अंशुमाली रस्तोगी। दुनिया के खत्म होने की भविष्यवाणियां जाने कब से सुन रहा हूं, लेकिन दुनिया है कि खत्म होती नहीं, बल्कि और बढ़ती ही जाती है। इस दुनिया से अलग एक ‘नई दुनिया’ बसाने की बातें भी यदा-कदा सामने आती रहती हैं। कोई मंगल पर जाकर बसना चाहता है तो कोई चांद पर। कोई यात्रओं में ही दुनिया को जी लेना चाहता है। यहां जितनी तरह के लोग हैं, उतनी तरह की दुनिया है उनके लिए। हर किसी के पास अपनी दुनिया का एक अलग फलसफा है। वैसे इस दुनिया का खत्म होना इतना आसान नहीं।

यह सदियों से कायम है, सदियों तक कायम रहेगी। सोचिए जरा, यह ही अगर खत्म हो गई तो सूरज, चांद, आकाश, तारे आदि चहल-कदमी के लिए कहां निकला करेंगे। मनुष्य के अस्तित्व को मिटाना इतना आसान नहीं। मनुष्य बड़ा ही चालाक प्राणी है। अपने जीने के तईं कुछ न कुछ जुगाड़ फिट कर ही लेगा। जैसे-आजकल कोरोना का तोड़ निकालने के लिए विश्व भर के वैज्ञानिक जुटे हुए हैं।

एक दिन यह खबर भी आ जाएगी कि कोरोना का वैक्सीन खोज लिया गया है और यह भी किसी और नहीं, इसी दुनिया में संभव होगा। बाकी दुनिया से जुड़ी परेशानियां और बीमारियां यों ही चलती रहेंगी। ये न होंगी तो जीने में भी आनंद नहीं आएगा। एक जैसा जीवन बोरियत लगने लगेगा। यों, जीवन बोरिंग हमें कब नहीं लगता। पेट में रोटी और गले में सोने की चेन पड़ी होने के बाद भी बहुतों को अपना जीवन बेकार लगता है। वहीं पेट में रोटी न हो तो भी कुछ को अपना जीवन स्वर्ग-सा लगता है।

दुनिया और जीवन को देखने-परखने के सबके अपने-अपने दृष्टिकोण हैं। दुनिया में जितने दर्द हैं, उतनी ही खुशियां भी। हां, यह बात जरूर है कि दुनिया पहले से और अधिक कपटी और कुटिल हो गई है। लोग आत्ममुग्ध और आत्मकेंद्रित हो गए हैं।तो भूल जाइए कि यह दुनिया कभी खत्म होगी भी! जिन लोगों को ऐसा लगता है कि फलां दिन दुनिया खत्म हो जाएगी, उन्हें अपनी विद्या पर तरस खाना चाहिए। खुद को और दुनिया को बरगलाने से बचना चाहिए। किसी के कहने-सुनने पर ही दुनिया अगर खत्म हो रही होती तो यह कब की हो गई होती, पर ऐसा कुछ न हुआ, न होगा। जो कर रहे हैं, करते रहें।

दुनिया कहीं नहीं जा रही। यहीं है। यहीं रहेगी। अंधविश्वास की हदें वहां समाप्त हो जाती हैं, जहां से विज्ञान शुरू होता है। विज्ञान ऐसी किसी अवधारणा में यकीन नहीं रखता, जहां अज्ञानता और अविश्वास हो। विज्ञान की निगाह और स्थापनाओं में यह दुनिया कल भी थी, आज भी है और आगे भी रहेगी। दुनिया बहुमूल्य है। दुनिया बहुत खूबसूरत है। दुनिया के अपने रंग हैं, ढंग हैं। इसे जितना जी मिले जी लीजिए। शिकायत बेशक रखिए, पर इसे नष्ट मत कीजिए। मत भूलिए, इसी के अस्तित्व पर हमारा भी अस्तित्व टिका है।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)