अभिषेक कुमार सिंह। दो साल पहले ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम में एक मां ने जब अपने बेटे के ऑनलाइन गेम्स की लत को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किया किया था, तो उन्होंने पूछा था कि ‘ये पबजी वाला है क्या?’ साथ में प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी भी की थी कि ‘ये समस्या भी है, समाधान भी है। हम बच्चों को तकनीक से दूर नहीं रख सकते। हम यह चाहें कि हमारे बच्चे टेक्नोलॉजी से दूर चले जाएं, फिर तो वे एक प्रकार से अपनी सारी जिंदगी में पीछे जाना शुरू हो जाएंगे। इसलिए ज्यादा अच्छा होगा कि बच्चे प्ले-स्टेशन से प्ले-फील्ड की ओर जाएं।

सोशल स्टेटस के कारण टेंशन में न आएं।’ प्ले स्टेशन से प्ले-फील्ड पर जाने की यह बात इधर इस रूप में चरितार्थ होती प्रतीत हुई, जब इस बार आइपीएल के टाइटल प्रायोजक के रूप में फैंटेसी गेमिंग कंपनी ड्रीम-11 को चुना गया। ड्रीम-11 ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) के साथ इस साल के लिए 250 करोड़ रुपये में यह करार किया है।

बीसीसीआइ के साथ हुई इस डील के कई संदर्भ और मायने हैं। इसमें सबसे मुख्य बात यह है कि चीन के साथ गलवान घाटी में पैदा हुए तनाव के बाद भारत में चीन के खिलाफ बने माहौल के मद्देनजर चीनी मोबाइल हैंडसेट निर्माता कंपनी वीवो ने आइपीएल-2020 की स्पांसरशिप से हटने का एलान किया था। दरअसल वीवो ने 2018 में बीसीसीआइ के साथ पांच वर्षो के लिए करार किया था। इसके बदले वह हर साल क्रिकेट बोर्ड को 440 करोड़ रुपये का भुगतान कर रही थी, लेकिन अब यह मौका ड्रीम-11 को मिला है। एक गेमिंग कंपनी के आइपीएल प्रायोजक बनने के बड़े अर्थ हैं। इससे पता चलता है कि दुनिया में स्पोर्ट्स और ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार कितनी तेजी से विस्तार कर रहा है। साथ ही इससे यह संकेत मिलता है कि जीवन के दूसरे क्षेत्रों पर भी इसका प्रभाव पड़ने लगा है। खास तौर से कोविड-19 महामारी के दौर में जब दुनिया के कारोबार ठहरे हुए रहे हैं, तब ऑनलाइन गेमिंग का कारोबार एक नई ऊंचाई पर पहुंच गया है।

 

यदि ड्रीम-11 की बात करें तो इस कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक ड्रीम स्पोर्ट्स एक स्पोर्ट्स टेक्नोलॉजी कंपनी है। महज 12 साल पहले वर्ष 2008 में स्थापित की गई इस कंपनी ने 2012 में इंटरनेट पर ऑनलाइन खेले जाने वाले फ्रीमियम फैंटेसी क्रिकेट की शुरुआत की थी। वर्ष 2014 में एक लाख उपयोगकर्ताओं (यूजर्स) का आंकड़ा छूने वाली इस कंपनी ने वर्ष 2015 और 2017 में भारी पूंजी निवेश हासिल किया था। इस आधार पर 2019 में ड्रीम-11 एक अरब डॉलर से ज्यादा की वैल्यू तक पहुंचने वाली भारत की पहली गेमिंग स्टार्टअप कंपनी बन गई थी। साल 2019 में इसके यूजर्स की संख्या सात करोड़ से अधिक हो गई थी और इसे आइपीएल और आइसीसी का गेम पार्टनर बनने का मौका मिला।

ऑनलाइन खेलों का कारोबार : दुनिया में ऑनलाइन गेमिंग के बढ़ते कारोबार पर नजर डालें तो पता चलता है कि कैसे पूरा विश्व ऑनलाइन गेमिंग का दीवाना हुआ जा रहा है। ऑनलाइन गेमिंग के कारोबार पर नजर रखने वाली एक कंपनी मार्केट डाटा सुपर ट्रैकर ने इस साल अप्रैल में एक आंकड़ा जारी कर बताया था कि लॉकडाउन घोषित होने के फौरन बाद इस व्यवसाय ने तेज रफ्तार पकड़ ली थी। इसके मुताबिक मार्च महीने में दुनिया भर में लोगों ने डिजिटल वीडियो गेम्स पर 10 अरब डॉलर खर्च किए थे। तब सिर्फ एक महीने में ऑनलाइन गेमिंग के व्यवसाय में 15 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की गई। यदि स्मार्टफोन पर ही खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम्स की बात करें तो मार्च में इस पर दुनिया में 5.7 अरब डॉलर खर्च किए गए थे। इनमें निंटेंडो के बाद सबसे अधिक ‘पोकेमॉन गो’ मोबाइल गेम की कमाई में 18 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। इसकी ज्यादा बड़ी वजह लॉकडाउन और उसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया रही, जिसमें लोग ज्यादा बाहर नहीं निकले और घरों में बंद रहकर अपने मनोरंजन का प्रबंध किया।

