कर रही है, जिसमें चौबीसों घंटे बिजली की अहम भूमिका रहेगी।

भारतीय राजनीति की विडंबना है कि यहां अधिकतर चुनावी वायदों में पर्यावरण, वित्तीय अनुशासन और आने वाले समय पर पड़ने वाले नकारात्मक असर आदि का ध्यान नहीं दिया जाता। मुफ्त बिजली की राजनीति करने वाले नेताओं को सचमुच जनता की फिक्र होती तो वे सौर ऊर्जा का वादा करते। इससे न सिर्फ पर्यावरण स्वच्छ होगा, बल्कि संचरण-वितरण हानि भी नहीं होगी। समग्रत: मुफ्त बिजली के चुनावी वादे को जनता का कितना समर्थन मिलता है, यह तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन इतना तो तय है कि मुफ्तखोरी की राजनीति देश को एक बार फिर लालटेन युग में धकेलने का काम करेगी।

(लेखक केंद्रीय सचिवालय सेवा में अधिकारी हैं)