अतुल कनक। मानव इतिहास में किसी भी सभ्यता के अग्रदूत को कल्पनाओं का इतना विस्तृत आकाश आराधना के अध्र्य के रूप में नहीं मिला होगा जितना श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को मिला है। पुराणों में विष्णु के अवतारों की कथा है। कृष्ण पूर्णावतार हैं। करोड़ों लोग आज भी उनकी आराधना बाल रूप से लेकर द्वारकाधीश तक के तौर पर अलग अलग रूपों में करते हैं। कृष्ण के प्रति प्रेम का आनंद ही यही है कि उन्हें जिस रूप में स्मरण किया जाए, अद्भुत आनंद मिल सकता है। कहते हैं कि गोपियों ने एक बार कृष्ण से पूछ लिया कि तुम हमें क्या सुख दे सकते हो? कृष्ण ने सहजता से उत्तर दिया, 'मैं तुम्हें सुख नहीं दे सकता, आनंद दे सकता हूं।' सुख और आनंद के बीच की महीन रेखा को या तो एक सच्चा प्रेमी समझ सकता है, या एक सच्चा साधक। कृष्ण के व्यक्तित्व के रहस्य को जानने की कोशिश के करीब तक भी जाया जाए तो पता चलता है कि सच्चा प्रेम भी किसी साधना से कम नहीं होता।

कृष्ण को दुनिया में सबसे ज्यादा उनकी रास लीला के लिए जाना जाता है। रास लीला अर्थात ऐसे प्रसंग जिनमें सच्चे आनंद के रस की वर्षा हो। कहते हैं कि शरदपूर्णिमा की रात में कृष्ण महारास किया करते थे। उस समय जितनी गोपियां उनके साथ रास रचाने का मन रखती थीं, कृष्ण सभी के साथ व्यक्तिगत तौर पर होते थे। इतनी सारी गोपियां और अकेला कन्हैया- क्या यह संभव है? हालांकि कृष्ण को अवतार कहा गया है और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक दैवीय अवतार के लिए ऐसा कर पाना असंभव नहीं है, लेकिन यदि हम इसे सामान्य जीवन के अनुभवों से देखें तो भी ऐसा करना संभव लगता है। हो सकता है कि कृष्ण की लीलाओं का एकसाथ आनंद लेते हुए गोपियां अपने अपने घरों में पहुंची हों और सपने में उनमें से प्रत्येक को यह आभास हुआ हो कि कृष्ण उन्हीं के साथ रात भर नृत्य कर रहे हैं।

कृष्ण की आठ पटरानियां थीं, लेकिन उन्हें राधा के प्रेमी के तौर पर जाना जाता है। जरा सोचें कि जब कृष्ण ने गोकुल को छोड़ा था तब उनकी उम्र लगभग तेरह वर्ष थी। गोकुल छोड़ने के बाद कृष्ण ने राधा से फिर कभी मुलाकात नहीं की। लोकमान्यताओं के अनुसार, राधा कृष्ण से उम्र में पांच वर्ष बड़ी थीं। किशोरवय में प्रवेश कर रहे लड़कों के प्रति इस उम्र में आसक्तिपूर्ण स्नेह भाव स्वाभाविक है। लेकिन यह प्रेम आत्मीयता जगाता है, कलुषित कामनाएं नहीं।

कृष्ण बांसुरी बहुत अच्छी बजाया करते थे। कहते हैं कि उनकी बांसुरी सुनकर गोपियां सुध-बुध बिसर जाती थीं। लेकिन जब कृष्ण मथुरा के लिए प्रस्थान करने लगे तो उन्होंने अपनी बांसुरी राधा को सौंप दी और कहते हैं कि उसके बाद उन्होंने फिर कभी बांसुरी नहीं बजाई। वैसे भी जब प्रपंचों के खिलाफ प्रण का पांचजन्य फूंकना हो तो फिर चैन की बांसुरी कैसे बजाई जा सकती है। मान्यता तो यह भी है कि जब कृष्ण मथुरा के लिए प्रस्थान करने लगे तो राधिका ने कृष्ण के गले में वैजयंतीमाल पहनाई, जिसे वो सारी उम्र धारण किए रहे और वह कभी नहीं मुरझाई। किसी की सात्विक स्मृतियां यदि हृदय के आसपास झूलती रहें तो न कभी स्मृतियां मुरझाती हैं और न ही उन्हें मन से धारण करने वाला। शायद यही समझाने के लिए तो कृष्ण ने अपने ज्ञान के अहम में चूर अपने मित्र उद्धव को गोपियों को समझाने के लिए वृंदावन भेजा था। प्रेम के ढाई आखर पढ़ चुकी सीधी सादी गोपियों ने उद्धव से ऐसे-ऐसे सवाल किए कि उनका सारा मान विगलित हो गया।

