उमाशंकर मिश्र। coronavirus: इबोला और निपाह के बाद अब जब लाइलाज कोरोना वायरस का खतरा बढ़ा है तो एक बार फिर दुनिया की नजरें इस जानलेवा बीमारी की दवा खोजने के लिए वैज्ञानिकों पर टिकी हैं। स्वास्थ्य शोध के क्षेत्र में कार्य करने वाले वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी से जुड़ा यह एक उदाहरण है जिसमें वैज्ञानिक समुदाय से त्वरित प्रतिक्रिया की उम्मीद की जा रही है।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग नई विज्ञान प्रौद्योगिकी व नवाचार नीति पर काम कर रहा है जिसमें वैज्ञानिकों की सामाजिक जिम्मेदारी सुनिश्चित करने के साथ-साथ देश में शोध एवं विकास का वातावरण तैयार करने पर जोर दिया जा रहा है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद और प्रधानमंत्री के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के विजयराघवन से इस बात के संकेत मिल चुके हैं कि सरकार वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने लिए प्रतिबद्ध है।

वर्ष 2013 में गठित मौजूदा विज्ञान नीति की जगह लाई जा रही नई विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं नवाचार नीति इसकी बानगी कही जा सकती है। इस नीति में अंतरिक्ष, स्वास्थ्य, परमाणु भौतिकी और जैव-प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर केंद्रित दृष्टिपत्र के साथ-साथ इन क्षेत्रों में मौलिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कार्ययोजना शामिल होगी।

विजयराघवन मानते हैं कि मौजूदा नीति को तत्कालीन जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया था, लेकिन यह नीति समाधान के बजाय समस्याओं पर अधिक केंद्रित है। किफायती रोटा वायरस वैक्सीन के विकास से लेकर मंगलयान व चंद्रयान जैसे अंतरिक्ष मिशन और एंटी सेटेलाइट मिसाइल जैसी उपलब्धियों के साथ भारत वैज्ञानिक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षा रखता है। हाल के वर्षों में भारत के वैज्ञानिक शोध प्रकाशनों की संख्या भी बढ़ी है।

देश के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र के बारे में कहा जा रहा है कि इसमें आगामी वर्षों में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की तरह उछाल देखने को मिल सकता है। वर्ष 2025 तक भारत को जैव प्रौद्योगिकी आधारित 100 बिलियन डॉलर की अर्थव्यस्था के रूप में विकसित करने का लक्ष्य है। भारत का जैविक ईंधन उद्योग 100 बिलियन डॉलर की बायो-इकोनॉमी के लक्ष्य से अधिक हासिल करने की क्षमता रखता है। इन उदाहरणों से विज्ञान के क्षेत्र में भारत की प्रगति का अंदाजा लगाया जा सकता है। हालांकि भारत में शोध एवं विकास में निवेश से विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले काफी कम है।

देश के सकल घरेलू उत्पाद का मात्र 0.7 प्रतिशत हिस्सा शोध एवं विकास पर खर्च किया जाता है। यह अमेरिका 2.8 प्रतिशत, चीन 2.1 प्रतिशत और इजरायल 4.3 प्रतिशत जैसे देशों के खर्च से कम है। वर्ष के शुरू में बंगलुरु में विज्ञान कांग्रेस में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवाचार, नई खोजों के पेटेंट और उस पर आधारित उत्पादन को बढ़ावा देने का मंत्र दिया था। पर नई प्रौद्योगिकी, नवाचार, पेटेंट और उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए देश में शोध व विकास का माहौल विकसित करना होगा।

भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने में शोध एवं विकास को बढ़ावा देना मददगार हो सकता है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने, खाद्य उत्पादन में वृद्धि एवं पोषण जरूरतों को पूरा करने, स्वच्छ ऊर्जा, किफायती स्वास्थ्य सेवाओं और परिवहन के अत्याधुनिक साधनों के विकास जैसी बुनियादी जरूरतों को पूरा

करने में यह पहल मददगार हो सकती है। भारत के शोध एवं विकास में निजी निवेश बहुत कम है। देश में शोध व विकास पर होने वाले कुल निवेश में से 70 फीसद सरकार द्वारा किया जाता है, जबकि 30 फीसद निवेश उद्योग जगत की ओर से होता है। निजी संस्थाओं को निवेश के लिए प्रेरित करने के लिए एक उपयुक्त वातावरण की आवश्यकता है।

प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार मानते हैं कि देश में शोध एवं विकास पर खर्च बढ़ाने का एक तरीका यह है कि इसे कंपनियों के निवेश के लिए आकर्षक बनाया जाए। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद का मानना है कि शोध एवं विकास पर होने वाले खर्च में वृद्धि भी अर्थव्यवस्था की वृद्धि के अनुरूप हो। लिहाजा नई विज्ञान नीति में इन तथ्यों को शामिल किया जा सकता है। इसके अलावा, विभिन्न मंत्रालयों को उनकी प्राथमिकताओं के अनुसार प्रौद्योगिकी के विकास और उपयोग के लिए अनुसंधान और नवाचार पर अपने बजट का कुछ प्रतिशत हिस्सा आवंटित करना अनिवार्य किया जा सकता है।

नई विज्ञान प्रौद्यगिकी एवं नवाचार नीति को तैयार करने के लिए अभी कोई समय सीमा तय नहीं की गई है। हालांकि इस नीति को अमली जामा पहनाए जाने से पहले विभिन्न हितधारकों से विचार विमर्श किया जाना है। परामर्श के पहले स्तर में वैज्ञानिक और उद्योगों के प्रतिनिधि नागरिकों से जानने का प्रयास करेंगे कि उन्हें किस प्रकार के वैज्ञानिक समाधान और नवाचारों की आवश्यकता है। दूसरे स्तर पर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच संवाद किया जाना है जिसमें निर्धारित किया जा सकता है कि दोनों कैसे नई नीति पर एक साथ काम कर सकते हैं जिससे विश्व स्तरीय उत्पाद विकसित किए जा सकें।

हितधारकों से परामर्श का तीसरा स्तर रेलवे, जहाजरानी और जल संसाधन जैसे विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के साथ होगा, ताकि यह पता लगाया जा सके कि उनकी विज्ञान और प्रौद्योगिकी से जुड़ी क्या आवश्यकताएं हैं। बातचीत के चौथे स्तर में मूलभूत क्षेत्रों जैसे संघनित द्रव्य भौतिकी, ठोस अवस्था भौतिकी, मैटेरियल रिसर्च आदि पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा और जानने का प्रयास किया जाएगा कि हम इन क्षेत्रों में कहां खड़े हैं और आगे क्या करने की आवश्यकता है।

[विज्ञान के जानकार]

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