Jharkhand Politics News: फिर उभर सकता है स्थानीयता का जिन्न
रघुवर दास के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने इसके लिए एक फार्मूला निकाला था जिसमें राज्य गठन के 15 वर्ष पहले यानी 15 नबंवर 1985 से पूर्व यहां निवास करने वालों को स्थानीय माना गया।
रांची, प्रदीप कुमार शुक्ला। कोरोना महामारी से जूझ रही झारखंड सरकार अब कुछ ऐसे मुद्दों के निराकरण की दिशा में बढ़ने जा रही है जिससे आने वाले समय में राज्य का माहौल गरम हो सकता है। इनमें सबसे संवेदनशील स्थानीयता नीति है जिसे लेकर झारखंड मुक्ति मोर्चा सरकार में सहयोगी कांग्रेस और विपक्ष में मौजूद भाजपा की अलग अलग राय है और इसे जब जब सुलझाने की कोशिश की गई है, वह और उलझती गई है। रघुवर दास के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने इसके लिए एक फार्मूला निकाला था जिसमें राज्य गठन के 15 वर्ष पहले यानी 15 नबंवर 1985 से पूर्व यहां निवास करने वालों को स्थानीय माना गया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसका आरंभ से ही यह कहते हुए विरोध किया कि स्थानीयता का आधार 1932 की जमीन का खतियान (दस्तावेज) या जमीन का अंतिम सर्वे होना चाहिए। अब हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद इसी मुताबिक नीति बनाने की कवायद आरंभ हुई है। एक उच्च स्तरीय कमेटी इसपर निर्णय कर सरकार को अनुशंसा करेगी। हालांकि 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति लागू करना इतना आसान भी नहीं है। सरकार में झामुमो की सहयोगी कांग्रेस इसके पक्ष में नहीं है।
जाहिर है अगर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने 1932 के खतियान की बाध्यता को लागू करने की कोशिश की तो दोनों दलों के बीच खटास बढ़ेगी। इससे सरकार पर संकट मंडरा सकता है। वैसे भी झारखंड में नई सरकार बने हुए सिर्फ आठ माह ही हुए हैं, लेकिन कई विषयों पर कांग्रेस का अलग रुख सरकार के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। कांग्रेस विधायकों का एक बड़ा खेमा इस बात से नाराज है कि सरकार में उनकी सुनी नहीं जाती। बहरहाल स्थानीयता को फिर से परिभाषित करने की कवायद का मामला राजनीतिक तूल पकड़ सकता है।
झारखंड में इस अति संवेदनशील मामले का निपटारा पूर्ववर्ती सरकार ने सभी वर्गों को साधते हुए किया था, जबकि स्थानीयता नीति को परिभाषित करने की कोशिश में झारखंड गठन के शुरुआती दिनों में भारी हिंसा-प्रतिहिंसा हुई थी। अब एक बार फिर इसका जिन्न बोतल से बाहर निकलने की तैयारी में है, जो राजनीतिक उथल-पुथल का सबब बन सकता है।
वादे पूरे करने का दबाव: सरकार के इस कदम को अगले कुछ महीनों में दुमका और बेरमो विधानसभा सीट पर होने वाले उप चुनाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। कोरोना के चलते वित्तीय संकट से जूझ रही सरकार कोई बड़ा कार्यक्रम शुरू नहीं कर सकी है। जो वादे किए थे, वह भी पूरे नहीं हो सके हैं। किसान ऋण माफी सहित मुफ्त में बिजली देने, हर बेरोजगार को भत्ता देने, गरीब परिवारों को हर साल 72 हजार रुपये की सहायता देने सहित तमाम ऐसी घोषणाएं हैं, जो सरकार के गले की फांस बन गई हैं। किसान ऋण माफी की तैयारी भी अभी तक आधी-अधूरी ही दिख रही है।
किसानों का करीब आठ हजार करोड़ रुपये का ऋण बकाया है, लेकिन पहले चरण में सिर्फ दो हजार करोड़ रुपये ही माफ किए जाने की बात की जा रही है। कर्ज माफी वैसे तो झामुमो और कांग्रेस दोनों के घोषणापत्र का हिस्सा था, लेकिन कांग्रेस का इस पर कुछ अधिक जोर था। मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में यह चुनावी वादा कर कांग्रेस सत्ता में आई थी और सत्ता में आने के तत्काल बाद इसे लागू भी किया था। कुछ विसंगतियां ही सही, लेकिन वहां वादे पर अमल तो हुआ ही। वहीं झारखंड में अब तक इसपर बयानबाजी ही हो रही है। कांग्रेस का लगातार दबाव कर्ज माफी को लेकर बना हुआ है। कुछ सरकार में इच्छाशक्ति का अभाव तो कुछ खाली खजाना इसकी इजाजत नहीं दे रहा था। अब जब खजाने की हालत कुछ संभली है तो आनन फानन 15 अगस्त को इस योजना को लांच करने की तैयारी है। वजह कांग्रेस का दबाव ही बताया जा रहा है।
कांग्रेस की किचकिच: झारखंड में कांग्रेस और विवाद मानों एक-दूसरे के पर्याय बन चुके हैं। पार्टी में बढ़ रही गुटबाजी के निदान के लिए ही राज्य सह प्रभारी उमंग सिंघार झारखंड के चार दिनों का कार्यक्रम तय कर आए थे, लेकिन उनकी यह तेजी पार्टी के कुछ नेताओं को रास नहीं आई और शिकायत राज्य के प्रभारी आरपीएन सिंह तक पहुंचा दी गई। यह भी कहा गया कि कोरोना संकट काल में राज्य के उनके दौरे से गलत संदेश जाएगा, उधर भाजपा ने भी लगे हाथ इसे राजनीतिक मुद्दा बनाया और सरकार पर क्वारंटाइन नीति में भी भेदभाव का आरोप लगाया।
बताया कि कैसे उनके दिल्ली से लौटे दो भाजपा नेताओं बाबूलाल मरांडी और दीपक प्रकाश को क्वारंटाइन किया गया, जबकि दिल्ली से आए उमंग सिंघार को खुलेआम राज्य भर में घूम-घूमकर बैठकें करने की छूट दी जा रही है। बस फिर क्या था, सिंघार को रोकने और वापस भेजने में सरकारी मिशनरी भी जुट गई। उन्हें धनबाद की सीमा पर रोक लिया गया। अपनी ही सरकार में खुद की फजीहत होती देख उन्होंने अपने सभी कार्यक्रम रद कर वापस रांची लौट दिल्ली की फ्लाइट पकड़ना उचित समझा।
[स्थानीय संपादक, झारखंड]