गेम्स का फ्री-मियम मॉडल : यह एक बड़ी पहेली है कि जिन गेम्स को हम ऑनलाइन मुफ्त में हासिल करते हैं और खेलते हैं, उनसे कंपनियां आखिर पैसा कैसे बनाती हैं। ये सभी गेम्स यूजर्स द्वारा लगभग मुफ्त में डाउनलोड किए जाते हैं। इस तरह के गेम्स में दो व्यवस्थाएं होती हैं। एक वह है, जिसमें कुछ पड़ावों तक खेलने वाला व्यक्ति मुफ्त में उस गेम का आनंद उठा सकता है। हालांकि मुश्किल पड़ावों को पार करने के बदले एक स्तर तक खिलाड़ी को कुछ वर्चुअल सिक्के या टोकन अथवा पावर मिलती हैं, जिनसे अगले कुछ पड़ावों तक खेल का मजा लिया जा सकता है, लेकिन जिन लोगों को इन गेम्स की लत लग जाती है, वे खेल के और मुश्किल पड़ावों को पार करना चाहते हैं। इसके लिए उन्हें वर्चुअल करेंसी या वर्चुअल टोकन प्ले स्टोर से खरीदनी पड़ती हैं।

हालांकि यह रकम बहुत मामूली होती है, जिससे खिलाड़ी को यह महसूस नहीं होता कि इतने पैसे खर्च करके उसने कंपनी को कोई बड़ा फायदा पहुंचाया होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि ऑनलाइन गेम्स खेलने वालों में से औसतन पांच फीसद लोग ही इस तरह के खेलों के लिए रकम खर्च करते हैं। मोबाइल पर वीडियो गेम्स खेलने वालों में से तो सिर्फ दो फीसद लोग ही गेमिंग चैंपियन बनने के लिए पैसा खर्च करते हैं, लेकिन दुनिया में पबजी, पोकेमॉन गो, टेंपल रन, सबवे सर्फर या एंग्री बर्ड्स खेलने वालों की संख्या करोड़ों में है। ऐसे में ये दो से पांच फीसद लोग भी गेमिंग कंपनियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। ये कंपनियां ऐसे लोगों की खोज में रहती हैं और इन्हीं के बल पर करोड़ों डॉलर कमा पाती हैं। ऑनलाइन गेमिंग और एप की दुनिया में इसे फ्री-मियम मॉडल कहा जाता है। इसमें फ्री और प्रीमियम, दोनों तरह के गेम शामिल होते हैं।

एक चीज और उल्लेखनीय है। कोई गेम दुनिया में कितनी बार डाउनलोड किया गया है, इससे कंपनियों को अपने गेम की सफलता का पता चलता है। असल में, मुफ्त खेलने वाले करोड़ों लोगों का डाटा भी ये कंपनियां जमा करती हैं। इस डाटा का इस्तेमाल मोबाइल हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां और कई अन्य तरह के गैजेट एवं खिलौने बनाने वाली कंपनियां करती हैं। हैंडसेट बनाने वाली कंपनियां अपने स्मार्टफोन के नए मॉडल लाकर बाजार में इसका प्रचार करती हैं। बहुत मशहूर होने वाले ऑनलाइन गेम्स कई तरह के खिलौनों की ब्रांडिंग में भी काम आते हैं।

जैसे एंग्री बर्ड्स के नाम से खिलौने ही नहीं, बच्चों के इस्तेमाल के कई उत्पाद दुनिया में बनाए और बेचे गए। यही नहीं, एंग्री बर्ड्स फिल्म को भी लोगों ने बड़े चाव से देखा। इनसे गेम बनाने वाली कंपनी की बेशुमार कमाई भी हुई। कुल मिलाकर ड्रीम-11 का आइपीएल प्रायोजक बनना बताता है कि कारोबारी दुनिया और जीवन के दूसरे क्षेत्रों में ऑनलाइन गेम्स की हिस्सेदारी बढ़ रही है। इसका दूसरा पहलू यह भी है कि वर्चुअल दुनिया धीरे-धीरे वास्तविक खेलों पर हावी होती जा रही है। अब यह वक्त ही बताएगा कि दुनिया में हकीकत के खेलों को लेकर अभी जो रोमांच है, ऑनलाइन गेम्स की बढ़त के साथ कितना कायम रहेगा।

जरूरी है इन बातों का ध्यान रखना:

  • पैरेंट्स को ध्यान रखना चाहिए कि बच्चे को किस उम्र में कौन-सी डिवाइस देनी है
  • गेमिंग के दौरान अधिक देर तक स्क्रीन को देखने से नींद की समस्या हो सकती है
  • बच्‍चों के इंटरनेट पर गेम्स खेलने का वक्त तय करें। आधे घंटे से ज्यादा गेम्स न खेलने दें
  • बच्चे के ऊपर इंटरनेट गेम का असर दिखने लगता है। इस तरह के बच्चे मोटापे और डायबिटीज के शिकार हो सकते हैं
  • गेमिंग की लत वाले बच्चे सोशल लाइफ से दूर होकर अकेले रहना पसंद करने लगते हैं। इस तरह के बच्चे कई बार हिंसक व्यवहार भी करने लगते हैं
  • आउटडोर गेम्स को बढ़ावा दें। फिलहाल अगर आउटडोर गेम्स के लिए नहीं भेज सकते, तो घर में ही फिजिकल गेम्स में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करें

