प्रणव सिरोही। आर्थिक मामलों के सचिव तरुण बजाज के जरिये सोमवार को एक बड़ी राहत का समाचार मिला। बजाज ने कहा कि केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण जल्द ही एक आर्थिक प्रोत्साहन पैकेज का एलान करने जा रही हैं। उनसे पहले केंद्रीय वित्त सचिव अजय भूषण पांडेय भी कह चुके हैं कि सरकार आर्थिक गतिविधियों को और गति देने के लिए सही समय पर हस्तक्षेप करेगी।

यदि पिछले कुछ दिनों के आर्थिक संकेतकों पर गौर किया जाए तो ऐसे किसी पैकेज को जारी करने के लिए इससे बेहतर कोई और समय नहीं हो सकता। ऐसा इसलिए, क्योंकि कोरोना संकट के बाद जोर पकड़ती आर्थिक गतिविधियों को जहां इससे आवश्यक सहारा मिलेगा, वहीं इसका असर रोजगार सृजन से लेकर मांग में तेजी के रूप में भी दिखेगा। आर्थिक मोर्चे पर ऐसी तेजी से अर्जित होने वाले राजस्व से सरकार की झोली भी भरेगी और अर्थव्यवस्था फिर से कुलांचे भरती हुई दिखेगी।

शुरुआती हिचक : कोरोना संकट की दस्तक के बाद से केंद्र सरकार अब तक दो प्रोत्साहन पैकेज जारी कर चुकी है। हालांकि संकट की विकरालता को देखते हुए उन्हें अपर्याप्त ही माना गया। तबसे तीसरे और एक व्यापक पैकेज की जरूरत महसूस की जा रही है। सरकार ने भी ऐसी संभावनाओं से कभी इन्कार तो नहीं किया, लेकिन अपने वित्तीय संसाधनों पर बढ़ते दबाव को देखते हुए वह कुछ हिचकती भी दिख रही थी। जीएसटी क्षतिपूर्ति पर राज्यों के साथ तनातनी में यह प्रत्यक्ष दिखा भी। अप्रैल से अगस्त के बीच राजकोषीय घाटे के आंकड़े ने भी सरकार की पेशानी पर बल डाले। इस दौरान राजकोषीय आंकड़ा 8.70 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जो पूरे वित्त वर्ष के लिए निर्धारित सीमा को पार कर मूल अनुमान का 109.3 प्रतिशत हो गया। यह भी एक कारण था कि चालू वित्त वर्ष में सरकार ने अक्टूबर से मार्च के बीच 4.34 लाख करोड़ रुपये की उधारी लेने के अपने मूल लक्ष्य पर टिके रहने का ही फैसला किया। ऐसे हालात में किसी तीसरे प्रोत्साहन पैकेज की संभावनाएं दूर की कौड़ी ही दिख रही थीं, परंतु नॉर्थ ब्लॉक के कर्णधारों के हालिया बयानों ने राहत की कमजोर पड़ी उम्मीदों को फिर से परवान चढ़ाया है।

मिली गुंजाइश : अनलॉक के बाद गति पकड़ती आर्थिक गतिविधियों ने सरकार की इस हिचक को तोड़कर उसे प्रोत्साहन पैकेज के लिए गुंजाइश प्रदान की है। लॉकडाउन के बाद अक्टूबर में पहली बार जीएसटी संग्रह के आंकड़े ने एक लाख करोड़ रुपये का स्तर पार किया। त्योहारी सीजन होने के कारण अक्टूबर-दिसंबर तिमाही हमेशा से बेहतर प्रदर्शन करती आई है, तो इस बार भी वही उम्मीदें लगाई जा रही हैं। साथ ही, अक्टूबर महीने में कर्ज की मांग में 5.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई। मैन्यूफैक्चरिंग पीएमआइ ने भी 13 वर्षो के उच्चतम स्तर को छुआ। वैसे भी लॉकडाउन के दौरान आर्थिक सुस्ती से अर्थव्यवस्था की तस्वीर कुछ बदरंग भले ही दिखी हो, लेकिन इस दौरान (अप्रैल से अगस्त के बीच) भी देश में 35.73 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया। वहीं विदेशी मुद्रा भंडार ने भी पहली बार 500 अरब डॉलर का मनोवैज्ञानिक मुकाम पार किया और फिलहाल 560 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर है। ये सभी पहलू भारतीय अर्थव्यवस्था में व्यापक भरोसे को दर्शाते हैं। अब सरकार को तीसरे प्रोत्साहन पैकेज के जरिये इस भरोसे को और मजबूत बनाने की दिशा में कदम बढ़ाने हैं।