हजारों वर्ष पूर्व कृष्ण ने महिलाओं के सम्मान की अलख जगाई। कामरूप के शासक द्वारा बंदी बनाई गई स्त्रियों को जब जेल से रिहा किया गया तो उन स्त्रियों के परिवार वालों ने उन्हें स्वीकार करने से इन्कार कर दिया। उन स्त्रियों ने जब कृष्ण से पूछा कि अब हमें कौन अपनाएगा तो कृष्ण ने उन्हें सहर्ष अपना लिया।

कृष्ण के प्रेम को सम्मान देने की बानगी देखिए कि उन्हें जब यह पता चला कि उनकी बहन सुभद्रा उनके सखा अजरुन से प्रेम करती है, पर बलराम कुछ और चाहते हैं तो सुभद्रा की इच्छा का सम्मान करने के लिए कृष्ण ने अजरुन को उकसा कर दोनों को भगा दिया। वह अपने बड़े भाई से भी इतना प्रेम करते थे कि उनकी इच्छा का विरोध करके उन्हें दुखी नहीं करना चाहते थे। जहां तक बात महाभारत के युद्ध की है तो उनके लिए किसी राजसत्ता को पाने का संघर्ष मात्र नहीं था, बल्कि द्रोपदी के सम्मान के लिए उन्होंने यह युद्ध किया था।

कुछ ग्रंथों में तो यह भी इंगित है कि कृष्ण मन ही मन युधिष्ठिर से भी इसलिए रुष्ट थे कि उन्होंने जुए में स्वयं को हार जाने के बावजूद मर्यादा के खिलाफ जाकर द्रोपदी को दांव पर लगा दिया। इसीलिए जब अश्वत्थामा हाथी की खबर को द्रोण पुत्र अश्वत्थामा की मृत्यु की संभावना के तौर पर उच्चारित करने के पहले युधिष्ठिर ने मर्यादा का सवाल उठाया तो कृष्ण ने रुक्ष होकर उन पर दबाव डाला था कि उन्हें ऐसा तो करना ही होगा।

चाहे राधा के प्रति लड़कपन का प्रेम भाव हो या द्रोपदी के प्रति बड़प्पन का सखा भाव, कृष्ण का जीवन इस बात की साख भरता है कि स्त्री और पुरुष के मध्य दैहिक आकर्षण से परे जाकर ईमानदार दोस्ती भी संभव है। सवाल यह भी कि क्या कृष्ण अपने कुनबे और अपनी द्वारका से प्रेम नहीं करते थे जिसके सर्वनाश का श्रप ऋषियों ने दिया था? यदि कृष्ण को उनसे प्रेम था तो उन्होंने सबकुछ जानते हुए भी स्वयं को और अपने परिजनों को बचाने का उपाय क्यों नहीं किया ? इसका एक उत्तर यही हो सकता है कि कृष्ण जीवन को समग्रता में प्रेम करते थे और उनके लिए मृत्यु भी जीवन का उतना ही महत्वपूर्ण हिस्सा था जितने कर्म या प्रेम थे। कर्म और प्रेम ने ही उन्हें चिरयुवा रखा।

लोक मान्यताओं के अनुसार, कृष्ण महाभारत के युद्ध के बाद 36 वर्ष और जिये, 126 वर्ष की उम्र तक, लेकिन हम कृष्ण को हमेशा युवा ही देखते हैं। जिसके अंतस में कर्म के प्रति दृढ़ता हो और जो प्रेम के प्रति समर्पित हो, उससे उसके यौवन की सौम्यता छीन भी कौन सकता है। मन के इसी प्रेम के कारण तो कृष्ण सबके प्रिय हैं और भक्तवत्सल के रूप में पूजे जाते हैं।

कृष्ण ने बताया मित्रता क्या है?
वह भी तो परस्पर प्रेम का ही एक स्वरूप है। प्रेम को देह की भाषा में समझने वाले वस्तुत: प्रेम के वास्तविक अर्थों को नहीं समझते हैं।

(लेखक एक साहित्यकार हैं)