विज्ञान का कमाल: वैसे तो मनोरंजन के लिए खेल का मतलब लूडो, शतरंज या कैरमबोर्ड से लेकर कुश्ती, कबड्डी, हॉकी, क्रिकेट जैसे खेल खेलने होते हैं, लेकिन इनमें मौसम और गेंद, बल्ले और खिलाड़ियों की संख्या जैसी कई बाधाएं होती हैं। इनमें से ज्यादातर खेल अकेले नहीं खेले जा सकते। यही वजह है कि जब अकेले खेले जाने वाले वीडियो और मोबाइल गेम्स दुनिया में आए तो बच्चों-किशोरों ने ही नहीं, बल्कि बड़ों ने भी इन्हें अपना लिया। अब तो ऐसा दावा किया जाता है कि इंटरनेट-मोबाइल से जुड़े करोड़ों लोगों में से दो-तिहाई लोग वीडियो-मोबाइल गेम्स खेलते हैं। तेजी से बढ़ते स्मार्ट मोबाइल फोनों ने ऐसे गेम्स को खेलना काफी सुविधाजनक बना दिया है, जिससे डिजिटल गेम्स की मांग और बाजार में तेज इजाफा होने लगा है। वीडियो-मोबाइल गेम्स के बढ़ते बाजार और कारोबार का असर यह हुआ है कि आज इन्हें कई नामी-गिरामी कंपनियां बना रही हैं।

विज्ञान का करिश्मा कहलाने वाले मोबाइल गेम्स की शुरुआत असल में टीवी स्क्रीन पर खेले जाने वाले वीडियो गेम्स से हुई है। वैसे ते वीडियो गेम्स 1950 के दशक में ही सामने आ गए थे, लेकिन इनमें थोड़ा रोमांच तब आया, जब साल 1978 में टायटो नामक एक कंपनी स्पेस इनवेडर नामक वीडियो गेम बाजार में लेकर आई। ये वीडियो गेम्स तब टीवी स्क्रीनों पर खेले जाते थे। स्पेस इनवेडर बहुत शुरुआती किस्म का वीडियो गेम था, लेकिन इसके बाद कई नए फीचर्स वाले वीडियो गेम आने लगे। वे ज्यादा पहेलीनुमा या फिर जटिल होने लगे। उनमें गति बढ़ती गई और ज्यादा मनोरंजक होते गए। जैसे टायटो कंपनी के बाद दूसरी कई कंपनियों ने मारियो और कांट्रा जैसे वीडियो गेम्स बनाए जो काफी पसंद किए गए। ये लंबे समय तक दुनिया के किशोरों और बच्चों के दिलोदिमाग पर छाए रहे, लेकिन इक्कीसवीं सदी में टीवी स्क्रीन की जगह स्मार्टफोन ने ले ली है और अब इन पर खेले जाने वाले कई मोबाइल गेम्स और स्मार्ट गेमिंग एप आ गए हैं। आधुनिक किस्म के इन गैजेट्स में पुराने दौर के वीडियो गेम्स मजेदार नहीं लगते थे। इसलिए वीडियो गेम्स निर्माता एंग्री बर्ड्स, टेंपल रन, कैंडी क्रश और पबजी जैसे गेम्स लेकर आए, जो लोगों के बीच काफी लोकप्रिय हुए।

कई खतरे भी हैं इस राह में: वैसे कुछ शोधों में वीडियो या मोबाइल गेम्स को पढ़ाई में मददगार बताया गया है। जैसे ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट कहती है कि अगर कोई बच्चा करीब एक घंटे तक वीडियो गेम खेलता है तो उसे पढ़ाई में मदद मिलती है। ऐसे गेम्स में कई बाधाओं और उलझनों को पार करने की तरह ही बच्चे भी अपनी छोटी-मोटी समस्याओं को सुलझाने का तरीका खुद ढूंढ़ने लगते हैं।

दावा किया जाता है कि ये गेम्स कोई टॉरगेट हासिल करने की भावना पैदा करते हैं। इनसे विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धा की भावना प्रबल होती है, लेकिन जब बच्चे ज्यादा देर तक गेम्स खेलते हैं तो उनपर नकारात्मक असर होने लगता है। ज्यादा देर तक विडियो गेम्स खेलने-देखने से शरीर थरथराने, जोर से सांसें चलने और सुनने-देखने में कमी जैसी तकलीफें होने लगती हैं। इनकी लत लग जाने पर बच्चे और किशोर अपनी पढ़ाई और जरूरी काम तक छोड़ देते हैं। एक शोध में दावा किया गया है कि अमेरिका जैसे विकसित देशों की 90 प्रतिशत आबादी वीडियो गेम्स की शौकीन है।

[संस्था एफआइएस ग्लोबल से संबद्ध]