कैसा हो स्वरूप : सरकार ने अभी भले ही पैकेज का एलान न किया हो, लेकिन जानकार इसके तमाम रूप-स्वरूप काफी पहले से ही सुझा रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल यही है कि इसका आकार कितना बड़ा हो, लेकिन उससे भी महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि उसका प्रकार कैसा हो। देश के जाने माने अर्थशास्त्री और सिंगल स्टैंडिंग कमेटी ऑन इकोनॉमिक स्टेटिस्टिक्स (एससीईएस) के चेयरमैन प्रणब सेन का सुझाव है कि सरकार को कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये यानी जीडीपी के करीब पांच प्रतिशत के बराबर प्रोत्साहन पैकेज जारी करना चाहिए। सरकारी खजाने पर दबाव को भलीभांति समझते हुए सेन ने यह भी कहा है कि फिलहाल सरकार के पास इससे ज्यादा का पैकेज देने की गुंजाइश भी नहीं।

हालांकि इसकी महत्ता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यदि सरकार ने यह पैकेज जारी नहीं किया तो अर्थव्यवस्था को कोरोना पूर्व स्तर वाली तेजी के दौर में पहुंचने के लिए पांच वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है। हालांकि हालात की नजाकत को भांपते हुए कुछ जानकारों की राय है कि जीडीपी के दो से ढाई प्रतिशत के बराबर का पैकेज भी कारगर साबित हो सकता है। बस उसमें खर्च की गुणवत्ता को सुनिश्चित करना होगा। हालांकि इस पैकेज से राजकोषीय घाटे का गणित जरूर गड़बड़ होगा, लेकिन इस मोर्चे पर संतुलन बाद में भी साधा जा सकता है। याद रहे कि वर्ष 2008 की विश्वव्यापी मंदी से जूझने की कवायद में भी केंद्र का राजकोषीय घाटा राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन (एफआरबीएम) की लक्ष्मण रेखा को लांघते हुए 6.5 प्रतिशत से अधिक का स्तर पार कर गया था, लेकिन बाद में उस पर काबू पा लिया गया।

कैसे करें अमल : प्रस्तावित पैकेज पर आर्थिक मामलों के सचिव बजाज ने कहा कि इसमें पूरा जोर मांग को बढ़ावा देने पर होगा। वहीं वित्त सचिव पांडेय का कहना है कि सरकार ने राहत देने के लिए कुछ विशेष क्षेत्रों को चिन्हित किया है, जिन पर कोरोना संकट की सबसे ज्यादा मार पड़ी। इससे पैकेज की परिकल्पना को लेकर सरकारी मंशा की कुछ झलक अवश्य मिलती है। यह मंशा उचित भी प्रतीत होती है, क्योंकि कोरोना संकट से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए उद्यम लंबे अर्से से मरहम की प्रतीक्षा कर रहे हैं। इनमें से आतिथ्य सत्कार और पर्यटन जैसे क्षेत्रों की गतिविधियां तो एकदम ठप पड़ गईं, जो बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन के माध्यम भी हैं। ऐसे में यदि सरकार कोरोना से प्रभावित-पीड़ित क्षेत्रों को चिन्हित कर उनके लिए पैकेज के भीतर विशिष्ट प्रावधान करती है, तो उसके अच्छे परिणाम आना तय है। इससे रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिलेगा। परिणामस्वरूप क्रय शक्ति में वृद्धि से मांग को सहारा मिलेगा, जिसका समग्र लाभ अर्थव्यवस्था को प्राप्त हो सकेगा।

मांग को बढ़ाने के लिए कुछ नकदी हस्तांतरित करने की योजना भी बनाई जा सकती है। इसमें खर्च के लिए एक मियाद तय की जाए, ताकि लोग उस पैसे को अपने खातों में ही न जमा किए रहें और इस कवायद का अपेक्षित लाभ मिलने से रह जाए। चूंकि फिलहाल वैश्विक बाजारों में अस्थिरता और बढ़ गई है तो अपनी अर्थव्यवस्था का भला घरेलू मांग को बढ़ाकर ही अधिक किया जा सकता है। इस लिहाज से घरेलू मांग को बढ़ाना आवश्यक ही नहीं, अपितु अनिवार्य होगा। इसी कड़ी में निर्माणाधीन एवं प्रस्तावित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को भी द्रुत गति से आगे बढ़ाया जाए। उसका दोहरा लाभ मिलेगा। एक तो आवाजाही सुगम होगी और अर्थव्यवस्था की व्यापक उत्पादकता बढ़ेगी। साथ ही, इससे इस्पात, सीमेंट और भारी मशीनरी जैसे उद्योगों को सहारा मिलने के साथ ही बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे।

