[मनोहर मनोज]। कश्मीर, भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले 72 वर्षों से चली आ रही तनातनी का केंद्र है। मगर हकीकत यह कि कश्मीर भारत-पाक तनाव का वास्तव में जरिया नहीं है। इसके मूल में है 1947 में हुआ भारत का सांप्रदायिक विभाजन। कश्मीर समस्या की जड़ें वास्तव में इसी सांप्रदायिक विभाजन में छिपी हैं जो तनाव का रक्तबीज है। पाकिस्तान हमेशा कश्मीर को ‘अनफिनिश्ड एजेंडा ऑफ पार्टीशन’ कहता है। जबकि भारत के लिए कश्मीर उस धारणा का प्रतीक है कि एक धर्मनिरपेक्ष देश भारत के लिए उसका पार्टीशन एक बड़ी भूल थी।

विभाजित भारत ने मुस्लिम बहुल व एक रजवाड़े द्वारा शासित कश्मीर का जब वरण किया, तब वह एक परिस्थितिजन्य घटना थी। बाद में भारत ने कश्मीर पर यदि अपना वर्चस्व स्थापित भी किया तो उसके पीछे मंतव्य कहीं न कहीं उसके विगत के सांप्रदायिक विभाजन को नकारे जाने का ही प्रतीक था। इसके साथ ही यह इस बात का भी द्योतक था कि भारत मुस्लिम संप्रदायवादियों द्वारा विभाजित किए जाने के बावजूद एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जिसके हर कोने में मुस्लिम धमार्वलंबियों की अच्छी खासी आबादी रहती है जो कि संख्या में पाकिस्तान और बांग्लादेश की आबादी के ही करीब बराबर है।

इस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में कश्मीर में चल रहा मौजूदा सांप्रदायिक अलगाववाद कोई नए सिरे से उत्पन्न हुआ मसला नहीं है, बल्कि यह मसला तो पाकिस्तान के विभाजन का ही रक्तबीज है जो अभी कश्मीर के मुस्लिम बहुल होने की वजह से या तो भारत से अलग होने की बात कर रहा है या फिर इस्लामी राष्ट्र पाकिस्तान के करीब जाने की कवायद कर रहा है।

इसमें जो कश्मीरी एक धर्मनिरपेक्ष भारत के साथ अपनी अस्मिता की सुरक्षा देखता है, उनकी समझदारी को सलाम। परंतु सवाल यह है कि इस अशांत रियासत में कश्मीर में पहले से जुड़ा हुआ नाम जम्मू है, आखिर वह क्यों नहीं अलग होने की बात कर रहा है? जाहिर है इस अलगाववाद की जड़ें बांग्लादेश की तरह सांस्कृतिक नहीं, बल्कि सांपद्रायिक हैं। पाकिस्तान के नजरिये से देखें तो वह समझता है कि उन्होंने 1971 में बंगाल को इसीलिए खोया, क्योंकि वह सांस्कृतिक व राजनीतिक स्तर पर पंजाबी बहुल पाकिस्तान के मातहत नहीं आ पा रहा था, जबकि उसकी सीमा से लगे मुस्लिम बहुल कश्मीर हासिल करने के लिए उसे हर तरह की कुर्बानी मंजूर है।

देखा जाए तो संवैधानिक व वैधानिक और यहां तक कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कश्मीर पर पाकिस्तान का आधिपत्य नहीं बनता है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव का तो भारत से पहले पाकिस्तान ने उल्लंघन किया हुआ है। क्योंकि उसने कबायलियों द्वारा कब्जा किए गए कश्मीर से अपने आप को अलग नहीं किया जो कि उसे संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के मुताबिक करना था। इतना ही नहीं, पाकिस्तान ने अति आत्मविश्वास में कश्मीर को लेकर भारत पर तीन बार हमले किए, पर तीनों में उसे हार का सामना करना पड़ा। ऐसे में पाकिस्तान अब इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त है कि कश्मीर पर उसकी जिहाद की नीति यानी छद्म युद्ध की नीति उसके लिए माकूल बैठती है, जिसके जरिये ही वह अक्टूबर 1947 में कश्मीर का करीब 40 फीसद हिस्सा हासिल करने में कामयाब हुआ था और इसी दौरान वह इसका पूर्वी हिस्सा ‘अक्साई चिन’, चीन को देकर उससे सामरिक संपर्क जोड़ने का मकसद हासिल किया।