इन पहलुओं से प्रभावी हो सकता है पैकेज :

अवसंरचना

भारतीय अर्थव्यवस्था में विद्यमान विपुल संभावनाओं को भुनाने की राह में सबसे बड़ी बाधाओं में से एक बड़ी बाधा लचर बुनियादी ढांचे को माना जाता है। हालांकि बीते कुछ वर्षो के दौरान इस दिशा में उल्लेखनीय काम हुआ है, लेकिन अभी भी यह अपेक्षित स्तर से कम है। ऐसे में बुनियादी ढांचे पर खर्च बढ़ाकर सरकार न केवल अर्थव्यवस्था के लिए बेहतर भविष्य की बुनियाद रखेगी, बल्कि इससे कई सहायक उद्योगों को भी बहुत फायदा मिलेगा। रोजगार सृजन में भी इसकी अहम भूमिका होगी।

विमानन एवं आतिथ्य सत्कार

वैसे तो कोरोना संकट से शायद ही कोई क्षेत्र अछूता रहा हो, लेकिन पर्यटन, विमानन और होटल एवं रेस्तरां से जुड़े आतिथ्य सत्कार उद्योग की इस आपदा ने पूरी तरह से रीढ़ ही तोड़कर रख दी है। इन क्षेत्रों के जरिये प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से बड़े पैमाने पर लोगों का रोजगार जुड़ा हुआ है। लिहाजा सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और ऐसी योजना बनाई जानी चाहिए, ताकि कोरोना से जुड़ी बंदिशों की चरणबद्ध रूप से विदाई के बाद घरेलू पर्यटन तेजी से परवान चढ़ सके।

रियल एस्टेट

कोरोना से पहले ही सुस्ती के शिकार हुए रियल एस्टेट की हालत इस महामारी ने और पतली कर दी। ऐसे में सरकार इस बाजार में सुधार के लिए कोई कारगर मंत्र तलाशे, ताकि इसकी नैया पार लगने के साथ ही अर्थव्यवस्था को सहारा मिले। पैकेज में इस क्षेत्र के लिए भी उपाय किए जाएं, ताकि अनबिके मकानों की बिक्री का रास्ता खुले, जिससे डेवलपर्स अटकी हुई परियोजनाओं को आगे बढ़ा सकें। शहरी आवास के क्षेत्र में बहुत संभावनाएं हैं, जिन्हें भुनाया जाए। यह रोजगार के लिए भी अहम क्षेत्र है।

कूपन स्कीम

पहले और दूसरे प्रोत्साहन पैकेज में लोगों के खातों में सीधे रकम पहुंचाने पर खासी चर्चा हुई थी। हालांकि सरकार ने जन-धन खातों में रकम पहुंचाई भी, पर वह मांग को प्रभावी रूप से बढ़ाने में उतनी सहायक सिद्ध नहीं हो पाई। ऐसे में आगामी प्रोत्साहन पैकेज में ऐसी कूपन व्यवस्था का प्रावधान किया जा सकता है, जिनकी एक मियाद तय की जाए। इससे लोग खाते में रकम रखने के बजाय उसे खर्च करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।

बैंकिंग सुधार

हाल के दौर में सरकार ने कृषि से लेकर श्रम सुधारों की राह में कदम बढ़ाए हैं, लेकिन बैंकिंग क्षेत्र अभी भी व्यापक सुधार की बाट जोह रहा है। कोरोना संकट के बाद उपजे हालात का इस्तेमाल सरकार को बैंकिंग सुधारों को मूर्त रूप देने के लिए भी करना चाहिए। इसमें उन्हें पूंजी उपलब्ध कराने के साथ ही स्वायत्तता देने जैसे अहम कदम उठाए जाने चाहिए। पैकेज में इस क्षेत्र को भी शामिल करना अर्थव्यवस्था के लिए हितकारी होगा।