वर्ष 1999 में हुआ कारगिल अतिक्रमण 1947 के छद्म युद्ध की ही दूसरी कड़ी थी, जिसमें अपने क्षेत्र को दोबारा हासिल करने के लिए भारत को युद्ध करना पड़ा। अभी पाकिस्तानी हुक्मरानों में यह विश्वास पनप चुका है कि कश्मीर का लक्ष्य उन्हें उनकी सेना के जरिये नहीं, बल्कि उसकी छाया में पल व चल रहे आतंकी गुट ही हासिल करेंगे। दिलचस्प बात यह है कि अभिनंदन की वापसी को लेकर इमरान खान की अभी भारत में भी तारीफ हुई, जबकि प्रश्न यह है कि आखिर भारत के नजरिये से उन आतंकी गुटों पर नकेल कसने को लेकर उन्होंने आखिर ऐसी कौन सी पहल दिखाई? वह पाकिस्तान जो विगत में भारत के मृत सैनिकों के शव क्षत-विक्षत करके लौटाता था, उसने यदि अमेरिका के दबाव में या आक्रामक भारत पर अपनी नैतिक बढ़त हासिल करने के लिए गिरफ्तार भारतीय पायलट अभिनंदन को लौटाया भी है तो यह उसके जरिये भारत की सैन्य आक्रामकता को तात्कालिक रूप से कम करने का प्रयास भर ही है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।

कश्मीर पर भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे इस द्वंद्व का समाधान हो, इसके लिए आखिरी रास्ता इसके तह में जाना ही बनता है। क्योंकि भारत पाकिस्तान के बीच की यह लड़ाई विगत में बांग्लादेश को लेकर हुई। फिर खालिस्तान को लेकर हुई, और अब कश्मीर को लेकर हो रही है। आने वाले वक्त में सिंध और बलूचिस्तान को लेकर भी हो सकती है। द्वंद्व के इन सारे सिलसिलों का आखिर जिम्मेदार कौन है? इसकी जिम्मेदार सांप्रदायवादी मुस्लिम लीग भी नहीं थी, इसका असल जिम्मेदार तो ब्रिटिश साम्राज्य था, जिसने भारत जैसे बड़े देश पर अपना नियंत्रण स्थापित करने के लिए ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति पर अनवरत अमल किया।

इसके जरिये ब्रिटेन ने भारत के दूसरे सबसे बड़े धर्मावलंबियों यानी मुस्लिमों को एक अलग देश का न केवल सपना परोसा, बल्कि उसे अंजाम भी दिया। इसी का नतीजा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच पिछले 72 वर्षों से चल रहे द्वंद्व में केवल कश्मीर पर कशमकश नहीं है, बल्कि पाक को भारत के समूचे अलगाववाद में दिलचस्पी है। गौर से देखें तो पता चलता है कि भारत व पाकिस्तान के बीच की तनातनी की मूल वजह कश्मीर नहीं है, बल्कि विभाजन है। यह बात पाकिस्तान के कट्टरपंथियों और अब भारत के भी कुछेक कट्टरपंथियों को नागवार लगेगी। परंतु यह बात सोलह आने सच है कि इसके बीज ब्रिटिश बोकर गए और नतीजा हमारे सैनिकों को बलिदान देकर भुगतना पड़ता है। देखा जाए तो पाकिस्तान का निर्माण ही अनैतिक था और इसीलिए यह एक असफल देश है।
- इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर
[वरिष्ठ पत्रकार]